पूंजी के प्रभाव में महामारी

asiakhabar.com | January 2, 2022 | 4:14 pm IST
View Details

-भारत डोगरा-
विश्व में सही विज्ञान या योग्य वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों व डाक्टरों की कमी है। विज्ञान ने वास्तव में प्रगति की है,
बहुत योग्य वैज्ञानिक व डाक्टर भी उपलब्ध हैं, पर ऐसी परिस्थितियों का अभाव है जिनमें हम सबसे बेहतर
प्रतिभाओं, विचारों व वैज्ञानिकों की कसौटी पर खरा उतरने वाले उपायों का समुचित लाभ उठा सकें। यह एक दुखद
स्थिति है जिसके कारण विश्व स्तर पर ऐसे कष्ट झेलने पड़े हैं जिनसे बचा जा सकता है।

विश्व स्तर पर हाल के वर्षों में जितनी चिंता व अस्थिरता कोविड-19 के संदर्भ में देखी गई है, वह हाल के अनेक
दशकों के इतिहास में अभूतपूर्व है। इस संदर्भ में यह सवाल विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में उठ रहे हैं कि कोविड-
19 का सामना बेहतर ढंग से कैसे किया जाए व इससे होने वाली क्षति को कैसे न्यूनतम किया जाए। इसके लिए
जरूरी है कि विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों की सबसे उत्कृष्ट राय सामने आ सके व उसके आधार पर तय
नीति, विश्वास व सहयोग के माहौल को पूरी दुनिया में कार्यान्वित किया जा सके। यह सब लोकतांत्रिक माहौल में,
लोकतांत्रिक भावना से होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, सब तरह के विचारों को सुनना चाहिए व उन्हें वह स्थान
मिलना चाहिए जिसके वे हकदार हैं।
ऐसा न हो कि कुछ विचारों को जबरदस्ती बहुत तेजी से फैलाने का प्रयास किया जाए व कुछ विचारों को दबा दिया
जाए। कुछ विचारों के प्रसार के लिए बड़ी ताकत लगा दी जाए, व कुछ विचारों को टिकने ही न दिया जाए। किसी
तरह के दबाव व संकीर्ण स्वार्थ हावी नहीं होने चाहिए व सच्चाई तथा पारदर्शिता के माहौल में ही सब फैसले,
फैसलों से जुड़ी पूर्व की सब प्रक्रियाएं होनी चाहिए।
यदि किसी विचार को दबाया जाएगा, या उससे जुड़े वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों की तमाम पूर्व उपलब्धियों व योग्यताओं
की उपेक्षा करते हुए उनके विरुद्ध कुप्रचार किया जाएगा, तो अनेक बेहतर व आवश्यक विचार सामने नहीं आ
सकेंगे व विश्व स्तर पर उपलब्ध सबसे बेहतर ज्ञान का सदुपयोग नहीं हो सकेगा। दूसरी ओर, यदि सभी विचारों को
खुले माहौल में सुनकर पारदर्शी प्रक्रियाओं से सही निर्णय लिए जाते हैं जो सबसे अधिक जनहित में हैं तो न केवल
सबसे बेहतर नीति बन सकेगी, अपितु लोगों में इसके प्रति गहरा विश्वास भी उत्पन्न होगा। उन्हें लगेगा हम सही
राह पर जा रहे हैं व उनकी चिंताएं भी कम होंगी, तनाव कम होंगे। अनेक समस्याएं तो अनिश्चय व तनाव के
माहौल के कारण ही उत्पन्न हो रही हैं।
एक बड़ी जरूरत यह है कि इस तरह की आपदा का दुरुपयोग कोई भी तत्व अपना संकीर्ण स्वार्थ साधने के लिए न
करे। कुछ देशों में यह देखा गया है कि कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों, चंद अरबपतियों व अन्य शक्तिशाली स्वार्थों ने
इस आपदा की स्थिति के इस तरह दुरुपयोग किए, जिससे इन देशों की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पर उनका नियंत्रण
बहुत बढ़ गया। नतीजे में ये देश स्वार्थी कंपनियों पर निर्भर हो गए व उनका स्वास्थ्य बजट केवल कुछ
विशालकाय कंपनियों के उत्पादों पर ही खर्च होने लगा। इस सोच के कारण जब कोविड के अपेक्षाकृत कम खर्च के
इलाज की दवाओं व तौर-तरीकों के बारे में कुछ वैज्ञानिक व डाक्टर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देना चाहते थे, तो
उनकी आवाज को दबा दिया जाता था और ऐसे विशेषज्ञों को आगे बढ़ाया जाता था जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों या
अरबपतियों के हितों वाली बात करेंगे। यह उचित नहीं है। ऐसी प्रवृत्तियां यदि विश्व में न होती तो बहुत त्रासद
स्थितियों से बचा जा सकता था।
ऐसा नहीं है कि विश्व में सही विज्ञान या योग्य वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों व डाक्टरों की कमी है। विज्ञान ने वास्तव में
प्रगति की है, बहुत योग्य वैज्ञानिक व डाक्टर भी उपलब्ध हैं, पर ऐसी परिस्थितियों का अभाव है जिनमें हम सबसे
बेहतर प्रतिभाओं, विचारों व वैज्ञानिकों की कसौटी पर खरा उतरने वाले उपायों का समुचित लाभ उठा सकें। यह एक
दुखद स्थिति है जिसके कारण विश्व स्तर पर ऐसे कष्ट झेलने पड़े हैं जिनसे बचा जा सकता है। यह स्थिति तभी
पनप सकती है जब विश्व की लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई बड़ी कमी हो। लोकतंत्र की प्रगति मानव प्रगति का एक
बहुत महत्त्वपूर्ण पक्ष है, पर जो बड़े स्वार्थ हैं, जिन पर अरबों डालर का मुनाफा हावी है, जो दूसरों पर आधिपत्य
करना चाहते हैं, वे लोकतंत्र को एक बाधा मानते हैं। वे अपनी अपार धन शक्ति के बल पर लोकतंत्र में ऐसी
विसंगतियां उत्पन्न करते हैं जिससे अपनी मनमानी कर सकें, उन पर लोकतांत्रिक तत्त्वों व ताकतों की रोक न लग
सके।
राजनीति में भी वे ऐसे अधिनायकवादी तत्त्वों को खोजते हैं व आगे बढ़ाते हैं जो उनसे सांठ-गांठ कर सकें व एक
साथ अपने हितों को बढ़ा सकें। इस स्थिति में पारदर्शिता, लोकतांत्रिक खुली बहस व सच्चाई की बहुत क्षति होती

है। हमें कोविड का सामना यदि सबसे बेहतर ढंग से करना है तो इन सब अवरोधों को भी ध्यान में रखना होगा व
ऐसी स्थितियों का निर्माण करना होगा जिससे सभी निर्णय पारदर्शिता व खुली लोकतांत्रिक व्यवस्था में सच्चाई के
आधार पर हो सकें और जो सबसे बेहतर परामर्श है उसे ही स्वीकार किया जाए। वैज्ञानिक तथ्यों से कोई अनुचित
छेड़छाड़ न की जाए और जो सबसे बेहतर व विश्वसनीय जानकारी है उसके आधार पर ही कार्य किया जाए।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *