-ऋतुपर्ण दवे-
महंगाई वह सार्वभौमिक सत्य है जिसे लेकर शायद ही कभी ऐसा दौर रहा हो और सरकार किसी की भी हो, निशाने
पर न आई हो। मौजूदा समय में बेशक महंगाई का सबसे बड़ा खामियाजा वो मध्यम वर्ग ही झेल रहा है जिसके
पास सिवाय सीमित आय से गुजारा करने के और कोई चारा नहीं है। इस सच को भी स्वीकारना होगा कि तमाम
वायदों, प्रलोभनों और राजनीतिक दांव-पेंच के बीच कभी सस्ता तो कभी मुफ्त का अनाज, कभी गरीबों को मदद
पहुंचाने की होड़ में छूटता और पिसता मध्यम वर्ग ही है जो अपनी सीमित आय और तमाम सरकारी
औपचारिकताओं को पूरा कर हमेशा पिसता रहा है। पहले गरीब महंगाई का शिकार होते थे जब सरकारी योजनाओं
का सीधा-सीधा लाभ नहीं मिल पाता था। अब चाहे बात इनकम टैक्स की हो या मकान भाड़ा, वाहन का भाड़ा हो
या बच्चों को योग्यता के हिसाब से पढ़ाने या रहन-सहन में खर्च या फिर इज्जत के साथ परिवार के दो जून की
रोटी की कवायद। इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित मध्यम वर्ग ही हुआ है।
मौजूदा महंगाई को पहले कोविड की नजर लगी, अभी रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते ग्लोबल इकॉनामी की दुहाई। जिंस
और वित्तीय बाजारों में जैसे उतार-चढ़ाव दिख रहे हैं, वह ठीक नहीं हैं। अब ज्यादा सतर्कता के साथ वित्तीय कदम
उठाए जाने चाहिए जिससे भारत में मुद्रास्फीति और वित्तीय स्थिति पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर से निपटने में
मदद मिल सके। इसी 11 अप्रैल को सरकार द्वारा जारी किए गए डेटा बताते हैं कि मार्च-2022 में खुदरा महंगाई
दर फरवरी-2022 की तुलना में इतनी बढ़ी कि 16 महीनों के उच्चतम स्तर 6.95 प्रतिशत पर पहुंच गई। फरवरी-
2022 में यही दर 6.07 प्रतिशत थी।
इसी महंगाई दर या वृध्दि की तुलना बीते साल के मार्च से करें तो और भी चौंकाने वाला आंकड़ा सामने है। मार्च
में खाने-पीने के सामान के दामों में 7.68 प्रतिशत की वृध्दि हुई जो फरवरी में केवल 5.85 प्रतिशत थी। अंतर और
आंकड़े खुद ही कहानी कह रहे हैं। वहीं यदि इसी फरवरी-2022 के आंकड़ों पर नजर डालें तो तस्वीर बदलती दिखने
लगती है। पेट्रोल-डीजल के मूल्य में 10-10 रूपए की वृद्धि का असर माल भाड़े पर भी पड़ा और भाड़ा 15 से 20
तक तक बढ़ा। इन कारकों और कारणों से खुदरा और थोक दोनों बाजारों में अनाज, फल, दूध और सब्जियों के
दाम किस तरह से बढ़े, सबको पता है। मार्च महीने में खाने-पीने की वस्तुओं के दामों में 7.68 प्रतिशत की तेजी
आई है जबकि यही खुदरा महंगाई दर फरवरी में 5.85 प्रतिशत पर थी।
हालांकि 48 अर्थशास्त्रियों के बीच एक पोल के जरिए पहले ही यह अनुमान लगा लिया गया था कि खुदरा महंगाई
दर बढ़ गई है जो 16 महीनों के अधिकतम स्तर पर पहुंच चुकी है। बाद में यही सच निकला। सर्वेक्षण 4 से 8
अप्रैल के बीच किया गया था और सरकारी आंकड़े 11 अप्रैल को आए। फरवरी-2022 में थोक मूल्य सूचकांक
आधारित महंगाई दर 13.11 प्रतिशत रही जो 4 महीनों का उच्चत्तम स्तर था। वहीं जनवरी-2022 में दर 12.96
प्रतिशत थी जो मार्च-2022 में 14.55 प्रतिशत पहुंच गई। जबकि मार्च 2021 में यही थोक आधारित महंगाई दर
केवल 7.89 प्रतिशत थी जिसका दहाई के अंकों तक पहुंचना चिन्ताजनक है।
137 दिनों के अंतराल के बाद भारत में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में इजाफा का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जिसने
कई दिनों तक थमने का नाम नहीं लिया। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम गिर चुके थे। भारत में पेट्रोल-
डीजल के दामों में बीते 22 मार्च से इसी 6 अप्रैल तक कई बार वृध्दि हुई जो दिवाली के वक्त से नहीं बढ़े थे।
वैश्विक स्तर पर क्रूड ऑयल की कीमतों में बढ़ोतरी का असर शुरू में भारत में नहीं दिखा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
15 मार्च 2022 से पहले लगातार तीन सप्ताह तक 130 डॉलर प्रति बैरल तक उछला तेल भी टूटकर 100 डॉलर
प्रति बैरल पहुंच गया। भारत में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों उछाल दुनिया में तेल के दाम गिरने के बाद शुरू हुए।
हालांकि छह अप्रैल से कीमत नहीं बढ़ी है। लेकिन तब तक पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 10-10 रुपए का इजाफा हो
चुका था। इसी तरह एलपीजी, पीएनजी, सीएनजी के दाम भी बढ़ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल बाजार में कीमतों
में गिरावट जारी है। 3 अप्रैल को इंडियन बास्केट की कीमत गिरकर 97 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई जो मार्च
की औसत कीमत से लगभग 13 प्रतिशत सस्ती है।
महंगाई का सबसे ज्यादा असर थाली पर पड़ता है। नींबू तक ने दामों में ऐसी ऐतिहासिक छलांग मारी कि नजर
उतारने के बजाए खुद नजरिया गया। यही हाल आसमान छूते सब्जियों के दामों, दूध, फल और अन्य खाद्य
सामग्रियों पर भी पड़ा। लोहे के सरियों की कीमतें जबरदस्त उछलीं। सीमेण्ट भी प्रति बोरी 15 से 25 रुपए बढ़
गई। ईंट तक के दाम खूब उछाल पर हैं। कुछ समय पहले तक दो कमरे, एक रसोई, एक बाथरूम यानी औसत
111 गज का मकान 10 लाख रुपए में आसानी से बन जाता था अब वहीं 12-13 लाख रुपयों से भी ज्यादा हो गई
है। इधर, आम दवाइयां जैसे बुखार, दर्द निवारक से लेकर एंटीबायोटिक तक की कीमतें भी दस प्रतिशत तक बढ़ीं।
एक तरफ हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना देख रहे हैं। दूसरी तरफ लॉकडाउन ने करोड़ों
रोजगार खत्म कर दिए। अनगिनत व्यापार-व्यवसाय चौपट हुए। देखते ही देखते बड़ी संख्या में लोग एकाएक गरीब
हो गए। रही-सही कसर दो साल में कोरोना ने पूरी कर दी। अब रूस-यूक्रेन युध्द की विभीषिका के नाम पर
अर्थव्यवस्था पर भारी असर डाला है।
वैसे तो मंहगाई का सब पर असर पड़ता है। लेकिन खाली जेब आम आदमी कैसे जाएगा बाजार? सवाल फिर वही
कि महंगाई को काबू में कैसे रखा जाए? जाहिर है महंगाई वो बेलगाम घोड़ा है जिसे रोका तो नहीं जा सकता पर
काबू जरूर किया जा सकता है। हां, इसे काबू में रखना ही होगा वरना जीवन और कठिन हो जाएगा।