शिशिर गुप्ता
मानव जीवन में प्लास्टिक जनित वस्तुओं का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। प्लास्टिक को न तो
जलाया जा सकता है और न ही जमीन पर फेंका जा सकता है। यह दोनों ही तरफ से मानव और
पर्यावरण को क्षति पहुंचाता है। लेकिन अधिकतर लोग यह अनुमान तक नहीं लगा पाते कि इसका मानव
जाति पर कितना भयावह असर पड़ता है। नतीजतन, लोग बेधड़क इसका उपयोग करते जा रहे हैं। पहले
बरसात में लोग प्लास्टिक के जूते-चप्पल का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब तो बच्चों के खिलौने से
लेकर भोजन के प्लेट, तश्तरी, कटोरी, बिजली के तार, हैंडल, टेलीफोन आदि सब में प्लास्टिक का
उपयोग होना आम बात हो गई है। प्लास्टिक का घातक साम्राज्य सभी जगह व्याप्त हो चुका है। इसका
परिणाम व्यक्ति के जीवन को सीधे प्रभावित भी करता रहा है।
प्लास्टिक के उत्पाद और उसका उपयोग का प्रतिशत निरंतर बढ़ता ही रहा है। वर्ष 1950 से अब तक
दुनिया में 8 अरब 30 करोड़ टन से भी अधिक प्लास्टिक उत्पादन हो चुका है। साथ ही प्रत्येक वर्ष
दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक की थैलियां उपयोग की जाती हैं। प्रश्न उठता है कि क्या मानव
समाज प्लास्टिक उपयोग करते समय इसका ध्यान रखता है कि यह प्लास्टिक नष्ट होने में कितना
समय लेता है। शायद कभी नहीं सोचता होगा। किसी प्लास्टिक जनित वस्तु को नष्ट होने में 800 से
1000 वर्ष तक का समय लगता है। मानव तो स्वभाव से ही उपयोगितावादी रहा है। वह केवल उपयोग
करना जानता है। उसके परिणामों पर ध्यान नहीं देता है। पर्यावरण की रक्षा का अपना दायित्व भी नहीं
समझता है।
इसी कारण आज पृथ्वी पर प्लास्टिक कचरा इतना अधिक जमा हो चुका है कि पृथ्वी मंडल को चारों
ओर से पांच बार लपेटा जा सकता है। बताना जरूरी है कि प्लास्टिक के उपयोग से कई बीमारियां
खासकर चर्म रोग और कैंसर होता है। पॉलीथिन खाने से हर साल करीब हजारों की तादाद में पशुओं,
खासकर गोवंश की मौत हो जाती है। इसलिए मनुष्य को प्लास्टिक 'उपयोग करो और फेंको' की नीति से
उबरने की आवश्यकता है। मनुष्य की उपयोगितावादी नीति के कारण ही प्लास्टिक भारत में प्रतिदिन
2000 टन से भी ज्यादा उत्पन्न होता है। एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्र में लगभग 5000 अरब प्लास्टिक
के टुकड़े तैर रहे हैं। इसी के कारण जलीय जीवों को भी समय रहते काल के गाल में समाना पड़ रहा है।
व्यक्ति कांच या स्टील की वस्तुओं का उपयोग करता है तो उनका जीवन काल लगभग 1 वर्ष या 2 वर्ष
होता है लेकिन प्लास्टिक से बनीं पॉलीथिन बैग्स मात्र एक बार उपयोग करने के बाद फेंक दिया जाता
है। इसलिए जल्दी से जल्दी कचरे का ढेर इकट्ठा हो जाता है। इसको जलाया भी नहीं जा सकता क्योंकि
इसके जलने से समूचा वातावरण प्रदूषित हो जाता है और विविध प्रकार के रोग जन्म लेने लगते हैं।
अतः सरकार को चाहिए कि प्लास्टिक उपयोग पर प्रतिबंध लगाए। इसके लिए प्लास्टिक उत्पादन करने
वाले उद्योगों पर भी प्रतिबंध लगाना होगा। निश्चित ही इन उद्योगों में कार्य कर रहे मजदूरों के
बेरोजगार होने की आशंका होगी लेकिन जीवन ज्यादा जरूरी है। सरकार और उद्योगपतियों को चाहिए
कि प्लास्टिक उद्योग में लगे श्रमिकों का किन्हीं और उद्योग में काम दें ताकि उनकी रोजी-रोटी पर भी
संकट नहीं आए और उनका जीवन भी सुरक्षित रहे। साथ ही प्लास्टिक इकट्ठा करने वाले लोगों को वित्त
सहायता का भी प्रावधान करना चाहिए। केवल भारत ही नहीं, विश्व के लगभग 40 देश प्लास्टिक कचरे
के संकट से जूझ रहे हैं। भारत में लगातार यह संकट अपना विकराल रूप धारण करता जा रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने के अनुसार दिल्ली में 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426
टन और मुंबई में 408 टन प्लास्टिक रोज उत्पादित होता है।
इस पर रोक लगाने के लिए सरकारी नीतियां कारगर तब तक नहीं होंगी जब तक कि व्यक्ति स्वयं
जागरूक नहीं होगा। इसके लिए लोगों को एक साथ मिलकर स्वच्छ भारत मिशन की तरह ही प्लास्टिक
मुक्त भारत करने का प्रण करना होगा और अपने पर्यावरणीय कर्तव्य को जानना होगा। दूसरों को भी
इसके लिए जागरूक करना होगा। प्लास्टिक मुक्त देश बनाने के लिए सभी लोगों को इसके खतरनाक
प्रभावों से अवगत कराकर प्लास्टिक मुक्त भारत बनाने में सहयोग प्राप्त करना होगा। तभी यह माना
जा सकता है कि देश से प्लास्टिक का निपटान कम किया जा सकता है अन्यथा यह मानव जाति के
लिए दिन-प्रतिदिन विकराल रूप धारण करता रहेगा।