गोंदिया – वैश्विक स्तरपर दुनियां में प्रदूषण एक ज्वलंत मुद्दा है, इसमें लोगों की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित होती है। आधिकारिक रूप से भारत दुनियां का तीसरा सबसे वायु प्रदूशित देश है और गुड़गांव गाजियाबाद संसार के सबसे प्रदूषित टॉप फाइव टाउनशिप हैं और भारत में सबसे अधिक प्रदूषित टाउनशिप की श्रेणी में है। अगर हम दिनांक 30 अक्टूबर 2023 का वायु गुणवत्ता सूचकांक देखें तो राजधानीदिल्ली क्यूएमके 322 गंभीर स्थिति में बना हुआ है,जिसे रेखांकितकरना जरूरी है। प्रदूषण कारक के रूप में मानवीय जीवको अधिक दोष दिया जा सकता है, क्योंकि हम वर्तमान कुछ सुख सुविधाओं के लिए अपने भविष्य और आने वाली पीढियां की खुशियों का गला घोट रहे हैं हमें वर्तमान में विकास और प्रकृति संरक्षण के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखना की जरूरत है। पर्यावरण की रक्षा करने केअनेकों कानून संसद और विधानसभाओं ने पारित किए हैं। परंतु मेरा विचार है कि एक तथ्य की और मानवता की खातिर सामाजिक और सामूहिक योगदान देने की जरूरत है, वह है परिवार एक वाहन अनेक से बढ़ते प्रदूषण को रेखांकित करना होगा। क्योंकि जिस तेजी के साथवाहन बढ़ रहे हैं, परिवार में हर सदस्य के लिए वाहन एक स्टेटस के लिए, ट्रैफिक जाम में के चलते प्रदूषण, पारिवारिक सदस्यों के विषम टाइमिंग्स के चलते वाहनों के चलन का दुरुपयोग सहित अनेको कारक हैं जो प्रदूषण को बढ़ाते हैं इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे वाहनों की बढ़ती संख्या से वायुमंडल पर विपरीत असर को नकारा नहीं जा सकता।
साथियों बात अगर हम प्रदूषण बढ़ने के पारिवार एक वाहन अनेक सहित कुछ कारकों की करें तो, हमारे चेहरों परआबो हवा ने जो मास्क चढ़वा दिए हैं , उनसे भी खतरनाक वो मास्क हैं जो हमने जान बूझकर अपने दिमागों पर पहन रखे हैं। अब भी अगर ज़मीर में न झाँका तो न आँखें बचेंगी , न दिमाग और न ज़मीर, क्या ये सच नही कि अपनी गाड़ी आज भी इस देश में सुविधा से कहीं ज़्यादा , एक स्टेटस सिंबल है ? जितनी ज़्यादा गाड़ियाँ, उतना महत्वपूर्ण हमें हमारा होना लगता है ? बेटे की सार्थकता तब तक सिद्ध नहीं होती जब तक बहु के माता-पिता अपनी ख़ुशी से उसे गाड़ी न दें ,और बेटा /पति तब तक सफल कैसे साबित हो जब तक वो हर दूसरे साल और बड़ी गाड़ी न खरीद ले ? क्या ये सच नहीं की हम में से सब ने कभी न कभीपर्यावरण से जुड़े किसी न किसी कानून का उल्लंघन किया है, पानी बर्बाद करना , निर्धारित लिमिट से अधिक कंस्ट्रक्शन करना करवाना , पटाखे चलाना , कूड़ा जलाना , घर को साफ़ करके कूड़ा कहीं भी जाए इसकी परवाह नहीं करना , गाड़ी के प्रदूषण सर्टिफिकेट /चेक पर ज़्यादा ध्यान न देना,नदियों में कुछ न कुछ प्रवाहित करना ? इसके अलावा बहुत कुछ जिसके खिलाफ कोई कानून नहीं पर हम करते हैं।हर कमरे में एसी लगवाना , एक से अधिक गाड़ी रखना , छोटी दूरियों के लिए भी पैदल नहीं जाना, पेड़ नहीं लगाना, पौधे नहीं लगाना, बचाव और रोकथाम पर ध्यान न देकर चमत्कारी घरेलू नुस्खे खोजना जब समस्या हद्द से ज़्यादा न हो, हम ये भूल गए हैं इस खेल में किसी दिन हम सबकी ही मात होने वाली है।
साथियों बात अगर हम दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के एक कारक की करें तो, सबसे अधिक करीब 80 लाख दोपहिया वाहन और उसके बाद करीब 35 लाख कार पंजीकृत हैं। चिंताजनक यह भी है कि दिल्ली में चलने वाले 60प्रतिशत से अधिक वाहन बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के रफ्तार भर रहे हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई करने वाला परिवहन विभाग मुहूर्त निकालकर विशेष जांच अभियान चलाता भी है तो वह खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं होता?राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या दूर करने के लिए सरकार से लेकर अदालत तक कोशिशों में जुटी हुई हैं, लेकिन हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। सर्दी की दस्तक के साथ ही वातावरण में प्रदूषक तत्व और बढ़ने शुरू हो गए हैं। हर साल दर साल 5.81 प्रतिशत की दर से राजधानी में निजी वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। जहां तक डीजलवाहनों की बात है तो इनकी संख्या निजी वाहनों में अच्छी खासी है जो प्रदूषण में इजाफे के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है।
साथियों बात अगर हम प्रदूषण बढ़ने के एक कारण पर रिपोर्ट की करें तो, जाम के दौरान भी और सड़कों पर वाहनों के रेंगने के क्रम में भी ईंधन फूंकता रहता है, इंजन भी चालू ही रहता है। स्वाभाविक रूप से इस स्थिति में प्रदूषण तो बढ़ेगा ही। कहने का मतलब यह कि वाहनों की इस बढ़ी संख्या और इससे वायुमंडल पर हो रहे असर को कतई नहीं नकारा जा सकता। शोध रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के प्रदूषण में पीएम 10 के स्तर पर वाहनों से 14 और पीएम 2.5 के स्तर पर 25 से 36प्रतिशत प्रदूषण होता है। चिंताजनक यह भी है कि दिल्ली में चलने वाले 60 प्रतिशत से अधिक वाहन बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के रफ्तार भर रहे हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई करने वाला परिवहन विभाग मुहूर्त निकालकर विशेष जांच अभियान चलाता भी है तो वह खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं होता।दिल्ली की सड़कों पर रोज करीब 60 लाख से अधिक वाहन उतरते हैं, लेकिन इनकी प्रदूषण जांच के लिए परिवहन विभाग के पास कर्मचारियों की टीम भी पर्याप्त नहीं है। कुछ प्रदूषण जांच केंद्र ऐसे भी हैं जो डीजल वाहनों की जांच करने में आनाकानी करते हैं और वाहनों को प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र भी जारी नहीं करते हैं। वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण की जांच के लिए बनी तकनीक का आज तक आडिट नहीं कराया गया। इससे इसकी कार्य क्षमता की सत्यता का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। मेरे विचार में आड इवेन व्यवस्था भी बहुत कारगर नहीं है। वैसे भी राजनीतिक कारणों से दिल्ली में इसके तहत तमाम लोगों को छूट दे रही है।इसी तरह रेड लाइट आन, गाड़ी आफ अभियान भी अच्छा होने के बावजूद बहुत कारगर नहीं है। गाड़ी आन रखना भी चालकों की मजबूरी है। बार बार गाड़ी आन और आफ करने पर भी ईंधन ज्यादा जलता है। अगर गंभीरता से सोचा जाए तो सार्वजनिक परिवहन सेवा को मजबूत करके ही प्रदूषण की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।सड़कों पर निजी वाहनों का जो बोझ आड इवेन के जरिये कम करने की कोशिश हो रही है, वह सार्वजनिक परिवहन की मजबूती से स्थायी तौर पर हो सकती है। बाटलनेक खत्म करने के लिए यातायात का प्रबंधन बेहतर तरीके से किए जाने की व्यवस्था बने।इसके अलावा बाटलनेक वाले प्वाइंट पर सड़कों की दोषपूर्ण डिजाइनिंग में भी सुधार आवश्यक है। यातायात नियमों का उल्लंघन करने के मामले में जो चालान काटे जाते हैं उसमें अदालतों को एक साल के अंदर ही संबंधित वाहन चालकों को नोटिस जारी करने का प्रविधान है, लेकिन समय सीमा बीत जाने पर भी नोटिस नहीं जारी होता।ऐसे में शहर में यातायात नियमों का पालन कराने के लिए सीसीटीवी लगाने का भी क्या औचित्य है? यातायात पुलिस को चाहिए कि जहां भी सड़कों पर यातायात बाधित हो, वहां गतिरोध बने वहांफ्लाईओवर या अंडरपास बनाने के लिए सरकार व संबंधित विभाग को समय-समय पर प्रस्ताव भेजा जाए।यातायात कर्मियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। जहां भी सड़कों पर जाम लगता है वहां नियमित तौर पर यातायात कर्मियों की उपस्थिति होनी चाहिए। जब तक जाम की समस्या से निजात नहीं मिलेगी तब तक वायु प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकेगा।
साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा दिनांक 27 अक्टूबर 2023 को एक कार्यक्रम में प्रदूषण संबंधी संबोधन की करें तो उन्होंने आज विकास और संरक्षण के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि हमारे नागरिकों की विकास आवश्यकताओं को पूरा करते हुए हमारे जंगल फलते-फूलते रहें। यह देखते हुए कि वन हमारे लाखों नागरिकों, विशेषकर आदिवासी समुदायों की जीवन रेखा हैं, उन्होंने रेखांकित किया कि हालांकि वनों का संरक्षण, महत्वपूर्ण है तथापि वन संसाधनों पर निर्भर समुदायों को उन से अलग नहीं किया जा सकता है। देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान में वनों पर संयुक्त राष्ट्र मंच-भारत द्वारा देश के नेतृत्व वाली पहल के समापन समारोह को संबोधित करते हुएउपराष्ट्रपति ने कहा कि यह पृथ्वी हमारी नहीं है, और हमें इसे आने वाली पीढ़ियों को सौंपना होगा। जैव विविधता के पोषण और संरक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हम केवल इसके ट्रस्टी हैं, और हम अपने लापरवाह दृष्टिकोण और प्राकृतिकसंसाधनों के दोहन के साथ अपनी भावी पीढ़ियों के साथ समझौता नहीं कर सकते अपने संबोधन में, उपराष्ट्रपति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सतत विकास और जलवायु परिवर्तन पर काबू पाना सुरक्षित भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। भावी चुनौतियाँ के प्रति लोगों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि यदि विकास टिकाऊ नहीं है तो पृथ्वी पर जीवित रहना मुश्किल होगा।यह देखते हुए कि हम जिस जलवायु चुनौती का सामना कर रहे हैं, वह किसी व्यक्ति को प्रभावित नहीं करेगी, बल्कि यह पूरी पृथ्वी को प्रभावित करेगी, श्री धनखड़ ने समाधान खोजने के लिए सभी संसाधन जुटाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, कोविड की तरह, जो दुनिया के लिए एक चुनौती थी, जलवायु परिवर्तन कोविड चुनौती से कहीं अधिक गंभीर है। उपराष्ट्रपति ने पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के लिए समन्वित वैश्विक रुख को एकमात्र विकल्प बताते हुए कहा कि एक देश इसका समाधान नहीं ढूंढ सकता है । समाधान खोजने के लिए युद्धस्तर पर सभी देशों को एकजुट होना होगा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि परिवार एक वाहन अनेक से बढ़ते प्रदूषण को रेखांकित करना जरूरी।प्रदूषण की समस्या से निपटने सार्वजनिक परिवहन सेवा को मजबूत करना समय की मांग है।वाहनों की बढ़ती संख्या से वायुमंडल पर विपरीत असर को नकारा नहीं जा सकता।