-सिद्वार्थ शंकर-
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें अधिवेशन के बाद एक तरफ भारत के विजन की तारीफ हो रही है तो दूसरी तरफ
पाकिस्तान को उसकी आतंकवाद परस्त नीति के लिए लताड़ लग रही है। आतंक को पालने वाला पाकिस्तान इस
तरह घिर चुका है कि उसके प्रधानमंत्री इमरान खान दुनिया को मुंह दिखाने लायक नहीं रह गए हैं। इमरान संयुक्त
राष्ट्र महासभा के अधिवेशन में हिस्सा लेने तक नहीं गए। भाषण भी दिया तो रिकॉर्ड किया हुआ। यह देखने में
भले ही सामान्य लगे, मगर इसका असर बेहद गंभीर है। ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान पूरी दुनिया से अलग-थलग
पड़ गया। बाइडेन ने सत्ता में आने के बाद से अब तक इमरान खान से बात नहीं की है। चीन उसके साथ न होता
तो शायद अब तक पाकिस्तान के सामने कटोरा पकडऩे के अलावा कोई चारा नहीं होता। बावजूद इसके वह
आतंकवाद को पालने की आदत से बाज नहीं आ रहा। अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनवाने से लेकर
कश्मीर में अपना मतलब साधने की फिराक में बैठा है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें अधिवेशन में अपने देश के विकास या निवेश की बात करने के बजाए पाकिस्तान
के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर कश्मीर राग अलापा। प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि जब तक
भारत जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के निर्णय को वापस नहीं लेता है, तब तक पाकिस्तान भारत से
वार्ता नहीं करेगा। तो मत करिए। भारत तो फैसला वापस लेने से रहा। इमरान का कश्मीर राग कोरोना वायरस और
आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान से ऊपर था। भारत और पाकिस्तान के पहले से तल्ख रिश्तों में हर बार
कश्मीर को लेकर कड़वाहट बढ़ जाती है। जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के
प्रावधानों को खत्म करने का फैसला भारत का अंदरूनी मामला है लेकिन इस बात से पाकिस्तान तो और बौखलाया
बैठा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि कश्मीर का मुद्दा उठाना पाकिस्तान की मजबूरी है क्योंकि यह उसके वजूद की
लड़ाई है। आखिर क्या वजह है कि पाकिस्तान अक्सर यूएन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर की बात उठाता है
और हर बार उसे भारत से न केवल करारा जवाब मिलता है बल्कि लताड़ भी मिलती है। लेकिन पाकिस्तान है कि
बाज नहीं आता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह तो यह है कि पाकिस्तान ऐसा केवल सेना के
अपने आकाओं को खुश करने के लिए ही करता है क्योंकि वे कश्मीर मुद्दे को जिंदा रखना चाहते हैं। पाकिस्तान
को किसी राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता की तरह समझना चाहिए। जैसे किसी पार्टी के प्रवक्ता अपनी पार्टी की
नीतियों और विचारधारा के अनुरूप अपने आलाकमान को खुश करने के लिए बयान देते हैं उसी तरह पाकिस्तान
का भी बॉस है उनकी सेना। सब जानते हैं कि पाकिस्तान में सेना की ही चलती है और वहां की सरकार सेना के
हाथों की कठपुतली होती है। इमरान खान भी उनके समर्थन से ही सत्ता में आए हैं इसलिए वे अपनी सेना के
आकाओं को खुश करने के लिए इस तरह की बात करते हैं। इमरान खान आज जो कर रहे हैं उनसे पहले के
प्रधानमंत्री भी ऐसा ही करते रहे हैं। यह पाकिस्तान के लिए कोई नई बात नहीं है। पाकिस्तान पर आधिकारिक तौर
पर सेना का कंट्रोल नहीं है क्योंकि पाकिस्तान को डर है कि यदि उसकी सेना सत्ता में सीधे तौर पर आ गई तो
कॉमनवेल्थ देशों की सूची से उसे बाहर निकाल दिया जाएगा। कॉमनवेल्थ देशों का यह नियम है कि यदि किसी
देश पर सेना का कब्जा होता है तो उसे बाहर निकाल दिया जाता है। लेकिन यह बात सच है कि वहां सेना के
मुखौटे वाली सरकार है। पाकिस्तान सेना में कई कट्टर लोग शामिल हुए हैं।