प्रधानमंत्री मोदी कर्नाटक की चुनावी सभाओं में ‘बजरंग बली की जय’ का उद्घोष कर रहे हैं और जनता की प्रतिक्रिया भी पुरजोर से सामने आ रही है। यह नए किस्म की, नए मुद्दे पर हिंदूवादी चुनावी राजनीति है। प्रधानमंत्री जनता से साझा कर रहे हैं कि कांग्रेस ने पहले प्रभु श्रीराम को ताले में बंद किया और अब जो भी ‘बजरंग बली की जय’ बोलेगा, उसे जेल में डाल दिया जाएगा। हालांकि हकीकत यह नहीं है। प्रधानमंत्री उसकी व्याख्या कर रहे हैं, जो कांग्रेस ने घोषित किया है। कांग्रेस ने यह मुद्दा पैदा कर अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारी है। चुनाव घोषणा-पत्र में बजरंग दल पर पाबंदी लगाने की बात कहने की जरूरत ही क्या थी? उसकी आतंकवादी, प्रतिबंधित संगठन पीएफआई से तुलना कैसे की जा सकती है? गौरतलब सवाल यह भी है कि भगवान बजरंग बली और बजरंग दल क्या समानार्थी, पूरक, पर्यायवाची हैं? ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री समेत भाजपा और उसके काडर ने दोनों की साम्यता की व्याख्या की है।
प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि बजरंग बली का नाम लोगे, तो जेल के ताले में बंद कर दिए जाओगे। अपने मुद्दे को ठोस जमीन देने के लिए भाजपा वाले और हिंदूवादी देश भर के गांवों और मंदिरों में ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ करेंगे। चुनाव है या कोई धार्मिक आंदोलन है! आस्थामय भावनाओं का मुद्दा बना दिया गया है, लिहाजा कर्नाटक के करीब 84 फीसदी हिंदुओं के भीतर पलट-प्रतिक्रिया हो सकती है। एक अनुमान है कि कर्नाटक में 35-40 फीसदी हिंदू बजरंग बली के कट्टर भक्त हैं। चुनावी ध्रुवीकरण ऐसी ही परिस्थितियों में कराए जा सकते हैं। ऐसे हालात में शेष संवेदनशील और बुनियादी समस्याओं पर धुंध छा जाती है। कांग्रेसी घोषणा-पत्र में बजरंग दल पर पाबंदी का ऐलान भी कांग्रेस की अनधिकार चेष्टा है, क्योंकि ऐसे प्रतिबंध भारत सरकार का ही विशेषाधिकार है। राज्य सरकार सिर्फ परामर्श दे सकती है। यदि विधानसभा में प्रस्ताव पारित हो भी जाए, तो अंतिम और निर्णायक प्रतिबंध के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को ही भेजना अनिवार्य है।
दरअसल बजरंग दल के खिलाफ विदेशी आतंकी फंडिंग, हथियारों को जमा करने, उनके प्रशिक्षण, बम बनाने और विस्फोट करने, अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से रिश्ते और साजिशाना सांठगांठ और आतंकी हमले कराने सरीखे देश-विरोधी, घोर आपराधिक मामले दर्ज नहीं हैं। बजरंग दल उत्साही, उन्मादी, उत्पाती, हिंदूवादी संगठन हो सकता है, लेकिन 25 लाख से ज्यादा सदस्यों वाला संगठन ‘आतंकवादी’ करार नहीं दिया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र ने उस पर पाबंदी चस्पा करने की कभी कोशिश नहीं की है और न ही ऐसा कोई विमर्श किया गया है। बजरंगियों पर कुछ आपराधिक केस भी दर्ज हो सकते हैं, गोवध के संदर्भ में कुछ ज्यादतियां भी की गई हैं, उनके कई पूर्वाग्रह भी हैं, लेकिन वे अपवाद हैं, आतंकवाद नहीं हैं।
कांग्रेस ऐसा दुस्साहस केंद्र में नरसिंह राव सरकार के दौरान कर चुकी है, जब 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या का विवादित ढांचा ध्वस्त करने के बाद बजरंग दल और आरएसएस को प्रतिबंधित किया गया था। ट्रिब्यूनल की पहली सुनवाई में ही केस धराशायी हो गया, क्योंकि तत्कालीन भारत सरकार बजरंग दल के ‘आतंकी’ होने का कोई साक्ष्य नहीं दे सकी। दरअसल बजरंग दल की छवि ही ऐसी है। अलबत्ता यह राष्ट्रीय धर्म, सेवा, सुरक्षा, संस्कार के ध्येय वाक्य वाला संगठन है। हालांकि उसने लव जेहाद, धर्मांतरण, हिजाब सरीखे सांप्रदायिक मुद्दे भी उठाए हैं। दरअसल कर्नाटक चुनाव के संदर्भ में कांग्रेस का मंसूबा और एजेंडा साफ था कि वह ऐसी घोषणा कर ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों के वोट बटोर ले। ऐसा कभी नहीं हुआ करता, क्योंकि मुसलमान जद-एस और भाजपा के पक्ष में भी वोट करते हैं। केंद्र में जब कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी, तब के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से ‘हिंदू आतंकवाद’ की बात कहलवाई गई थी। बहरहाल, कांग्रेस सोच ले कि उसका चुनावी हश्र क्या हो सकता है।