विनय गुप्ता
दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश भारत में नशाखोरी के मकड़जाल में फंसकर जेलों में बंद ज्यादा तादाद
युवावर्ग की है। इसलिए देश में ‘मेक इन इंडिया’ या ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियान तभी सफल होंगे यदि देश
का यौवन नशे के गर्त से बचेगा। नशाखोरी किसी भी राष्ट्र की नींव को जर्जर व खोखला करने में सक्षम है। समाज
में सकारात्मक वातावरण का माहौल उत्पन्न करने के लिए नशे का समूल नाश जरूरी है…
किसी भी मुल्क को बर्बाद करने के लिए जरूरी नहीं है कि उसकी सरहदें लांघ कर उस पर आग उगलती बारूदी
मिलाइलों की बौछार की जाए, टैंकों-तोपों से धावा बोला जाए या एटम बम दागे जाएं। किसी भी देश का भविष्य
उसकी युवाशक्ति होती है जिसकी ऊर्जावान ताकत किसी भी क्षेत्र में इंकलाब लाने में पूरी कुव्वत रखती है। यदि
मुल्क की बुनियाद उस युवावेग को नशारूपी वायरस लग जाए या देश का यौवन नशे की अंधेरी गलियों में भटक
जाए तो अश्कों के सैलाब के साथ मातम मनाने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं रहता। नशे का संक्रमण बर्बादी की
स्क्रिप्ट लिखने में खामोश युद्ध का रोल अदा करने वाला अचूक हथियार है। देश में जंगे आजादी के वक्त वतन के
लिए सरफरोशी की बात हो या सैन्य पराक्रम के महाज पर शूरवीरता का जज्बा, देश के लिए युवाओं का शिद्दत
भरा किरदार हमेशा बेमिसाल रहा है। आजादी के बाद से हमारा देश गुरबत, बेरोजगारी, अशिक्षा, महंगाई व बढ़ती
जनसंख्या जैसी कई समस्याओं से जूझ रहा है, लेकिन कुछ वर्षों से हमारा हमसाया मुल्क पाकिस्तान दहशतगर्दी व
नशीले पदार्थों का एक बड़ा मरकज बनकर उभरा है। दशकों से पाक नियंत्रण रेखा पर अपनी मुसलसल साजिशों से
इन चीजों का बडे़ पैमाने पर भारत के खिलाफ निर्यात कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर आए दिन नशे की खेपों की बरामदगी इस मुल्क के नापाक मंसूबों की तस्दीक करती है जहां
हमारे सुरक्षाबल दिन-रात मुस्तैद हैं। लेकिन भारत में मार्च 1986 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की
स्थापना हुई है जिसका मकसद देश में नशीले पदार्थों की तस्करी पर लगाम लगाना है। वहीं नशाखोरी की रोकथाम
के लिए 1985 में नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रापिक एक्ट वजूद में आया था। इस एक्ट को प्रभावी बनाने के
लिए इसमें तीन बार संशोधन हो चुके हैं। 1998 में राष्ट्रीय मादक द्रव्य निवारण संस्थान की स्थापना का उद्देश्य
भी देश में मादक द्रव्यों की मांग में कमी लाना है। मगर देश में नशे के खिलाफ कडे़ कानून व सुरक्षा एजेंसियों की
सतर्कता के बावजूद ड्रग्स के करोड़ों रुपए के काले कारोबार के बढ़ते दायरे की जमीनी हकीकत होश उड़ाने वाली है।
30 जुलाई 2020 को पड़ोसी राज्य पंजाब में जहरीली शराब के सेवन से कई लोग मौत की आगोश में समा गए
थे। पड़ोस के इन्हीं राज्यों से सटे हिमाचल के सरहदी कस्बों में अवैध शराब (लाहन) का धंधा चलता है जहां सुरक्षा
एजेंसियों द्वारा हजारों लीटर विषैली शराब के जखीरे व इसकी भट्टियां पकड़ने के समाचार अक्सर छपते रहते हैं।
सस्ती शराब के भ्रम में कई लोग शराब माफिया के जाल में फंसकर अपनी जान गंवा रहे हैं। कुछ वर्षों से देश में
निम्न स्तर से लेकर बॉलीवुड तक ‘आबे तल्ख की अंजुमन’ सजने का प्रचलन एक आम फैशन बन चुका है।
अय्याशी का अड्डा बन चुकी रेव पार्टियां तथा हुक्का बार का सीधा संबंध ड्रग्स से जुड़ा है। जुर्म की दुनिया से जुड़े
तमाम फसादों की विलादत यहीं से शुरू होती है। नशे के इस फैशन व शौक से क्राइम जगत का ग्राफ भी बदल रहा
है। चिट्टा, स्मैक, ब्राउन शुगर, गांजा व सिंथेटिक जैसे कातिल नशे को मनचाहे रेटों पर बेचकर मासूमों के भविष्य
को बर्बाद करके करोड़पति बन रहे नशीले धंधे में मुल्लविश सरगनाओं के सिर पर सियासी छाया तो रहता ही है,
इसलिए कानून के हाथ आसानी से इनके गिरेबान तक नहीं पहुंचते तथा कई मुलज़मीन बच निकलते हैं। मगर अब
एनसीबी द्वारा ड्रग्स के नेटवर्क से जुडे़ तथा सेलिब्रिटी का लबादा ओढे़ उन लोगों के चेहरे बेनकाब हो रहे हैं जिन्हें
देश के युवा अपना आदर्श मानते हैं। दूसरी विडंबना यह है कि देश में हर वर्ष दो अक्तूबर को गांधी जयंती धूमधाम
से मनाई जाती है। इस दिन सभी सियासी दल गांधी जी का स्मरण करके देशभक्ति का इजहार करते हैं तथा
आवाम को उनके पद्चिन्हों पर चलने का पैगाम भी दिया जाता हैं। मगर 1930 के दशक में गांधी जी ने ‘हरिजन’
तथा ‘यंग इंडिया’ नामक पत्रिकाओं के जरिए शराब को देश के लिए घातक बताकर इसका पुरजोर विरोध किया था।
‘नशा मुक्त भारत’ गांधी जी का एक सपना था, मगर आलम यह है कि आज देश की अर्थव्यवस्था में शराब अपना
मज़ीद किरदार निभा रही है, जिसके चलते लोगों की शराब के प्रति दीवानगी और बढ़ रही है और दूसरी तरफ
हमारी हुकूमतें ‘नशा मुक्ति केंद्रों’ की स्थापना भी कर रही हैं।
नशे से होने वाली असामयिक मौतों पर देश में सियासी हरारत जरूर बढ़ती है। मगर राजस्व बढ़ाने तथा युवावर्ग
को रोजगार उपलब्ध कराने वाले अन्य विकल्पों पर भी विचार होना चाहिए। देश में 70 प्रतिशत सड़क हादसे तथा
सभ्य समाज में कई संगीन वारदातों से लेकर घरेलू हिंसा के पीछे नशा है, लेकिन हर शख्स नशे के खौफनाक
अंजाम से वाकिफ होकर भी इसे नज़रअंदाज करता है। पूरी कायनात को अपनी चपेट में ले चुकी नशे की महामारी
ने देवभूमि जैसे मुकद्दस नाम के धरातल हिमाचल की नज़ाफत भरी फिजाओं के शांत वातावरण व सादगी भरे
मिजाज को भी बदल कर रख दिया है। विदेशों व महानगरों से उपजी नशाखोरी की समस्या ने आज हमारे गांव व
कस्बों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। राज्य के कई जिलों में प्रशासन द्वारा ‘नशा मुक्त’ अभियान तथा कई
समाजसेवी संगठनों द्वारा ‘भांग उखाड़ो’ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लोगों को नशे के दुष्प्रभावों से
अवगत कराने के लिए कई ग्राम पंचायतें नशा विरोधी इजलास भी करती हैं, लेकिन नशे का परिदृश्य चिंताजनक
है। दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश भारत में नशाखोरी के मकड़जाल में फंसकर जेलों में बंद ज्यादा
तादाद युवावर्ग की है। इसलिए देश में ‘मेक इन इंडिया’ या ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियान तभी सफल होंगे यदि
देश का यौवन नशे के गर्त से बचेगा। नशाखोरी किसी भी राष्ट्र की नींव को जर्जर व खोखला करने में सक्षम है।
समाज में सकारात्मक वातावरण का माहौल उत्पन्न करने के लिए नशे का समूल नाश जरूरी है। बहरहाल नशे को
नाश के नजरिए से देखकर इसके सरगनाओं तथा नशे की अवैध तिजारत पर बड़ा एक्शन चाहिए।