आम बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए ठीक-ठाक राशि का ही प्रस्ताव किया गया। भारत अपने रक्षा बजट की किसी भी सूरत में अनदेखी नहीं कर सकता। कारण हम सबको पता है। हमारे दो गैर-जिम्मेदाराना हरकतों के लिये कुख्यात पड़ोसी-चीन और पाकिस्तान भारत के कट्टर शत्रु देश हैं। इनसे भारत के कई युद्ध भी हो चुके हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान तो भारत में आतंकवाद को लगातार हवा-पानी देता रहता है। यह हमने हाल ही में जम्मू में भी देखा। जम्मू क्षेत्र में आतंकी हमलों में वृद्धि के मद्देनजर, थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने विगत 20 जुलाई को जम्मू का दौरा भी किया था। वह वहां सुरक्षा स्थिति की समीक्षा करने के लिए गए थे। इस दौरान उन्होंने आला सैनिक अफसरों के साथ आतंकवाद को कुचलने की रणनीति पर भी बातचीत की थी। जम्मू में इस साल छह अलग-अलग आतंकी हमलों में 11 सशस्त्र बल कर्मियों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा, पिछले महीने आतंकियों ने रियासी में एक बस पर फायरिंग की थी। इसके बाद बस के खाई में गिरने से 9 यात्रियों की मौत हो गई थी। इसके अलावा अक्टूबर 2021 से आतंकवादी डोडा, कठुआ और रियासी जैसे क्षेत्रों में और भी अंदर तक पहुंच गए हैं। पिछले महीने जनरल मनोज पांडे से सेना प्रमुख के रूप में पदभार संभालने के बाद से जनरल द्विवेदी का जम्मू क्षेत्र का यह दूसरा दौरा था।
तो बहुत साफ है कि भारत के रक्षा क्षेत्र के सामने बहुत चुनौतियां है। उसे पाकिस्तान और चीन की करतूतों से लगातार लड़ना पड़ता है। भारत की पाकिस्तान से 1947, 1965, 1971 और फिर करगिल में जंग हुई। चीन से भी हमारी भीषण जंग 1962 में हुई। कुछ साल पहले चीन से दोकलम में भी लड़ाई की ही नौबत आ चुकी थी। लेकिन, भारत की कुशल कूटनीति से युद्ध टल गया था। भारत के चीन और पाकिस्तान से कई विषयों पर विवाद हैं। इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने समझदारी पूर्वक रक्षा बजट के लिए एक बड़ी राशि देने का प्रस्ताव रखा।
चीन ने 1962 की जंग के बाद हमारे अक्सईचिन पर अपना जबरदस्ती कब्जा जमा लिया था। यह क्षेत्र 37, 244 वर्ग किलोमीटर है जिसमें अनेक गलैशियर भरे पड़े हैं। यह पूरे कश्मीर घाटी जितना बड़ा इलाका है। भारत को उस चीन द्वारा जबरदस्ती ढंग से कब्जाए क्षेत्र को वापस तो लेना ही है। चीन हमारे अरुणाचल प्रदेश पर भी गिद्ध दृष्टि रखता है। तो भारत को अपने रक्षा बजट को निरंतर बढ़ाने के साथ सेना के सभी अंगों को और मजबूत तो करना ही होगा। इस बारे में कोई बहस संभव नहीं है।
भारत लगातार अपने रक्षा क्षेत्र को बदलते वक्त के साथ तैयार भी कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त, 2019 को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीए) पद सर्जित करने की घोषणा की थी। यह कदम भारतीय सशस्त्र बलों में आपसी तालमेल को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। हालांकि यह पहल कारगिल युद्ध के 18 साल बाद हुई। आप जानते हैं कि कारगिल युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के गले में अंगूठा डाल दिया था। कारगिल युद्ध भारतीय सेना और राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों के लिए एक बड़ा झटका था। 84 दिनों तक चला यह युद्ध 15, 000 फीट की ऊँचाई पर 200 किलोमीटर लम्बी सीमा पर लड़ा गया। यह युद्ध भारतीय सेना के लिए प्रमुख सुधारों और नवीनीकरण का उत्प्रेरक बना। देश की सरहदों की निगाहबानी करने वालों के लिए कारगिल का सबसे बड़ा सबक था -अप्रत्याशित की उम्मीद करना। भारतीय सेना ने कभी नहीं सोचा था कि जनरल परवेज मुशर्राफ के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना कारगिल सेक्टर में घुसपैठ करेगी। कारगिल युद्ध का एक महत्वपूर्ण सबक यह भी था कि भारत को आधुनिक हथियारों और गोला-बारूद में आत्मनिर्भर होना होगा।
यह तो जाहिर है कि भारत सरकार ऱक्षा क्षेत्र के सामने कभी धन की कमी महसूस नहीं होने देती। जब देश के इर्द-गिर्द दो बड़े शत्रु राष्ट्रों की सरहदें मिलती हो तब भारत से यह अपेक्षा करना उचित ही नहीं होगा कि वह अपने रक्षा बजट में कटौती करने की सोचे भी। अगर बात आम बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए धन की आवंटन से हटकर करें, तो भारत को अपने रक्षा क्षेत्र में लगातार सुधार करते ही रहना होगा। यह अच्छी बात है कि सरकार सेना, नौसेना और वायु सेना के एकीकरण पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जो संकट के समय में उनके बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करेगा। पहले तीनों सेनाएं अपने-अपने स्तर पर काम करती थीं। मौजूदा सरकार ने उनके एकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया, जो लीक से हटकर कर एक अलग कदम था और यह समय की मांग भी थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा भी था सेना के तीनों अंगों में समन्वय का काम थोड़ा कठिन था; लेकिन, अब हमारी सेना बेहतर समन्वय के साथ हर चुनौती से निपटने के लिए मिलकर काम करने को तैयार रहती है।
कुछ लोगों का विचार था, स्वदेशी हथियार विश्व स्तरीय नहीं होंगे; लेकिन, वर्तमान सरकार घरेलू उद्योग की क्षमताओं में विश्वास करती है। यह जान लीजिए कि कोई भी सेना बाहर से आयातित उपकरणों से अपने देश की रक्षा नहीं कर सकती है और आज के समय में भारत के लिए रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता आवश्यक है। आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत सरकार के लगातार प्रयास अब लाभ देने लगे हैं, क्योंकि; भारत का रक्षा उत्पादन एक लाख करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है।
उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित करने जैसी पहल के माध्यम से सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि आधुनिक सैन्य साजो-सामान न केवल भारत में निर्मित हो, बल्कि उन्हें मित्र देशों को भी निर्यात किया जाए। पहले भारत को हथियार आयातक राष्ट्र के रूप में जाना जाता था। लेकिन, आज भारत अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आ गया हैं और हमने हथियार निर्यातक शीर्ष-25 देशों की सूची में जगह बना ली है। कुछ साल पहले तक
भारत के रक्षा क्षेत्र का निर्यात 1, 000 करोड़ रुपये तक भी नहीं पहुंच पाता था, जबकि आज यह 16, 000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। सरकार को 2028-29 तक वार्षिक रक्षा उत्पादन तीन लाख करोड़ रुपये और रक्षा निर्यात 50, 000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशा है।
संक्षेप में इतना ही कहना काफी होगा कि भारत सरकार को अपने रक्षा क्षेत्र पर लगातार फोकस देते रहना ही उचित होगा।