-सुखदेव सिंह-
केंद्र सरकार द्वारा पारित बजट में इस बार भी हिमाचल प्रदेश के रेलवे ट्रैक में सुधार किए जाने के लिए कोई बजट
न मिलना खेदजनक है। चुनावी समर नजदीक आते ही पठानकोट-जोगिंद्रनगर नैरोगेज रेलवे ट्रैक को लेह-लदाख तक
जोड़ने के सर्वे शुरू हो जाते थे। जनता का मत मिलते ही नेताओं को ऐसे किसी भी सर्वे की पांच साल तक याद
नहीं रहती थी। सर्वे किए जाने का सिलसिला पिछले कई दशकों से चलाकर पहाड़ की जनता के साथ भद्दा मजाक
किए जाने की कोशिशें जारी हैं। केंद्र सरकारों ने कभी हिमाचल प्रदेश के इस नैरोगेज रेलवे ट्रैक को ब्राडगेज किए
जाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। लोकसभा सांसद पहाड़ की इस चिरलंबित मांग को संसद में उठाने में कामयाब
नहीं हो पाए हैं। अगर सांसदों द्वारा जनता से किए गए वायदे स्मरण रहते तो इस रेलवे ट्रैक पर चलने वाली
रेलगाडि़यों की आज हालत इतनी दयनीय नहीं होती। हिमाचल प्रदेश में उद्योग लगने से ही बेरोजगारी की समस्या
का समाधान हो सकता है। आज इस रेलवे ट्रैक की हालत में सुधार करके पहाड़ की गरीब जनता को सहूलियतें
पहुंचाए जाने की अधिक जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा तक नहीं है। जनता को दूसरे राज्यों
पर इस सुविधा के लिए निर्भर होना पड़ता है। मंडी में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए कई बार भूमि
चयन किया गया, मगर मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट तक को केंद्र सरकार से हरी झंडी नहीं मिल पाई है। हिमाचल
प्रदेश में धार्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं होने के बावजूद हमारी सरकारों का खजाना हमेशा खाली रहा है।
देवभूमि के मंदिरों के प्रति देश-विदेश के लोगों की विशेष आस्था है। श्रद्धालु वर्ष भर मंदिरों में अपना शीश नवाने
सहित पहाड़ की हसीन वादियों का लुत्फ उठाने के लिए आते हैं।
विदेशी पर्यटक भी रोजमर्रा की भागदौड़ भरी जिंदगी से कुछ क्षण निकालकर शांतिप्रिय प्रदेश में कुछ समय
बिताना पसंद करते हैं। देवभूमि में मेहमानों को भगवान का दर्जा दिए जाने के बावजूद ऐसी घटनाएं घटित होती हैं
जो कि शर्मनाक बात है। पर्यटकों के साथ बदसलूकी अक्सर की जाती है, वहीं कुछेक पर्यटक भी देवभूमि में गुंडागर्दी
करने की फिराक में रहते हैं। पहाड़ी प्रदेश में कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या का समाधान आज दिन तक कोई भी
सरकार नहीं निकाल पाई है। सड़कों की हालत किसी से छुपी नहीं है। प्रदेश सरकार नए मोटर वाहन अधिनियम को
लागू करके चालान राशि में बेतहाशा वृद्धि किए जाने का ऐलान कर चुकी है। चालान की राशि विदेशों की तरह की
जा रही है और सड़कों का सुधार किए जाने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की
सरकार अपने खाली खजाने को भरने के लिए उद्योगपतियों को निवेश किए जाने का निमंत्रण दे चुकी है। धर्मशाला
में आयोजित इन्वेस्टर मीट में देश-विदेशों के नामी उद्योगपति पहाड़ में निवेश किए जाने पर अपनी सहमति जता
चुके हैं। पहाड़ों की चट्टानें अक्सर सड़कों पर गिरकर मौत का तांडव मचा रही हैं। सड़कों की दयनीय हालत है और
प्रदेश का अपना कोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा तक भी नहीं है। केवल मात्र रेलगाड़ी ही पर्यटकों सहित स्थानीय
लोगों का यातायात का सस्ता साधन हुआ करती थी। कोरोना वायरस काल में इसे भी बंद कर दिए जाने की वजह
से लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था। प्रदेश सरकार ने निजी बस आपरेटरों के दबाव में
आकर बेतहाशा किराया वृद्धि करके जनता के बजट को बिगाड़ने की कोशिश की है। बस किराए में बेतहाशा वृद्धि
होने के बावजूद निजी बस आपरेटर हमेशा सरकार के खिलाफ विरोध करते हैं।
पेट्रोल-डीजल के दाम कम हो चुके हैं, मगर बस किराए में कमी होती नहीं दिख रही है। आजादी के सात दशक
गुजर जाने के बावजूद इस रेलवे ट्रैक में कोई सुधार नहीं हुआ है। नतीजतन आए दिन इस ट्रैक पर रेलगाडि़यों के
इंजन हांफने की वजह से यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। रेलवे स्टेशनों पर मूलभूत सुविधाओं का
अभाव है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन की दृष्टि से विकसित होकर सरकारों के राजस्व का मुख्य साधन बने, सरकारों की
हमेशा यही कोशिश रही है। सच्चाई तो यह कि इस रेलवे ट्रैक पर आज भी पुराने इंजन दौड़ाए जा रहे हैं जो कहीं
भी हांफ जाते हैं। यह कोई पहला मौका नहीं कि रेलगाड़ी का इंजन फेल हो जाने की वजह से सैकड़ों लोगों को
दिक्कतें उठानी पड़ी हों। ठीक इसी तरह रेलगाडि़यों के इंजन हांफने की सुर्खियां अक्सर पढ़ने को मिलती हैं। सरकारें
वैसे तो इस रेलवे ट्रेक को लेह-लद्दाख तक जोड़ने की घोषणाएं करके जनता से वोट ऐंठती रही हैं, मगर आज दिन
तक सिवाय सर्वे किए जाने के अलावा जनता को कोई राहत नहीं मिली है। इस रेलवे ट्रैक की दशा में सुधार किए
जाने को लेकर दो वर्ष पूर्व एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी जरूर चलाई गई थी, मगर कोरोना काल के दौरान वह तमाम
रेलगाडि़यों की आवाजाही अवरुद्ध रही है। एक्सप्रेस रेलगाड़ी कुछ ही रेलवे स्टेशनों पर रुकती है, जिसका पहाड़ के
गरीब लोग लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। पूर्व वर्षों में इस रेलवे ट्रैक पर बहुत रेलगाडि़यां चलाई जाती रहीं, मगर अब
कुछेक में कटौती किए जाने का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने पिछले चार वर्षों
में पचास फीसदी बस किराया बढ़ाया है। वहीं अब रेलगाडि़यों का सफर भी महंगा कर दिया गया है। ऐसे में गरीब
जनता की जेब पर आर्थिक बोझ बढ़ता ही जा रहा है।
इस रेलवे ट्रैक पर चलने वाली रेलगाडि़यों का लाभ पर्यटकों, आम जनमानस सहित व्यवसायी भी उठाते रहे हैं। मगर
रेलगाडि़यों के इंजनों की दयनीय हालत की वजह से लोग अब इनमें सफर करने से पहले सौ बार सोचते हैं।
मनाली, मंडी, कुल्लु और हमीरपुर तक के व्यवसायी पंजाब राज्य से सामान इसी रेलगाड़ी से लेकर आते रहे हैं।
बरसात के दिनों में अक्सर रेलवे ट्रैक पर ल्हासे गिर जाने की वजह से कई दिनों तक रेलगाडि़यों की आवाजाही बंद
रहना आम बात है। पठानकोट से जोगिंद्रनगर तक 165 किलोमीटर का सफर इतना सुहाना है कि हर कोई प्रभावित
होकर रह जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हिमाचल प्रदेश का नजारा देखने के लिए एकमात्र रेलगाडि़यां ही
पर्यटक बेहतर समझते रहे हैं। ट्रैक पर लंबी सुरंगें, लंबे पुल और कई मंदिर भी विराजमान हैं। श्रद्धालु माता चामुंडा,
बज्रेश्वरी, चिंतपूर्णी और ज्वालाजी तक इन्हीं रेलगाडि़यों के सहारे पहुंचते थे। सरकारों को इस रेलवे ट्रैक पर दौड़ने
वाली रेलगाड़ी के इंजन नए तकनीक से चलाने चाहिए। हिमाचल प्रदेश को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने
के लिए कनेक्टिविटी की समस्या हल करनी चाहिए। इस समस्या का समाधान होते ही प्रदेश का पर्यटन विकसित
होकर सरकार की आय का प्रमुख स्रोत बनेगा।