देश की राजधानी दिल्ली के खुदरा बाजार में प्याज 100-140 रुपए किलो बिक रहा है। मदुरई में तो
180 रुपए किलो भी बिका है। जिस प्याज की औसत कीमत 20-30 रुपए हुआ करती थी, उसके दाम
आसमान छू रहे हैं। कोई तो गंभीर कारण होगा! टमाटर और आलू की कीमतें फिर भी औसतन कम हैं।
उन्हें महंगा नहीं कहा जा सकता। अलबत्ता इस मौसम में उनके दाम भी कम होने चाहिए। ज्यादातर हरी
सब्जियां भी 40-60 रुपए किलो बिक रही हैं, जबकि यह भाव 10-20 रुपए होना चाहिए, क्योंकि सर्दियों
का मौसम आ गया है। प्याज और सब्जियों के इतना महंगा होने पर देश भर में हाहाकार मचा है, प्याज
की माला पहन कर प्रदर्शन किए जा रहे हैं, प्याज को भगवान मानकर पूजा की जा रही है, ताकि वह
आम आदमी के बजट की परिधि में ही रहे। बाहर सड़कों पर ही नहीं, संसद के भीतर भी हंगामा मचता
रहा है। गुरुवार को कांग्रेस सांसदों ने महात्मा गांधी के बुत के सामने प्रदर्शन किया और सरकार की हाय-
हाय की। संसद के भीतर वह क्षण वाकई हास्यास्पद था, जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि
वह ऐसे परिवार से आती हैं, जहां प्याज और लहसुन का मतलब ही नहीं है। एक और केंद्रीय मंत्री
अश्विनी चौबे ने संसद परिसर में ही टिप्पणी की-‘मैं तो शाकाहारी आदमी हूं। प्याज और लहसुन नहीं
खाता।’ वाह! अब प्याज भी मांसाहार हो गया! बहरहाल इस मुद्दे पर देश इतना आंदोलित है कि गुरुवार
को खुद गृहमंत्री अमित शाह को मोर्चा संभालना पड़ा। उन्हें खाद्य-आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान, कृषि
मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, पीएमओ के अफसर और कैबिनेट सचिव के साथ
गंभीर बैठक करनी पड़ी। चिंता और सरोकार प्याज की कीमतें काबू में लाना ही था। इस संदर्भ में केंद्र
सरकार ने 1.2 लाख टन प्याज आयात करने के सौदे किए हैं। अकेले मिस्र और तुर्की से ही 21,000 टन
प्याज आयात होना है, जबकि हमारी रोजाना की खपत औसतन 60,000 टन है। आयात का फैसला भी
काफी देरी से लिया गया है। खाद्य मंत्री पासवान बार-बार दोहराते रहे कि 57,000 टन प्याज का बफर
स्टाक रखा गया था, जिसमें से 32,000 टन सड़ गया। यही संवेदनशीलता है कि सरकार अनाज और
प्याज को सड़ने दे सकती है, लेकिन आम आदमी के बीच वितरित नहीं कर सकती। इतना प्याज वाकई
सड़ा है या यह कागजी बयान है? सवाल यह भी है कि हर दूसरे साल चार महीनों, सितंबर से दिसंबर
तक प्याज की कीमतें आसमान क्यों छूने लगती हैं? इस बार भी प्याज 300 फीसदी महंगा हुआ है।
बेशक इस बार बेवक्त और ज्यादा बारिश हुई है। नतीजतन महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान,
कर्नाटक आदि राज्यों में प्याज की फसल प्रभावित और बर्बाद हुई है, लेकिन सरकार की उस संबंध में
योजना और रणनीति क्या थी? भारत तो बीते वर्ष 22 लाख टन प्याज का निर्यात कर दुनिया में दूसरा
सबसे बड़ा निर्यातक था। आखिर ऐसा क्या हुआ कि हम महंगे दामों पर आयात के लिए मजबूर हुए हैं?
बारिश के अलावा, कम बुवाई, खराब फसल, कम उत्पादन और जमाखोरी भी प्याज को महंगा करने के
अन्य बुनियादी कारण हैं। भारत जो आयात कर रहा है, उसके मुताबिक 17 दिसंबर को 1450 टन, 24
दिसंबर को 2030 टन, 31 दिसंबर को 1450 टन प्याज भारत आना है। तब तक बहुत देरी हो चुकी
होगी। दरअसल 2018 के बजट के समय प्रधानमंत्री मोदी ने प्राथमिकता जताई थी कि प्याज, टमाटर,
आलू के दाम स्थिर रहने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सामान्य महंगाई के साथ-साथ प्याज और
दूसरी सब्जियां भी महंगी हो रही हैं। इतनी महंगी कि लोग अपना स्वाद बदलने को विवश हो रहे हैं।
ध्यान रहे कि 2022 तक किसानों की आमदनी दुगुनी करने के मोदी सरकार के वायदे और लक्ष्य में
बागवानी फसलों की ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। बेशक बजट में कई योजनाओं की घोषणा की गई थी,
लेकिन हकीकत तो उनसे अलग है। यह भी भूलना नहीं चाहिए कि प्याज की कीमतों ने सरकारें ध्वस्त
कर बदली हैं, लिहाजा यह सवाल स्वाभाविक है कि इस बार प्याज के आंसू किसे रोने पड़ेंगे?