पत्रकारिता की लाज:रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता रवीश कुमार

asiakhabar.com | August 3, 2019 | 5:06 pm IST
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विनय गुप्ता

आपातकाल के समय 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने एक बार देश के चौथे स्तंभ
का गला घोंटने का प्रयास करते हुए प्रेस पर सेंसर लागू किया था। इंदिरा गाँधी की इस तानाशाही का पूरे
देश में ज़बरदस्त विरोध हुआ था। विपक्ष, मीडिया व देश के आम लोग सभी आपातकाल की तानाशाही
के विरुद्ध एकजुट हो गए। नतीजतन, उस समय देश की अजेय समझी जाने वाली नेता इंदिरा गाँधी को
1977 में सत्ता से बेदख़ल होना पड़ा था। परन्तु वर्तमान परिस्थिति तो कुछ अजीब ही है। न तो देश में
आपातकाल लागू है न ही मीडिया पर किसी तरह का सेंसर या प्रतिबन्ध है। देखने में मीडिया पूर्णतयः
स्वतंत्र हैं। परन्तु बड़े ही व्यवस्थित व नियोजित तरीक़े से देश का अधिकांश मीडिया घराना अपने
वास्तविक कर्तव्यों से विमुख होकर सत्ता के एजेंडे को पूरा करने में ही पूरे ज़ोरशोर से लगा हुआ है। इस
नई चापलूसी पूर्ण प्रवृति की वजह से ही इन दिनों भारतीय मीडिया को कई नए नए नामों से पुकारा
जाने लगा है। दलाल मीडिया, गोदी मीडिया, भक्त मीडिया आदि चौथे स्तम्भ के नए नाम दिए गए हैं।
पत्रकारिता के उसूलों को बयान करता एक बहुत मशहूर शेर है-"न स्याही के हैं दुश्मन न सफ़ेदी के हैं
दोस्त:हमको आईना दिखाना है दिखा देते हैं"। मगर सत्ता और समाज को आईना दिखने का दावा करने
वाला यही मीडिया आज ख़ुद आईना देखने के लिए मजबूर है। देश के जाने माने व स्वयं को टी आर पी
के लिहाज़ से नंबर वन बताने वाले चैनल्स के अनेक पत्रकारों का जीवन चरित्र देखिये, उनके स्वामी की
राजनैतिक हैसियत व पद देखिये उसके बाद इनके कार्यक्रमों के एजेंडे व बहस के शीर्षक पर ग़ौर कीजिये,
आपको स्वयं अंदाज़ा हो जाएगा की यह पत्रकारिता की जा रही है या "पत्थरकारिता "। इनकी लगभग हर
ख़बरें और अधिकांश कार्यक्रम व बहस आदि के पीछे एक उत्तेजना फैलाने वाला विभाजनकारी एजेंडा
आपको देखने को मिलेगा। पिछले 5 वर्षों में देश ने ऐसे ही टी वी चैनल्स पर कई ऐसे कार्यक्रम देखे
जिसमें स्टूडियो में लाइव शो में गली गलौज, मार पीट, डराना धमकाना, अमर्यादित व असंसदीय भाषाओँ
की बौछार तरह तरह की नफ़रत फैलाने व देश को तोड़ने वाली भाषाओँ का इस्तेमाल खुले आम प्रसारित
किया गया। इस तरह की प्रस्तुतियों से देश में बड़े पैमाने पर वैचारिक विभाजन हुआ। इन चैनल्स की टी
आर पी बढ़ी, ये सत्ता के आँखों के तारे बने रहे। सत्ता के चाटुकार चैनल सत्ता से सवाल पूछने के बजाए
विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करते रहे। गोया देश की जनता चौथे स्तंभ की ज़िम्मेदारियों को ईमानदारी
से पूरा करने वाले चैनल्स को देखने को तरस रही थी। ऐसे बेबाक, निर्भय और निष्पक्ष पत्रकार तो गोया
मुख्यधारा के चैनल्स से समाप्त ही होते जा रहे थे जो सत्ता को कटघरे में खड़ा करने का साहस रखते
हैं। और जो चंद बेबाक पत्रकार थे भी उन्हें सत्ता के दबाव में आकर किसी न किसी बहाने से मीडिया
हाऊस के मालिकान द्वारा बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। आज ऐसे ही कई पत्रकार सोशल मीडिया के
माध्यम से अपने स्वयं के कार्यक्रम बना कर अपने साहस का परिचय भी दे रहे हैं और सत्ता की आंखों
में आंखे मिलकर उसे कटघरे में खड़ा करने की कोशिश भी कर रहे हैं।
देश के ऐसे ही एक बेबाक एवं पूरी ईमानदारी से पत्रकारिता का दायित्व निभाने वाले पत्रकार का नाम है
रवीश कुमार। सत्ता व "भक्तों" की आँखों की किरकिरी बना यह पत्रकार इस समय देश के किसानों,

युवाओं, महिलाओं, छात्रों, बेरोज़गारों तथा शोषित समाज की पसंद का सबसे लोकप्रिय पत्रकार है। जिस
समय देश के अधिकांश टी वी चैनल, भारत-पाकिस्तान, गाय, गंगा, तीन तलाक़, लव जिहाद, घर वापसी,
राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता पर फ़ायर ब्रांड नेताओं को बुला कर अपने ऐंकर के माध्यम से स्टूडियो में
उत्तेजना पूर्ण बहसें करवाकर पूरे देश में घर घर तनाव व वैमनस्य का वातावरण परोस रहे थे उसी दौरान
रविश कुमार देश की बुनियादी समस्याओं पर कार्यक्रम पेशकर सत्ता से सवाल कर रहे थे। वे देश के
किसानों की बदहाली, किसानों की आत्महत्या, देश के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों की वास्तविक
स्थिति, शिक्षा के गिरते स्तर, छात्रों की समस्याओं, बेरोज़गारी व मंहगाई की स्थिति, रेलवे में नौकरी
आदि जनसमस्याओं से जुड़े विषयों पर सवाल उठा रहे थे। रविश कुमार का एक भी कार्यक्रम ऐसा नहीं
मिलेगा जिसमें झाड़ फूंक, भूत प्रेत, जादू टोना, अन्धविश्वास, अफ़वाहबाज़ी, सत्ता की ख़ुशामद परस्ती
आदि को प्रोत्साहन दिया गया हो। जबकि टी आर पी के लिए दलाल मीडिया द्वारा यही सब शॉर्ट कट
रास्ता अपनाया जा रहा था। "भक्त मीडिया" का एक अत्यंत चहेता व आकर्षक पत्रकार तो देश के लोगों
को बड़े दावे के साथ यह तक समझा रहा था कि दो हज़ार की नई नोट में गुप्त रूप से चिप डाली गई
हैं। आज इनसे कोई यह पूछने वाला नहीं की वह चिप कहाँ हैं और आपको किसने यह जानकारी दी।
इतना बड़ा झूठ बोलने के बावजूद भक्तों के मध्य उसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई और सत्ता
की चाटुकारिता के चलते उन "पत्थरकार महोदय " का आत्म विश्वास भी जस का तस बरक़रार है।
जबकि दूसरी ओर रविश कुमार जहाँ देश के निष्पक्ष लोगों की पहली पसंद के पत्रकार बने वहीँ "भक्तों"
द्वारा उन्हें अपमानित करने का भी पूरा प्रयास किया गया। उनको व उनके परिवार को डराने धमकाने
की कोशिशें की गयीं, सोशल मीडिया पर उन्हें ख़ूब गलियां दी गयीं। उनके टी वी चैनल एन डी टी वी को
भी कई प्रकार से डराने धमकाने की कोशिश की गयी। क़ानूनी शिकंजा कसने का भी प्रयास किया गया।
परन्तु बधाई के पात्र हैं रवीश कुमार तथा उनके एन डी टी वी चैनल के स्वामी गण जिन्होंने सत्ता के
किसी भी दबाव के आगे घुटने नहीं टेके न ही सत्ता के दलालों की धमकी या ट्रोलिंग की परवाह की।
इसके विपरीत सत्ता से सवाल करने व व्यवस्था को आईना दिखाने के पत्रकारिता के अपने दायित्व पर
पूर्णतयः अडिग रहे। सत्ता के ख़ुशामद परस्तों द्वारा इन पत्रकारों को यह कहकर भी टैग करने की
कोशिश की गयी कि यह कांग्रेस या वामपंथी समर्थक पत्रकार हैं। परन्तु जब इनके सामने इन्हीं पत्रकारों
की 2014 से पहले की वह रिपोर्टिंग रखी जाती जिसमें यह अन्ना आंदोलन के पक्ष में खड़े दिखाई देते
या भ्रष्टाचार के विरुद्ध मनमोहन सरकार को कटघरे में खड़ा करते नज़र आ रहे थे उस समय यह
भक्तगण "लाजवाब" नज़र आते। रवीश कुमार द्वारा सत्ता संस्थानों से पूछे जाने वाले सवालों का ही भय
था जिस की वजह से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने रविश कुमार के कार्यक्रम में भाग लेने से ही
मना कर दिया था।
बहरहाल आज देश के उसी बेबाक, निष्पक्ष और निडर वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को एशिया में
साहसिक और परिवर्तनकारी नेतृत्व के लिए दिये जाने वाले 2019 के प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे सम्मान से
नवाज़ा गया है। दलाल पत्रकारिता पर विश्वास करने वाले मौक़ा परस्त लोग रवीश को जो चाहे कहें
परन्तु रेमन मैग्सेसे सम्मान देने वाले संस्थान का रवीश कुमार के विषय में यह कहना है कि "रवीश
अपनी पत्रकारिता के ज़रिए उनकी आवाज़ को मुख्यधारा में ले आए, जिनकी हमेशा उपेक्षा की जाती
है.संस्थान के अनुसार यदि आप ऐसे लोगों की आवाज़ बनते हैं तो आप पत्रकार हैं"। रेमन मैग्सेस अवॉर्ड

फ़ाउंडेशन संस्थान ने रवीश की पत्रकारिता को उच्चस्तरीय, सत्य के प्रति निष्ठा, ईमानदार और निष्पक्ष
बताया है. फ़ाउंडेशन ने कहा है कि रवीश कुमार ने बेज़ुबानों को आवाज़ दी है"। लोकतंत्र के लड़खड़ाते हुए
चौथे स्तंभ के दौर में किसी भारतीय पत्रकार को एशिया का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान दिया जाना
निश्चित रूप से न केवल भारतीय पत्रकारों के लिए सम्मान का विषय है बल्कि यह सत्ता के उन चाटुकार
पत्रकारों के मुंह पर भी एक ज़ोरदार तमंचा है जो भौतिक सुख सुविधाओं के चलते अपने कर्तव्यों की
बलि देकर सत्ता शक्ति की गोद में जा बैठना ज़्यादा फ़ायदेमंद समझते हैं। रेमन मैग्सेसे सम्मान विजेता
रवीश कुमार उदीयमान भारतीय पत्रकारों के लिए एक प्रेरणा स्तंभ साबित होंगे। देश के सभी निष्पक्ष,
निर्भय व कर्तव्य परायण पत्रकारों की ओर से रवीश कुमार को हार्दिक बधाई। ईश्वर उन्हें शतायु दे तथा
हमेशा कर्तव्य मार्ग पर चलने का ऐसा ही हौसला प्रदान करे।


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