पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लगातार आक्रामक होने के मध्य में देश के कुछ प्रमुख विपक्षी नेताओं के आईफोन पर निगरानी किये जाने का मामला एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा कर रहा है। इसे सरकार प्रायोजित बताकर सरकार को घेरने की कोशिशें भी एकाएक उग्र हो गयी है। एप्पल कम्पनी ने इन फोन धारकों को ईमेल सन्देश भेज कर लिखा है कि आपके फोन को किसी ‘मालवेयर वायरस’ से सरकार द्वारा सर्वेक्षण में रखा जा रहा है जिसके माध्यम से आपकी सारी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। मगर इसके साथ ही सरकार ने ऐसी किसी कार्रवाई से इन्कार करते हुए पूरे मामले की सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्रालय की संसदीय समिति से जांच कराने की घोषणा कर दी है और कहा है कि ऐसा ही एक ई-मेल सन्देश वाणिज्य मन्त्री पीयूष गोयल को भी आया है। फोनों पर निगरानी का आरोप सरकार के लिए भी गंभीर चिन्ता का विषय है क्योंकि यह ऐसा मामला है जिसमें सत्ता से बेदखल होने जैसी स्थितियां बनती हैं। जब तक मामले की पूरी जांच नहीं हो जाती, किसी को भी दोषी ठहराना जल्दीबाजी होगी। पक्ष-विपक्षी दल चुनावी माहौल को धुंधलाने या विवादास्पद बनाने की बजाय उसे स्वस्थ बनाने में सहयोग करें, यह स्वस्थ एवं आदर्श लोकतंत्र की बुनियाद है। किसी की स्वतंत्रता का हनन लोकतंत्र की पवित्रता को ही समाप्त कर देती है।निश्चित ही किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार की ओर से विपक्षी नेताओं की निजता भंग करने का कोई भी मामला सामने आता है, तो स्वाभाविक ही सरकार को घेरा जाना चाहिए एवं जवाब मांगा जाना चाहिए। लेकिन बिना बुनियाद के ऐसे विवाद खड़े करना उचित नहीं है। अच्छी बात इस मामले में यह है कि सरकार ने इन आरोपों को पूरी गंभीरता से लिया है और तत्परता से निर्णय लेते हुए न केवल पूरे मामले की विस्तृत जांच के आदेश दे दिए गए हैं बल्कि आईफोन कंपनी से भी जांच में शामिल होने को कहा गया है। सभी पक्षों के लिए जरूरी है कि निष्कर्ष निकालने की जल्दबाजी करने के बजाय मामले की बारीक और विश्वसनीय जांच सुनिश्चित करने में सहयोग करें। यह न केवल विपक्षी दलों के नेताओं की निजता से जुड़ा मामला है बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा एवं प्रतिबद्धता का भी मामला है।हालांकि यह साफ करना भी जरूरी है कि मौजूदा मामले में अभी बात सिर्फ संदेह की है। आईफोन पर ऐपल की ओर से भेजे गए ये मेसेज ऑटो जेनेरेटेड थे, जिनकी प्रामाणिकता को लेकर कंपनी भी आश्वस्त नहीं है। उसका कहना है कि इनमें से कुछ मेसेज फॉल्स अलार्म के भी हो सकते हैं। इसके बावजूद विपक्षी नेताओं की आशंकाएं निराधार हैं या आधारभूत हैं, यह तो जांच के निष्कर्षों से ही पता लगेगा। मेसेज विपक्षी दलों के नेताओं और कुछ सत्ता विरोधी माने जाने वाले पत्रकारों के ही फोन पर आने का आरोप निराधार है क्योंकि ऐसा ही मेसेज एक केन्द्रीय मंत्री को भी मिला है। सूचना टैक्नोलॉजी क्रान्ति होने के बाद चीजें काफी बदल चुकी हैं अतः आरोपों का स्वरूप भी बदल चुका है। इससे पहले दो वर्ष पूर्व भी देशवासियों ने ‘पेगासस’ वायरस का पूरा कर्मकांड देखा है जिसकी जांच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक विशेष समिति ने की थी। इस मामले को लेकर दो साल पहले संसद में भी जमकर हंगामा हुआ था। लेकिन उसमें आरोप सिद्ध नहीं हो पाये थे। ऐसे में जब विपक्षी नेताओं के फोन की हैकिंग का यह नया आरोप लगा है तो उसे पूरी गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस मामले को लेकर आरोप-प्रत्यारोप से बचते हुए सत्य के उजागर होने तक इंजतार करना चाहिए। सरकार की तरफ से यह भी कहा गया है कि वह पूरे प्रकरण की जांच में एप्पल कम्पनी के उच्च पदाधिकारियों को भी पूछताछ के लिए बुला सकती है। इस मामले में मूल सवाल निजी स्वतन्त्रता का उठता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों का मूल अधिकार मान चुका है। लोकतांत्रिक प्रणाली में सभी को लिखने, बोलने, सोचने और करने की स्वतंत्रता होती है।