डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
भले ही यह बात थोड़ी अजीब अवश्य लगे पर अब शहरों में निजी चौपहिया वाहनों की पार्किंग की समस्या गंभीर होती जा रही है। यह भी सही है कि यह समस्या केवल और केवल हमारे महानगरों की ही नहीं अपितु दुनिया के अधिकांश देशों के सामने तेजी से विस्तारित होती जा रही है। दुनिया के देश चौपहिया वाहनों की पार्किंग समस्या से दो चार हो रहे हैं और इस समस्या के समाधान के लिए अनेक विकल्पों पर मंथन कर रहे हैं। यहां तक की पार्किंग शुल्क से अच्छी खासी आय होने लगी है। अकेले भारत की ही बात करें तो देश में करीब पांच करोड़ कारें चलन में हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार दिल्ली में उपलब्ध कारों की पार्किंग के लिए ही चार हजार से अधिक फुटबाल के मैदानों जितनी जगह की आवश्यकता है। अगर दिल्ली की ही पार्किंग से आय की बात करें तो यह कोई 9800 करोड़ से अधिक की हो जाती है। देश के किसी भी कोने में किसी भी शहर की गलियों में निकल जाएं तो देखेंगे कि गलियों में घरों के बाहर सड़क की आधी जगह तो कारों के पार्किंग से ही सटी होती हैं। यानी कि एक ही घर में एक से अधिक कार/वाहन होना अब आम होता जा रहा है। किसी भी शहर में ऑफिस या बाजार खुलने बंद होने के समय तो जाम लग जाना आम होता जा रहा है। यह सब तो तब है जब देश में आबादी की तुलना में यह माना जा रहा है कि कारों की संख्या कम है। आने वाले सालों में कारों की संख्या में इजाफा ही होगा। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। यातायात के हालात यह होते जा रहे हैं कि कई बार तो चंद कदमों की दूरी पार करने में ही लंबा समय लग जाता है।दरअसल इस सबके अनेक कारणों में उपनगर विकसित करने पर ध्यान नहीं देना, व्यस्ततम स्थानों पर ही बहुमंजिला इमारतें बनाने की छूट देना, शहरी सार्वजनिक यातायात तंत्र का विकसित नहीं होना, वाहनों की खरीद सहज होना और वाहनों की पार्किंग के लिए दूरगामी योजना का अभाव होना भी शुमार हैं। अब तो हालात यहां तक होने लगे हैं कि पार्किंग को लेकर झगड़ा या यों कहें कि जानलेवा विवाद होना तक आम होता जा रहा है। रोडरेज की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी हैं। दरअसल चौपहिया वाहनों की जिस तरह से सुगम ऋण सुविधा व पैसों के तेजी से बढ़ते प्रवाह के कारण सहज पहुंच हुई है उसका एक सकारात्मक परिणाम यह सामने आया है कि जिस तरह से अमीर गरीब सभी के लिए मोबाइल आम होता जा रहा है ठीक उसी तरह से चौपहिया वाहन आम होता जा रहा है। जहां तक पैसों वालों का प्रश्न है तो उनके घरों में एक से अधिक वाहन होना तो सामान्य बात है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि थोड़ी-सी भी अच्छी माली हालत वाले लोग अब महंगी और एसयूवी वाहनों की ओर शिफ्ट करते जा रहे हैं। किसी भी शहर की गलियों में आधा फुटपाथ तो वाहनों की पार्किंग के कारण ही देखा जा सकता है। लोगों की सोच या डिमांड में भी अंतर आया है और अब लोग छोटी कार लेना पसंद ही नहीं करते। नैनो जैसी छोटी कार के परिणाम हमारे सामने हैं। घर में जगह नहीं होने के कारण सड़कों पर ही गाड़ियां खड़ी करनी पड़ती हैं।अंतररास्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की मानें तो 2050 तक दुनिया के देशों में केवल और केवल कारों की पार्किंग के लिए ही 80 हजार वर्ग किलोमीटर स्थान की आवश्यकता होगी। यानी कि इतनी जगह कि छोटा मोटा देश आसानी से इस जगह में समा सके। हालांकि पुराने कबाड़ को लेकर दुनिया के देशों की सरकारें योजनाएं बना रही हैं पर यह भी अपने आप में एक समस्या बनती जा रही है। खैर इस पर अलग से बहस हो सकती है। पर सवाल वहीं का वहीं है कि कार कारोबार में अभी तेजी आनी ही है। ऐसे में शहरी विकास संस्थाओं और योजना नियंताओं को निजी कारों की पार्किंग को लेकर ठोस कार्ययोजना तैयार करनी ही होगी। मजे की बात यह है कि अब कार बाजार इलेक्ट्रिक कारों में शिफ्ट होता जा रहा है, ऐसे में चार्जिंग स्टेशनों के लिए भी जगह तलाशनी ही होगी। क्योंकि देर सबेर कारों का यह कारोबार ईवी में ही शिफ्ट होना है। यदि पार्किंग स्थलों पर ही चार्जिंग की व्यवस्था होगी तो समस्या का थोड़ा समाधान देखा जा सकेगा। दरअसल अब समय आ गया है जब किराए के मकानों की तरह किराए के पार्किंग स्थल बनाए जाएं और वहीं पर कारों से संबंधित आवश्यक आवश्यकताओं की भी पूर्ति हो सके। जैसे हवा-पानी, सामान्य रिपेयर, साफ-सफाई, चार्जिंग आदि की सुविधाएं हो। इस तरह की पेड पार्किंग स्थानों पर ऑटोमेटिक बहुमंजिला पार्किंग व्यवस्था हो तो स्थिति और भी अधिक सुविधाजनक हो सकती है। बहु मंजिला इमारतों और माल्स में भी पार्किंग की अधिक सुविधा होना समय की मांग हो गई है।