शिशिर गुप्ता
फाइनेंशियल एक्शन टॉस्क फोर्स की पेरिस में हुई ऑनलाइन बैठक में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में ही रखे जाने पर
फिर से मुहर लग गई है। एफएटीफ ने बताया कि पाकिस्तानी सरकार आतंकवाद के खिलाफ 27 सूत्रीय एजेंडे को
पूरा करने में विफल रही है। एफएटीएफ ने यह भी कहा कि पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधित आतंकवादियों
के खिलाफ भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। दक्षिण एशिया में इस तरह की आतंकी फंडिंग की वकालत करने
वाले पाक पीएम इमरान खान और पाक सेना के लिए यह फिर से एक शर्मिंदगी का मौका है। कोरोना वायरस
महामारी के कारण पाकिस्तान को अपनी 27 सूत्रीय कार्ययोजना को पूरा करने के लिए तीन महीने का और समय
मिल गया है, मगर उसकी जैसी हरकतें हैं, उसे देखकर लगता नहीं कि वह उम्मीदों पर खरा उतर पाएगा।
एफएटीएफ की प्लेनरी में पाकिस्तान के बचाव के लिए तुर्की जरूर खुलकर बैटिंग करता दिखा। उसने सदस्य देशों
को दलील दी कि हमें पाकिस्तान के अच्छे काम पर भी विचार करना चाहिए और 27 में 6 मानदंडों को पूरा करने
के लिए थोड़ा और इंतजार करना चाहिए। लेकिन, एफएटीएफ के बाकी देशों ने तुर्की के इस प्रस्ताव को खारिज कर
दिया।
गौरतलब है कि कर्ज से दबे पाकिस्तान ने एफएटीएफ की ग्रे सूची से निकलने की कोशिश के तहत अगस्त महीने
में 88 प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और उनके नेताओं पर वित्तीय पाबंदी लगाई थी। इनमें मुंबई हमले का
सरगना और जमात-उद दावा प्रमुख हाफिज सईद, जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर और अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद
इब्राहिम भी शामिल है। भारत ने पाकिस्तान की सच्चाई से दुनिया के सामने पर्दा उठाया और बताया था कि पाक
ने 27 में से सिर्फ 21 बिंदुओं पर काम किया है और अभी भी वहां आतंकियों को पनाह दी जा रही है। भारत ने
आरोप लगाया कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र की सूची में शामिल जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया और दाउद इब्राहिम जैसे
आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा है। भारत ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र
सुरक्षा परिषद की कही इकाइयों और लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता
अनुराग श्रीवास्तव ने कहा है कि एफएटीएफ के 6 ऐसे अहम बिंदु हैं जिन पर पाकिस्तान ने कोई काम नहीं किया
है।
कुछ दिन पहले ही पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तुर्की, मलेशिया और सऊदी अरब से सहायता
मांगी थी। एफएटीएफ ने कहा कि पाकिस्तान ने आजतक हमारे 27 कार्ययोजनाओं में से केवल 21 को ही पूरा
किया है। अब इसे पूरा करने की समयसीमा खत्म हो गई है। इसलिए, एफएटीएफ 2021 तक पाकिस्तान से सभी
कार्ययोजनाओं को पूरा करने का अनुरोध करता है। इसके अलावा नामित करने वाले चार देश-अमेरिका, ब्रिटेन,
फ्रांस और जर्मनी भी पाकिस्तान की सरजमीं से गतिविधियां चला रहे आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई
करने की उसकी प्रतिबद्धता से संतुष्ट नहीं हैं। एफएटीएफ ने पाकिस्तान को आतंकवाद के वित्तपोषण को पूरी तरह
रोकने के लिए कुल 27 कार्ययोजनाएं पूरी करने की जिम्मेदारी दी थी जिनमें से उसने अभी 21 को पूरा किया है
और कुछ काम पूरे नहीं कर सका है।
अब पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में बना है तो उसकी आर्थिक स्थिति का और बेड़ा गर्क होना तय है।
पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ), विश्व बैंक और यूरोपीय संघ से आर्थिक मदद मिलना भी
मुश्किल हो जाएगा। पहले से ही कंगाली के हाल में जी रहे पाकिस्तान की हालात और खराब हो जाएगी। दूसरे देशों
से भी पाकिस्तान को आर्थिक मदद मिलना बंद हो सकता है। क्योंकि, कोई भी देश आर्थिक रूप से अस्थिर देश में
निवेश करना नहीं चाहता है। पाकिस्तान का सार्वजनिक ऋण इस साल जून तक बढ़कर 37,500 अरब पाकिस्तानी
रुपए या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 90 प्रतिशत हो जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान सिर्फ इस
साल ही कर्ज चुकाने पर 2,800 अरब रुपए खर्च करेगा जो संघीय राजस्व बोर्ड के अनुमानित कर संग्रह का 72
प्रतिशत है। दो साल पहले जब पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार सत्ता में आई थी, तब सार्वजनिक
ऋण 24,800 लाख करोड़ रुपये था, जो तेजी से बढ़ रहा है।
बता दें कि पाकिस्तान को जून 2018 में ग्रे सूची में डाला था। अक्टूबर 2018 और फरवरी 2019 में हुए रिव्यू
में भी पाक को राहत नहीं मिली थी। पाक एफएटीएफ की सिफारिशों पर काम करने में विफल रहा है। इस दौरान
पाकिस्तान में आतंकी संगठनों को विदेशों से और घरेलू स्तर पर आर्थिक मदद मिली है। एफएटीएफ द्वारा
ब्लैकलिस्ट में शामिल किए जाने पर पाकिस्तान को उसी श्रेणी में रखा जाएगा जिसमें ईरान और उत्तर कोरिया को
रखा गया है और इसका मतलब यह होगा कि वह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों जैसे आईएमएफ और विश्व बैंक से
कोई ऋण प्राप्त नहीं कर सकेगा। इससे अन्य देशों के साथ वित्तीय डील करने में भी समस्याओं का सामना करना
पड़ेगा।