हरी राम यादव
दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो औरों के लिए जीते हैं और दुनिया में अमर हो जाते हैं। समाज का प्रत्येक मनुष्य बात बात में उनका नाम लेता है तथा उनके जीवन से जुड़ी अनेकों बातों का वर्णन करता है और कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो केवल अपने तथा अपनों के लिए जीते हैं, ऐसे लोग शरीर से प्राण निकलने के कुछ दिनों बाद ही भुला दिये जाते हैं। दूसरों के लिए जीने वाली ऐसी ही एक महान प्रजापालक थीं महारानी अहिल्याबाई होलकर। महारानी अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के गांव चौंढी में हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीमती सुशीला शिंदे तथा पिता का नाम मान्कोजी शिंदे था। उनके पिता मान्कोजी शिंदे खुली विचारधारा और अग्रणी सोच के व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी पुत्री अहिल्याबाई को बचपन से ही शिक्षा देना शुरू कर दिया था जबकि उस समय स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी । समाज में लोग शिक्षा ग्रहण करने वाली बालिकाओं को बारे में तरह तरह की बातें करते थे।
अहिल्याबाई होलकर का विवाह इन्दौर शहर के संस्थापक श्री मल्हार राव होल्कर के पुत्र श्री खंडेराव से हुआ था। माहेश्वर के लोग बताते हैं की एक बार राजा मल्हार राव होलकर पुणे जा रहे थे। रास्ते में वह चौंढी गाँव में विश्राम करने के लिए रुके। उस समय बालिका अहिल्याबाई अपने गांव के गरीबों की मदद कर रही थीं। गरीबों की सेवा और दयाभाव को देखकर मल्हार राव होलकर ने अहिल्याबाई के पिता से अपने बेटे खण्डेराव होलकर के लिए अहिल्याबाई का हाथ मांग लिया। उस समय अहिल्याबाई की उम्र केवल 08 वर्ष थी।
अहिल्याबाई की शादी के 10 साल बाद यानि कि सन् 1745 में महाराजा मल्हार राव होलकर के पुत्र खंडेराव होलकर से हुई। सन् 1745 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम मालेराव रखा गया। पुत्र के जन्म के तीन साल बाद 1748 में उन्होंने एक पुत्री को जन्म दिया जिनका नाम मुक्ताबाई था । अपने पति, सास-ससुर तथा बच्चों के साथ महारानी अहिल्या बाई का जीवन अच्छी तरह चल रहा था। लेकिन 1754 में उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उनके पति खण्डेराव होलकर का असामयिक निधन हो गया। रानी अहिल्याबाई होलकर अंदर से टूट गयीं। लेकिन उन्होंने अपने आप को संभाला। रानी अहिल्याबाई होलकर अभी कुछ संभली हीं थीं कि 1766 में उनके ससुर उन्हें अकेला छोड़कर चल बसे। एक वर्ष पश्चात सन् 1767 में उनके बेटे मालेराव होलकर की असामयिक मृत्यु हो गई। लगभग 13 वर्षों में उनका भरा पूरा परिवार समाप्त हो गया। रानी अहिल्याबाई अकेली रह गईं । उनके ऊपर अपने राज्य की पूरी जिम्मेदारी आ गयी।
सन् 1767 में रानी अहिल्याबाई होलकर ने तुकोजी होलकर को अपना सेनापति नियुक्त किया और अपनी राजधानी को माहेश्वर ले गयीं जो कि इंदौर से लगभग 90 किलोमीटर दूर पहाड़ी क्षेत्र में नर्मदा के तट पर स्थित है। वहां उन्होंने नर्मदा नदी के तट पर अहिल्या महल का निर्माण करवाया। उन्होंने वहां के निवासियों के लिए कपड़ा उद्योग को विकसित किया। माहेश्वर की रेशम तथा सूती माहेश्वरी साड़ी विश्व भर में प्रसिद्ध है।
रानी अहिल्याबाई होलकर ने अपने जीवन को अपने राज्य के नागरिकों की भलाई और उत्थान में लगा दिया। वह हर प्रकार से अपनी प्रजा को सुखी देखना चाहती थीं। यही कारण है कि आज भी लोग उन्हें देवी के रूप में उनकी पूजा करते हैं। माहेश्वर के हर घर में उनकी पूजा की जाती है, वह घर चाहे जिस धर्म, जाति और सम्प्रदाय का हो। ऐसी सर्वमान्य पूजा पूरी दुनिया में कहीं और किसी की भी नहीं होती है। प्रत्येक सोमवार को रानी की पालकी माहेश्वर के किले से निकलकर माहेश्वर में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर तक जाती है। पालकी के साथ साथ वहां की जनता श्रद्धा से जयकारा लगाते हुए चलती है।
रानी अहिल्याबाई होलकर ने अपने जीवन काल में पूरे देश में अनेकों ऐसे कार्य किये जिनके बारें में कोई सोच भी नहीं सकता है। उन्होंने देश के अनेक तीर्थ स्थलों पर मंदिरों का निर्माण करवाया, पुराने तथा जीर्ण शीर्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। पानी की सुलभता के लिए कुँए और बावड़ियों का निर्माण करवाया, एक जगह से दूसरी जगह को जोड़ने वाली सड़कें बनवायीं और उनके किनारे छायादार पेड़ लगवाये। वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर आज भी रानी अहिल्याबाई की धर्मपरायणता की कहानी कह रहा है। अयोध्या में भी कई मंदिरों का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया।
रानी अहिल्याबाई ने आज से लगभग 254 वर्ष पहले गरीबों को अन्न देने की योजना बनायी थी और अपने राज्य के नागरिकों को अनाज बांटना शुरू किया था। उनकी इस जनहित की योजना का विरोध इंदौर के आसपास के राजाओं ने किया था लेकिन रानी अपनी बात पर अडिग रहीं और इस योजना की मदद से गरीबों को राहत पहुंचाती रहीं।
70 वर्ष की अवस्था में 13 अगस्त 1795 को देवी अहिल्याबाई होलकर की अचानक तबियत बिगड़ गयी और इंदौर में उनकी मृत्यु हो गयी । उनकी मृत्यु के पश्चात उनके शासन की बागडोर उनके विश्वसनीय सेनापति तुकोजीराव होलकर ने संभाली।
रानी अहिल्याबाई होलकर एक दूरदर्शी तथा कुशल प्रशासक थीं। माहेश्वर में उनके द्वारा स्थापित वस्त्र उद्योग आज घर घर में लोगों की जीविका का साधन बना हुआ है। माहेश्वर में हर घर में लोग कपड़े की बुनाई करते हुए मिल जायेंगे। रानी अहिल्याबाई होलकर के किले में स्थापित “रेवा सोसायटी” के बने वस्त्र दुनिया में अपनी अलग पहचान रखते हैं। आज भी उनके वंशज श्री रिचर्ड होलकर उसी सेवा भाव से रेवा सोसायटी की मदद से कामगारों और उनके बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा और उत्थान में मदद कर रहे हैं।