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विनय गुप्ता
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पड़ोसी देश
बांग्लादेश पहुंच रहे हैं। चुनावी पंडित उनके इस दौरे को बंगाल दुर्ग को भेदने और पड़ोसी देश से और मधुर रिश्तों
के लिहाज से खास बता रहे हैं। पीएम अपनी यात्रा में वहां के प्रसिद्व मंदिर ओरकांडी में भी जाना तय किया है
जिसके पीछे का मकसद मतुआ समुदाय को अपने पक्ष में करना शामिल है। दरअसल, बांग्लादेश से सटे बंगाल के
वे इलाके, जिनमें तकरीबन 50-55 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, वहां मतुआ समुदाय की मजबूत पकड़ है। पश्चिम
बंगाल के नदिया से लेकर उत्तर और दक्षिण के 24-परगना तक मतुआओं का बड़ा दबदबा है। इसी वजह से पश्चिम
बंगाल विधानसभा के पहले चरण के चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बंग्लादेश दौरा चुनावी समीकरणों के
हिसाब से बहुत खास माना जा रहा है।
बंगाल में रहने वाले मतुआ समाज का राजनीतिक लहजे से बांग्लादेश से बड़ा कनेक्शन है। बंगाल चुनाव और
मतुआ समुदाय की राजनीतिक अहमियत को अगर ठीक से समझें तो कई बातें स्पष्ट हो जाती हैं। दरअसल मतुआ
समुदाय के लोग मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान से ताल्लुक रखते थे जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है। समाज में
प्रचलित वर्ण व्यवस्था को समाप्त करने के लिए इनको एकजुट करने का काम साठ के दशक में सबसे पहले,
समाज सुधारक हरिचंद्र ठाकुर ने किया था। बंगाल के मतुआ समुदाय के लोग हरिचंद्र ठाकुर को भगवान मानते हैं
जिनका जन्म बांग्लादेश के एक बेहद गरीब और अछूत नमोशूद्र परिवार में हुआ था। माना जाता है कि इस
समुदाय से जुड़े काफी लोग देश के विभाजन के बाद धार्मिक शोषण से तंग आकर 1950 की शुरुआत में बंगाल आ
गए थे।
मौजूदा समय में पश्चिम बंगाल में इनकी आबादी करीब दो से तीन करोड़ के आसपास है। बंगाल के कुछ जिले जैसे
नदिया, उत्तर और दक्षिण 24-परगना में करीब सात लोकसभा सीटों पर उनके वोट निर्णायक होते हैं। यही वजह है
कि मोदी ने बीते लोकसभा चुनावों से पहले फरवरी की अपनी रैली के दौरान इस समुदाय की माता कही जाने वाली
बीनापाणि देवी से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद लिया था। वीणापाणि देवी, हरिचंद्र ठाकुर के परिवार से आती हैं
और इन्हें बंगाल में 'बोरो मां' यानी 'बड़ी मां' कह कर संबोधित किया जाता है। लेफ्ट और टीएमसी की हुकमूतों ने
इस समुदाय का चुनावों में जमकर इस्तेमाल किया। लेकिन इस बार ये समुदाय उनसे छिटकर भाजपा के पाले में
हैं। भाजपा ने इनको पूर्णरूपी नागरिकता देने और उनका सामाजिक-राजनैतिक रूप से उद्वार करने का वादा किया
है। हालांकि मतुआ समुदाय ने अभी अपने पत्ते पूरी तरह से नहीं खोले हैं। लेकिन इशारा भाजपा की तरफ है। फिर
भी सवाल एक ये भी उठने लगा है कि बंगाल चुनाव में मतुआ समुदाय किसके साथ पूरी तरह से रहेगा?
पूर्ववर्ती सरकारों ने मतुआओं के साथ राजनैतिक रूप से बड़ा छल किया। ये लोग करीब 35 वर्ष तक लेफ्ट को
समर्थन देते रहे। लेकिन बदले में उन्हें सिर्फ धोखा ही मिला। बाद में ममता बनर्जी ने इनपर डोरे डाले तो उनके
समर्थन में आ गए। कमोबेश, उन्हें वहां भी निराशा हाथ लगी। अब भाजपा से इनको बड़ी उम्मीदें हैं। ये सच है कि
पश्चिम बंगाल की राजनीति में लेफ्ट की बड़ी ताकत हुआ करते थे मतुआ समुदाय। लेकिन लेफ्ट के शासन में उन्हें
वह सब नहीं मिला। लेफ्ट से टीएमसी की तरफ इनका वोट शिफ्ट करने के पीछे एक बड़ी वजह खुद ममता बनर्जी
रही हैं। उन्होंने ही पहली बार इस समुदाय को एक वोट बैंक के तौर पर विकसित किया। ममता 'बोडो मां' के
परिवार को राजनीति में लेकर आई। साल 2014 में बीनापाणि देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने तृणमूल
कांग्रेस के टिकट पर बनगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे। साल 2015 में कपिल कृष्ण ठाकुर के
निधन के बाद उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर ने उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर यह सीट जीती थी।
इसके बाद बंगाल में अपने विस्तार की आस लगाए भाजपा की निगाहें भी इसी वोट बैंक पर जाकर टिक गई।
'बोड़ो मां' यानी मतुआ माता के निधन के बाद परिवार में राजनीतिक मतभेद खुलकर आ गए और अब ये समुदाय
दो गुटों में बंटा हुआ है। भाजपा ने इस बंटवारे का फायदा उठाकर उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर को भाजपा में
शामिल किया। साल 2019 में भाजपा ने मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे शांतनु ठाकुर को बनगांव से टिकट दिया और
वे जीतकर सांसद बन गए। अब मोदी के बांग्लादेश दौरे में सांसद शांतनु ठाकुर भी साथ जा रहे हैं और इसी से ये
कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा किसी भी हाल में इस वोट बैंक को अपने खेमे में समेटना चाहेगी।
बहरहाल, मतुआ समुदाय के लिए नागरिकता आज की तारीख में बहुत बड़ा मुद्दा है। पहले बांग्लादेश से आए लोगों
में इस तरह का कोई डर नहीं था। पर, 2003 में नागरिकता कानून में बदलाव के बाद वे थोड़ा भयभीत हैं। उनको
लगता है, कहीं अवैध तरीके से भारत में घुसने के नाम पर उन्हें वापस बांग्लादेश ना खदेड़ दिया जाए। फिर नए
सीएए कानून में बांग्लादेश में प्रताड़ित हिंदुओं को भारत में शरण देने की बात की गई है इस वजह से ये लोग अब
भाजपा के पाले में हैं, जबकि ममता बनर्जी मुसलमान वोट बैंक की नाराजगी की वजह से सीएए के खिलाफ रहती
हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने रविवार को सोनार बांग्ला नाम से संकल्प पत्र जारी कर नागरिकता संशोधन कानून
यानी सीएए को सख्ती से लागू कराने का वादा किया है। मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में मतुआ समुदाय
आश्वस्त हो चुका है कि शायद अब उनका भला होने वाला है। यही कारण है प्रधानमंत्री का बांग्लादेश दौरा पश्चिम
बंगाल चुनाव के लिहाज से भी अहम हो गया है।