-धीरज कुमार-
बाजरा अत्यधिक परिवर्तनशील छोटे बीज वाले घासों का एक समूह है जो दुनिया भर में व्यापक रूप से अनाज की फसलों या मानव भोजन के लिए अनाज और चारे के रूप में उगाई जाती है। कोरियाई प्रायद्वीप में बाजरा की खेती का प्रमाण मध्य ज्यूलमुन मिट्टी के बर्तनों की अवधि जो कि लगभग 3500 से 2000 बीसी से जुड़ा हुआ है। अगर हम भारत की बात करें तो कुछ सबसे पुराने यजुर्वेद ग्रंथों में बाजरा का उल्लेख किया गया है। जिसमें फॉक्सटेल बाजरास, (प्रियंगव), बरनार्ड बाजरा (अनाव) और काली उंगली बाजरा (श्यामका) की पहचान की गई है। इस प्रकार यह संकेत मिलता है कि बाजरा की खपत बहुत आम थी, कांस्य युग 4500 बीसी से भी पहले। आज के समय की बात की जाए तो लगभग 50 साल पहले तक बाजरा भारत में उगाया जाने वाला प्रमुख अनाज था, मगर कुछ आधुनिक शहरी उपभोक्ताओं के द्वारा इसे मोटे अनाज के रूप में देखा जाने लगा और बाजरा एक पिछड़ेपन, गरीबी व गवार होने का प्रतीक बनकर रह गया। जिस भारत का दिल उसके अपने गांव में बसता हो, वहां की रीति-रिवाज, संस्कृति व भाषा के साथ-साथ इन आधुनिक शहरी उपभोक्ताओं ने महत्वपूर्ण पोषक तत्वों वाले मोटे अनाज को भी पीछे छोड़ दिया तथा उसकी जगह पर परिष्कृत आहार (रिफाइंड डाइट) का चलन शुरू कर दिया जो कि महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से विहीन है। आधुनिकता की इस दौड़ में हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि भोजन जितना संभव हो उतना स्थानीय और पौष्टिक होना चाहिए।
एक परिकल्पना यह भी कहती है कि बाजरा की खेती बड़ी खाद्य कंपनियों, रासायनिक निगम, मशीनरी, संकर बीज, उर्वरक, कीटनाशक कंपनियों को कोई बड़ा लाभ नहीं देती। बाजरा की खेती छोटे पैमाने पर कम लागत वाली प्रणालियों में बहुत अच्छी तरह से बढ़ता है और छोटे किसानों की आजीविका के लिए बहुत अच्छा है। शायद इसी कारण से चावल और गेहूं का ज्यादा प्रचार-प्रसार हुआ क्योंकि यह एक अधिक आकर्षक आर्थिक रणनीति थी। खाद्य नीति रणनीतिकारों और सरकारों के बचाव में कोई यह भी कह सकता है कि उस समय के हिसाब से कई लोगों का मानना था कि रासायनिक कृषि से लंबे समय में उपज और खाद्य सुरक्षा में सुधार होगा। मोटे अनाज की विविधता से हम सिर्फ चावल और गेहूं तक सीमित हो गए। विकास के पश्चिमी मॉडल का अनुसरण करते हुए भारत और अन्य विकासशील देशों ने बहुत ही उपयोगी और अर्थपूर्ण चीजों को खो दिया है जिनमें भोजन की आदतों में बदलाव सबसे बड़े परिवर्तनों में से एक रही है। भारतीय अपने स्वदेशी खाद्य पदार्थों को तेजी से भूल रहे हैं और मानकीकरण का पीछा कर रहे हैं। बाजरे का उपयोग भी इसके प्राचीन या यूं कह लो पुराने जमाने का अनाज होने के कारण छोड़ दिया गया। हरित क्रांति से पहले बाजरा कुल खेती वाले अनाज का लगभग 40 फीसदी था। मतलब गेहूं और चावल की खेती से अधिक योगदान। चावल और गेहूं के पक्ष में राज्य की नीतियों के कारण बाजरा उत्पादन और खपत में भारी गिरावट आई तथा चावल का उत्पादन दोगुना हो गया और गेहूं का उत्पादन 3 गुना हो गया। सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान इसकी खपत के कई सबूतों के साथ बाजरा भारत में उगाई जाने वाली पहली फसलों में से एक थी। वर्तमान में 130 से अधिक देशों में उगाए जाने वाले बाजरा को पूरे एशिया और अफ्रीका में आधे अरब से अधिक लोगों के लिए पारंपरिक भोजन माना जाता है।
भारत में बाजरा मुख्य रूप से एक खरीफ फसल है जिसमें अन्य समान मूल भोजन की तुलना में कम पानी और कृषि आदानों की आवश्यकता होती है। बाजरा अपनी आजीविका उत्पन्न करने, किसानों की आय बढ़ाने और पूरे विश्व में खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की विशाल क्षमता के कारण अति महत्वपूर्ण है। आज भारत और दुनिया में बाजरा की मांग बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों की मानसिकता बदलना भी इसमें शामिल है। कई संगठन भी इसके समर्थन में आगे आ रहे हैं। बाजरा उगाने की बेहतर तकनीकों के बारे में किसानों को शिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। बाजरा की नॉन ग्लूटन प्रवृत्ति होने के कारण इन्हें बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। इस को बढ़ावा देने के लिए भी तरह-तरह की स्मार्ट फूड कैंपेन किए जा रहे हैं, जिसमें स्मार्ट फूड इस टैगलाइन के साथ परोसे जा रहे हैं कि ‘यह आपके लिए अच्छा है’, ‘आपकी धरती के लिए अच्छा है’ और ‘आपके छोटे किसानों के लिए अच्छा है’। भारत में उत्पादित भोजन का लगभग 40 फीसदी हर साल बर्बाद हो जाता है। इसकी तुलना में बाजरा आसानी से नष्ट नहीं होता और कुछ बाजरा की किस्में तो 10 से 12 साल के बाद भी खाने के लिए उत्तम होती हैं। इस प्रकार से यह खाद्य सुरक्षा प्रदान करते हैं और खाने की बर्बादी पर भी लगाम लगाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाजरा एक रिश्तेदार भोजन है जिसमें मैग्निशियम नियासिन (विटामिन इ3) होता है। यह लस मुक्त होता है और इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।
बाजरा अपने उच्चप्रतिरोध के कारण कठोर परिस्थितियों में भी उगाने वाले किसानों के लिए टिकाऊ होते हैं तथा सभी के लिए सस्ते और उच्च पोषक विकल्प प्रदान करते हैं। हर बाजरे का अपना महत्व होता है जैसे रागी कैल्शियम से भरे होते हैं, ज्वार में पोटेशियम और फास्फोरस होता है, फॉक्सटेल रेशेदार होता है, जबकि कोदो आयरन से भरपूर होता है। इसलिए यह भी सलाह दी जाती है कि हम बाजरा को बदल बदल कर खाएं। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमें एक समय में केवल एक किस्म के बाजरे का ही सेवन करना चाहिए क्योंकि प्रत्येक अनाज की पाचन के लिए माध्यम के रूप में अपनी आवश्यकता होती है और इन्हें मिलाने से शरीर में असंतुलन पैदा हो सकता है। जहां तक बाजरा का संबंध है इसके पुनरुत्थान की अत्यंत आवश्यकता है। हमें यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि इसके प्रयोग से पहले हमें यह जांच लेना महत्वपूर्ण है कि किसी का शरीर किस अनाज के साथ सहज है। भोजन में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया जाना चाहिए तथा डाइटिशियन की सलाह भी अनिवार्य है। इसमें कोई शक नहीं कि मिलेट्स की लोकप्रियता धीरे-धीरे फिर से बढ़ रही है और मुख्यधारा में लाने के लिए कई प्रयास चल रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारत द्वारा प्रायोजित और 70 से अधिक देशों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव को अपनाया है जिसमें साल 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया गया है।