-सिद्वार्थ शंकर-
अफगानिस्तान मसले पर भारत द्वारा आयोजित एनएसए स्तर की बैठक से पाकिस्तान के कान खड़े हो गए हैं।
अब खबर आ रही है कि इसी मसले पर पाकिस्तान भी बैठक कर रहा है। अफगानिस्तान मसले को लेकर
पाकिस्तान गुरुवार को अमेरिका, चीन और रूस के सीनियर डिप्लोमैट्स की मेजबानी करेगा। पाकिस्तान के विदेश
मंत्री शाह महमूद कुरैशी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ ट्रोइका प्लस बैठक की अध्यक्षता करेंगे। इस
बैठक को लेकर पाकिस्तान के अधिकारी का कहना है कि ट्रोइका प्लस अफगान अधिकारियों के साथ जुड़ाव के लिए
एक महत्वपूर्ण मंच है। यह एक समावेशी सरकार के लिए समर्थन व्यक्त करेगा। हम अफगानिस्तान में
मानवाधिकारों, विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा पर बातचीत करेंगे। पाकिस्तान ने अब तक
तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है लेकिन तालिबान शासन को मान्यता दिलाने के लिए लगातार फ्रंटफुट पर
खेल रहा है। रूस और अमेरिका जैसे देश तालिबान को मान्यता देने में कोई जल्दबाजी में नहीं हैं। इन देशों ने कहा
है कि जब तक तालिबान अपना वादा पूरा नहीं करता तब तक मान्यता की कोई बात ही नहीं है। काबुल पर
तालिबान के कब्जे के बाद से ट्रोइका प्लस की यह पहली बैठक है। इस फॉर्मेट की आखिरी बैठक अगस्त की
शुरुआत में दोहा में हुई थी। रूस द्वारा 19 अक्टूबर को मास्को में एक और बैठक बुलाई गई थी, लेकिन अमेरिका
ने लॉजिस्टिक्स का हवाला देते हुए भाग नहीं लिया था। खैर, अभी तो अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का
कब्जा होने के बाद पाकिस्तान की बांछें खिल गईं। उसकी खुशी इस बात से दोगुनी हो गई कि अफगानिस्तान के
भविष्य की रणनीति पर चर्चा करने वाले किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को जगह नहीं दी गई। इधर, भारत
भी अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की रूपरेखा तय किए जाने के वक्त से लेकर वहां तालिबान राज
कायम होने तक और उसके बाद भी, पड़ोस में लगी आग पर अब तक बेहद ठंडी प्रतिक्रिया देता रहा। पाकिस्तान
को भले ही लगे कि यह अफगानिस्तान के मुद्दे पर अलग-थलग पड़े भारत की मजबूरी है, लेकिन असलियत में
यह भारत की रणनीति रही कि पहले दुनिया को पाकिस्तान और तालिबान की हकीकत का अंदाजा लग जाए, फिर
अपना पासा फेंका जाएगा। इसीलिए दिल्ली में रूस, ईरान और मध्य पूर्व के पांच देशों के रक्षा प्रतिनिधि, भारत के
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ अफगानिस्तान के मुद्दे पर महामंथन करने जुटे हैं। दरअसल,
अजीत डोभाल वो शख्सियत हैं जिन्हें पाकिस्तान मामले का विशेषज्ञ माना जाता है। वो वहां अंडरकवर एजेंट के
रूप में 7 वर्ष रह चुके हैं। यही वजह है कि न केवल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बल्कि आज की बैठक में हिस्सा
लेने वाले देशों ने भी अफगान समस्या का हल ढूंढने में अजीत डोभाल के नेतृत्व को स्वीकार किया। पाकिस्तान
अपने लिए डोभाल को कितना बड़ा खतरा मानता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो डोभाल
की हत्या करवाने तक की साजिश रचता रहा है। पाकिस्तान अजित डोभाल की फितरत से पूरी तरह वाकिफ है। वे
वहां सात साल तक रहकर एक एक नब्ज भांप चुके हैं। इसलिए जब अफगानिस्तान के मसले पर बैठक की कमान
भारत ने डोभाल को सौंपी तो उसके हाथ-पैर तक कांपने लगे। पाकिस्तान की बैठक बता रही है कि अफगान मसले
पर भारत ने उसे चारों तरफ से घेर लिया है।