विकास गुप्ता
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। पूरा विश्व इस मर्ज की दवा ईजाद करने में पूरी
ताकत से जुटा है। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक डरावनी चेतावनी जारी की है। स्वास्थ्य
संबंधी दुनिया के सबसे बड़े संगठन का कहना है कि वैक्सीन बनने के दृढ़ विश्वास के बीच संभव है कि कोरोना
महामारी का प्रभावी समाधान कभी न निकले। साथ ही कहा, हो सकता है कि सामान्य स्थिति बहाल होने में लंबा
वक्त लगे। दुनिया भर में 1.81 करोड़ से ज्यादा लोग इस महामारी से प्रभावित हैं और करीब 6.88 लाख से
ज्यादा लोगों की अब तक मौत हो चुकी है। कोरोना के खतरे के बीच हर चीज पर असर पड़ा है। बच्चों की पढ़ाई
भी प्रभावित हुई है। कोरोना वायरस ने शिक्षा व्यवस्था को इस कदर पंगु बना दिया है कि नुकसान का पूरा अंदाजा
भी नहीं लगाया जा सकता। इस बारे में अभी जो शुरुआती रिपोर्ट और सूचनाएं आ रही हैं वे बेहद चिंताजनक हैं।
पिछले दिनों बच्चों से जुड़े मसलों पर काम करने वाले जाने-माने एनजीओ सेव द चिल्ड्रेन ने एक रिपोर्ट जारी की
'सेव द एजुकेशन'।
इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में कोरोना से उपजी परिस्थितियों के चलते जिन बच्चों की पढ़ाई छूट गई है, उनमें
लगभग एक करोड़ ऐसे हैं जो दोबारा स्कूल का मुंह भी नहीं देख पाएंगे। रिपोर्ट में यूनेस्को के आंकड़ों का हवाला
देकर बताया गया है कि अप्रैल में कोरोना के चलते दुनिया भर के करीब 160 करोड़ बच्चे और किशोर स्कूल-
कॉलेजों से बाहर हो गए। इंसानी सभ्यता के इतिहास में यह पहला मौका है जब पूरी दुनिया के स्तर पर एक पीढ़ी
की शिक्षा में इस तरह का व्यवधान आया। हालांकि स्कूल-कॉलेज बंद होने के बावजूद पढ़ाई जारी रखने की कोशिशों
के तहत इंटरनेट के जरिए लैपटॉप और स्मार्ट फोन पर ऑनलाइन पढ़ाई की कवायद जारी है, लेकिन इसकी सीमाएं
पहले दिन से स्पष्ट हैं। क्लास रूम इंटरैक्शन की जगह फोन पर चलने वाली क्लास ले ही नहीं सकती। मगर बड़ा
सवाल तो यह है कि यह सुविधा भी कितने स्टूडेंट्स को हासिल है।
लैपटॉप या स्मार्ट फोन पर इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ-साथ घर में ऐसा एक अलग कोना भी कितने स्टूडेंट्स को
मिल सकता है जहां बैठकर वे फोन के जरिए पढ़ाए जा रहे पाठों पर ध्यान केंद्रित कर सकें। इससे भी बड़ी बात
यह कि कोरोना और लॉकडाउन के चलते आई आर्थिक दिक्कतों ने बहुत सारे परिवारों को जिन हालात में पहुंचा
दिया है, उनमें बच्चों को दोबारा स्कूल में दाखिला दिलाने की वे सोच भी नहीं सकते। इन बच्चों को दाना-पानी
जुटाने की कवायद में भी हाथ बंटाना पड़ रहा है और यह काम छुड़ाकर उनकी पढ़ाई का खर्च फिर से सिर पर
लिया जाए, ऐसी स्थिति इन परिवारों की जल्दी नहीं होने वाली। शिक्षा का हाल कोरोना से पहले भी बहुत अच्छा
नहीं था। तब भी दुनिया के 25 करोड़ से ज्यादा बच्चे शिक्षा व्यवस्था से बाहर ही थे। लेकिन यह आपदा उन बच्चों
की भी एक बड़ी तादाद को इस व्यवस्था से बाहर धकेल रही है, जो बड़ी मुश्किल से इसमें शामिल हो पाए थे। इन
कठिन परिस्थितियों में बीमारी से राहत मिलते ही अगर शिक्षा को लेकर विशेष प्रयास नहीं किए गए तो 2030
तक दुनिया के सभी बच्चों को स्तरीय शिक्षा से जोडऩे का वैश्विक लक्ष्य दशकों दूर चला जाएगा।