पूछता है भारत क्या देश को चाहिए ऐसी ही पत्रकारिता?

asiakhabar.com | January 29, 2021 | 12:01 pm IST

अर्पित गुप्ता

बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा हमारे देश में तमाम चतुर,चालाक,स्वार्थी व निठल्ले क़िस्म के
लोगों ने शोहरत पाने का यही शॉर्ट कट रास्ता अपनाया हुआ है। विवादों का शोहरत से हमेशा ही गहरा नाता
भी रहा है। जो भी व्यक्ति अथवा विषय विवादित तरीक़े से मीडिया द्वारा प्रचारित-प्रसारित किया जाता है उसे
प्रसिद्धि या सफलता की गारण्टी माना जाता है। प्रायः अनेक लोग जानबूझकर ऐसी ग़ैर ज़रूरी ख़बरें प्लांट भी
करवाते हैं ताकि वे चर्चा का विषय बन सकें। हमारे देश में तो मीडिया का ही एक बड़ा वर्ग स्वयं ही इस
अनैतिकता पूर्ण कारगुज़ारी का हिस्सा बन चुका है। सत्ता संरक्षित मीडिया के इस वर्ग को चाहे कोई दलाल या
भांड मीडिया कहे या इन्हें गोदी मीडिया के नाम से पुकारे,इन्हें चाटुकार पत्रकार कहे या बिकाऊ मीडिया
कहे,इनपर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। इस वर्ग का काम केवल सत्ता को ख़ुश रखना,पत्रकारिता के मापदण्डों की
धज्जियाँ उड़ाना,अनैतिकता की सभी हदें पार कर जाना, ग़ैर ज़िम्मेदार व विध्वंसकारी कार्यक्रम बनाना व
प्रसारित करना,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर झूठ परोसना अपने कार्यक्रम के प्रस्तुतीकरण में अभद्र
भाषा व आक्रामक तेवरों का इस्तेमाल करना सांप्रदायिकता फैलाना,सत्ता की गोद में खेलना और विपक्ष को ही
कटघरे में खड़ा करना आदि है।
इस समय इस तरह के निम्न स्तरीय पत्रकारों में पहला नाम अर्णब गोस्वामी का स्थापित हो चुका है। अर्णब
ने भी अपनी ही 'श्रेणी' के अनेक पत्रकारों को 'पछाड़' कर अपनी 'शोहरत' का यह 'बुलंद स्थान' हासिल किया
है।अर्णब द्वारा रिपब्लिक टी वी नामक टी वी चैनल संचालित किया जाता है। इस टी वी चैनल की स्थापना
लगभग तीन वर्ष पूर्व 2017 में गयी थी। इस टी वी चैनल का स्वामित्व संयुक्त रूप से दो व्यक्तियों के नाम
है। एक स्वयं अर्णब गोस्वामी और दूसरा राजीव चंद्रशेखर। राजीव चंद्रशेखर भारतीय जनता पार्टी में हैं तथा
राज्य सभा के सदस्य भी हैं। केरल से संबंध वाले चंद्रशेखर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के साथ साथ केरल
एन डी ए के उपाध्यक्ष भी हैं। टी वी चैनल का इतना ही परिचय इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिये पर्याप्त है कि
अर्णब द्वारा अपने चैनल में प्रस्तुत प्राइम शो 'पूछता है भारत' में जो 'विशेष सामग्री' जिस आवाज़ और
अंदाज़ के साथ पेश की जाती है उसकी दरअसल वजह क्या है। वैसे तो नैतिकता का तक़ाज़ा यही है भले ही

मीडिया हॉउस का स्वामी कोई भी हो किसी भी विचारधारा या राजनैतिक दल से जुड़ा हो,परन्तु उसे पत्रकारिता
के सिद्धांतों,मापदंडों तथा नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। परन्तु जब सत्ता की ख़ुशामद प्राथमिकता हो
जाए और अवैध रूप से धन संपत्ति अर्जित करने का खुला व बे रोक टोक अवसर मिल जाए तो पत्रकारिता के
सिद्धांतों,मापदंडों तथा नियमों की फ़िक्र भला कौन करे ?
परन्तु जैसा कि प्रायः होता है कि सत्ता की सरपरस्ती के नशे में चूर अत्यधिक उत्साही व्यक्ति कभी कभी मुंह
के बल गिर भी जाता है,कुछ ऐसा ही अर्नब के साथ भी हुआ है। पहले तो अर्णब ने अपने टी वी चैनल पर
भारत-पाकिस्तान,हिन्दू-मुसलमान जैसे भड़काऊ विषयों पर तीखी बहसें शुरू कराईं। गोया अपने चैनल को
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने का साधन बनाया। उसके बाद कोरोना काल के शुरू में ही तब्लीग़ी जमाअत जैसे
विषय को कोरोना से भी गंभीर विषय के रूप में चीख़ चिल्ला कर प्रसारित किया। दुर्भाग्यवश हमारे देश के
अधिकांश टी वी दर्शकों को भी विवादित विषय शायद कुछ ज़्यादा ही पसंद आते हैं,ज़ाहिर है अर्णब दर्शकों की
इसी कमज़ोरी को भांप चुका था। इसीलिए अब उसके अंदर अपने चैनल को टी आर पी के लिहाज़ से नंबर एक
बनाने की इच्छा बलवती हुई।और कुछ समय पूर्व कथित रूप से उसका हज़ारों करोड़ रुपयों का टी आर पी
स्कैम सामने आया जिससे यह ख़ुलासा हुआ कि किस तरह उसने लाखों लोगों के बीच पैसे बंटवाकर उन्हें
रिपब्लिक टी वी देखने की लालच दी थी ताकि अधिक से अधिक दर्शक उसके चैनल को देखें ताकि चैनल की
टी आर पी में इज़ाफ़ा हो और विज्ञापन व्यवसाय में इसका लाभ लिया जा सके।
देश को याद होगा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की दुःखद व रहस्यमयी मौत को लेकर भी अर्णब ने 'नागिन
डांस' के अंदाज़ की ओछी,शर्मनाक व अगंभीर पत्रकारिता का परिचय तो कराया ही था साथ साथ उद्धव ठाकरे
व सलमान ख़ान जैसे विशिष्ट लोगों के साथ किस अशिष्ट व असंसदीय भाषा के साथ पेश आया था। उसके
इस तरह के आवाज़,अंदाज़,घटिया चयन व चीख़ने चिल्लाने का एक ही मक़सद होता है कि किसी तरह वह
दर्शकों को आकर्षित करे,समाज को विभाजित करे तथा अपने आक़ाओं के गुप्त एजेंडे को अपनी पत्रकारिता व
टी वी चैनल के माध्यम से पूरा करे। 'पूछता है भारत' जैसा शीर्षक भी इसी एजेंडे का एक हिस्सा है। बहरहाल
यही अति उत्साही व्यक्ति अब अपनी व ब्रॉडकास्ट ऑडिएन्स रिसर्च कौंसिल (बीएआरसी) के पूर्व सीईओ पार्थो
दासगुप्ता के बीच हुई तथाकथित व्हाट्सएप चैट का ख़ुलासा होने पर अब मुश्किल में फंसा नज़र आ रहा है।
इस अति गंभीर,संवेदनशील व राष्ट्र विरोधी मानी जाने वाली चैट यानि वार्तालाप को विस्तृत रूप से मुंबई
पुलिस द्वारा टीआरपी घोटाले के पूरक आरोपपत्र में जोड़ा गया है। इस चैट के सार्वजनिक होने के बाद बड़ा
हंगामा खड़ा हो गया है कि आख़िर किस तरह अति गोपनीय विषय भी इस पत्रकार को पता चल जाते थे।
मुंबई पुलिस ने टीआरपी घोटाले के पूरक आरोपपत्र में उल्लिखित गोस्वामी और दासगुप्ता के बीच हुई
तथाकथित व्हाट्सएप चैट ने निःसंदेह सत्ता के भीतर चल रहे शर्मनाक खेलों को बेनक़ाब कर दिया है। इस चैट
के सार्वजनिक होने से यह भी साफ़ हो गया है कि 'पूछता है भारत' जैसे शीर्षक से कार्यक्रम पेश करने जैसी
राष्ट्रभक्ति की नौटंकी उन पत्रकारों द्वारा की जा रही थी जो न केवल अवसरवादी,दलाल तथा बिचौलिये हैं
बल्कि जो सत्ता की ख़ुशामद परस्ती कर अवैध धन कमाने को ही अपने जीवन का मक़सद समझ रहे हैं। इस
कथित चैट से पता चलता है कि किस तरह सेना की गोपनीय कार्यवाही तथा उच्च स्तर पर लिए जाने वाले
अति गोपनीय फ़ैसलों की ख़बर भी अर्णब को मिल जाया करती थी। इस तरह की जानकारियां न केवल अर्णब
को कटघरे में खड़ा करती हैं बल्कि सत्ता के गलियारों से जुड़े उन लोगों की 'राष्ट्रभक्ति' पर भी सवाल खड़ा

करती हैं जो गोपनीयता की संवैधानिक शपथ लेने के बावजूद ऐसे ग़ैर ज़िम्मेदार पत्रकारों तक ऐसी गोपनीय
सूचनायें पहुंचाते रहे जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अनेक सवाल पैदा होते हैं। आज उसी अर्णब व उसके संरक्षकों
से 'पूछता है भारत' कि क्या देश को ऐसे ही पत्रकार व पत्रकारिता चाहिए जो स्वयं तो राष्ट्र विरोधी काम
करता हो और देश को राष्ट्रभक्ति व राष्ट्रवाद के प्रमाण पत्र बांटता फिरता हो ?


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