दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में इस माह के अंत तक पटाखों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध का सुप्रीम कोर्ट का आदेश बेशक कठोर है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इसकी आवश्यकता थी। दरअसल, अब देश के बहुत से दूसरे शहरों में भी दिवाली के मौके पर आतिशबाजी को विनियमित करना जरूरी हो गया है। पिछले साल की मिसाल पर गौर करें, तो इस सख्त फैसले का औचित्य स्वयंसिद्ध हो जाता है। पिछली दिवाली के दिन राष्ट्रीय राजधानी के कुछ इलाकों में पीएम 2.5 का स्तर 1,200 से भी ऊपर चला गया था। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर वायु वो होती है, जिसमें इन कणों की मात्रा 10 से कम रहे। पीएम वायु में घुले-मिले सूक्ष्म कण हैं। ये सांस के जरिए फेंफड़ों तक पहुंच जाते हैं। इनकी ज्यादा मात्रा कई बीमारियों का कारण बनती है।
गौरतलब है कि पिछली दिवाली के ठीक बाद जिस तरह कई दिनों तक राष्ट्रीय राजधानी के आसमान पर धुएं की घनी परत छायी रही, उससे गहरी चिंता व्याप्त हुई थी। (हालांकि पटाखों का धुआं इसका सिर्फ एक कारण था।) दिल्ली की हवा सामान्यत: वाहनों से निकलने वाले धुएं के चलते गंभीर रूप से प्रदूषित रहती है। इसे नियंत्रित करने की कोशिश में दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने पौने दो वर्ष पहले ऑड-ईवन का प्रयोग किया था। इसके तहत ऑड-ईवन नंबरों की गाड़ियों को अलग-अलग दिनों में चलाने की इजाजत दी गई थी। लेकिन ये प्रयास सफल नहीं हुआ। इसी तरह खुले में कचरा जलाने पर रोक तथा निर्माण स्थलों पर गर्द नियंत्रण के लिए कड़े नियम लागू करने की कोशिशों से भी प्रदूषण के स्तर पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।
इन हालात में हर साल दिवाली पर आतिशबाजी से पैदा होने वाला धुआं आग में घी डालने का काम कर जाता है। समझा जा सकता है कि इसी विकट स्थिति के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय ने ताजा आदेश दिया है। न्यायमूर्ति एके सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा- ‘हमें कम से कम एक पटाखा-मुक्त दिवाली मनाकर देखना चाहिए।” कोर्ट के सामने ये मामला 14 वर्ष से कम उम्र के कुछ बच्चों की याचिका से आया। बेशक बच्चे आतिशबाजी से सबसे अधिक आनंदित होते हैं, लेकिन इससे होने वाले वायु एवं ध्वनि प्रदूषण का सबसे खराब असर भी उनकी सेहत पर ही पड़ता है। तो याचिकाकर्ता बच्चों की चिंता से सहमत होते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि आगामी 31 अक्टूबर तक दिल्ली-एनसीआर में पटाखे नहीं बिकेंगे। इसे समाज का एक हिस्सा हिंदू समाज की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ मान सकता है। पटाखा कारोबार से जुड़े लोग इसे अपनी रोजी-रोटी पर प्रहार बता सकते हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि ये बातें बेजा हैं। आम कल्पना में दिवाली और पटाखे एक-दूसरे से अभिन्न् रूप से जुड़े हुए हैं। परंतु जब विशेष परिस्थितियां उत्पन्न् होती हैं, तो कुछ असामान्य कदम भी उठाने पड़ते हैं। अपेक्षित है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सभी तबके ठंडे दिमाग से विचार करें। तब वे शायद समझेंगे कि इसमें सहयोग करना ही उचित है। असल में ऐसी जन-समझदारी की जरूरत आज सारे देश में है।