प्रशासनिक लापरवाही

asiakhabar.com | May 30, 2020 | 5:13 pm IST
View Details

शिशिर गुप्ता

कोरोना के दबाव में कुछ प्रशासनिक गलतियां अखरती हैं या विषय इतने कठिन हो गए कि हमीरपुर प्रशासन के
हाथ पांव फूलने लगे। पहले एक अफवाह बन कर जिस तरह कुछ मामले पॉजिटिव बना दिए गए अब उससे उलट
रिपोर्ट को समझे बिना पंद्रह पॉजिटिव लोगों को घर भेजकर काम के प्रति अगंभीर रवैया दर्ज हुआ है। लापरवाही
लगातार हो रही है या जिंदगी के प्रति हमीरपुर प्रशासन का रवैया बेहद कमजोर है। ऐसी अनेक शिकायतों के बीच
क्वारंटीन से कोविड सेंटर तक अगर व्यवस्था को यह समझ नहीं आ रहा कि इस संकट से समाज को बाहर कैसे
निकाला जाए, तो कहीं समन्वय की कमी है। कुछ मामलों में जनता भी खौफ की बंदिशों से बाहर दुस्साहस करके
सारी चौकसी को तार-तार कर रही है। जिस तरह होम क्वारंटीन के अर्थ को तहस नहस करके एक कंडक्टर ने सारे
बिलासपुर शहर को कंटेनमेंट जोन में बदल दिया या ऐसी ही शिकायतों ने पालमपुर प्रशासन के कान खड़े किए हैं,
तो यह खतरे की घंटियां हैं। आश्चर्य यह कि सरकार के दिशा-निर्देशों की अवहेलना में समाज भी आंखें दिखाने लगा
है। सुबह की सैर की छूट क्या मिली, लोग मास्क के बिना तफरीह कर रहे हैं। बाजार के द्वार क्या खुले जनता
डिस्टेंसिंग का अर्थ भूल गई। इन तमाम झमेलों में प्रशासन की निगाह हमेशा चुस्त न रही, तो दो महीने की
मेहनत बर्बाद हो जाएगी। यहां कुछ जिलों के उदाहरण राष्ट्रीय स्तर तक चर्चाओं में रहे, तो इसका भी जिक्र होगा।
बेशक हमीरपुर में कोरोना पॉजिटिव होने की रफ्तार व शुमारी हैरान करती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि आई
एस एम आर के निर्देशों के विपरीत चल कर कुछ हासिल होगा। हमीरपुर प्रशासन लगातार उसी मुहाने पर खड़ा है,
जहां जनता का मनोबल गिर रहा है। पहले तीन सामान्य लोगों को पॉजिटिव घोषित करके सार्वजनिक तौर पर
खिल्ली उड़ाने वाले नहीं सुधरे तो अब अपनी जल्दबाजी में सारी जांच प्रक्रिया को ठेंगा दिखाकर पंद्रह पॉजिटिव
लोगों को घर पहुंचाने वाले कैसे माफ किए जा सकते। यह दोष अब पूरी प्रक्रिया, व्यवस्था तथा जिम्मेदार विभागों
का ही माना जाए। एक साथ इतनी बार गलतियों को अंजाम देने वाले दरअसल पूरे प्रदेश की छवि पर भी चोट कर
रहे हैं। अगर ऐसी ही व्यवस्था करके अन्य जिला भी चलें तो सारा बंदोबस्त चौपट हो जाएगा। प्रदेश का सबसे बड़ा
जिला कांगड़ा अपने आप में एक अनुशासित पद्धति अपना कर जनता के बीच विश्वसनीय बना है, तो इसका
असर मनोवैज्ञानिक भी है। परौर जैसे क्वारंटीन सेंटर का उल्लेख इसलिए जरूरी है क्योंकि यहां सबसे अधिक लोग
ठहराए जाते हैं। सबसे अधिक कोरोना पॉजिटिव मरीजों को प्रश्रय देकर भी बैजनाथ का कोविड सेंटर नहीं हांफा, तो
उस तालमेल का जिक्र होगा जो स्वास्थ्य, पुलिस व प्रशासन के बीच स्थायी रूप से जिम्मेदारी व जवाबदेही को
प्रदर्शित करती है। कुछ इसी तरह ऊना प्रशासन का भी उल्लेख करना होगा जो बाहर से लौट रहे अधिकांश
हिमाचलियों को आश्वस्त करता है कि वे एक अति सुरक्षित प्रक्रिया से अपने घर पहुंच पाएंगे। हिमाचल में अब
तक पहुंचे करीब पौने दो लाख लोगों में से दो तिहाई केवल ऊना के रास्ते ही आए है। बाहरी राज्यों से आई ट्रेनें भी
ऊना आईं, लेकिन विभागीय तालमेल का अनुपम नजारा हर वक्त मौजूद रहा। रेलगाडि़यां दिन में आईं या रात्रि के
मध्य पहुंची, ऊना के मुख्य चिकित्सा अधिकारी, पुलिस प्रमुख व जिलाधीश हमेशा वहां आवश्यक कदम उठाते
दिखे। ऐसे में हमीरपुर की नाकामी सिर्फ इक्का-दुक्का घटना नहीं, बल्कि संवेदनहीनता, लापरवाही व अगंभीरता

दिखाती है। प्रदेश जब ऊना की मिसाल देखता है, तो उसे भरोसा होता है कि हिमाचल अति सुरक्षित है। कमोबेश
हर जिला का प्रशासन अपने कर्त्तव्य और आवश्यक कार्रवाइयों से सबसे बड़ा संदेश भी यही देता है कि कोरोना की
जंग में उस पर विश्वास रखें, लेकिन हमीरपुर के घटनाक्रम में कोई कैसे भरोसा करे कि जिन्हें ढंग से रिपोर्ट पढ़नी
नहीं आती, वे तमाम अधिकारी कल कोई और गलती नहीं करेंगे।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *