नौकरों/अधिकारीयों का मुख्य कार्य मंत्रियों को खुश रखना

asiakhabar.com | February 15, 2022 | 5:13 pm IST
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-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन-
प्रजातंत्र में चुने हुए प्रतिनिधियों को विधयिका मानते हैं ,उनके अधीनस्थ कार्यपालिका निश्चित रूप से उनकी
सहायता करने ,उनकी मंशाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होती या रहती हैं .बहुत सीमा तक न्यायपालिका भी
अप्रभावित नहीं रहती पर पत्रकरिता तो वर्तमान में पंगु हो गयी हैं. बुद्धिमान राजा वर्तमान में प्रधान मंत्री जो अपने
आपको प्रधान सेवक बताते हैं पर वह वास्तव में नौकर हैं को स्वयं और अपने अधीनस्थों को यानी मत्रियों को
निम्म गुणों का धारक बनाना चाहिए .प्रधानमत्री द्विज ,स्वदेशवासी ,सदाचारी ,कुलीन ,व्यसनों से रहित ,द्रोह ना
करने वाला ,नीतिज्ञ ,निष्कपट युध्य -विद्या विशारद होना चाहिए .
विषनिशेक इव दुराचारः सर्वान गुणान दुषयति .(नीतिवाक्यामृत १०/७ )
दुराचार –खोता आचरण (कुत्सित और निंद्य कर्मों में प्रवत्ति )विष भक्षण की तरह समस्त गुणों को नाश कर देता
हैं अर्थात जिस प्रकार विष का भक्षण जीवन नष्ट कर देता हैं ,उसी प्रकार दुराचार भी विद्या ,कला और नीतिमत्ता
आदि मानवोचित गुणों को अथवा राज्य की वृद्धि और रक्षा करने वाले संधि और विग्रह आदि गुणों को नष्ट कर
देता हैं .राजा का मंत्री सदाचारी होना चाहिए अन्यथा उसके दुराचारी होने पर राज्यवृक्ष का मूल (राजनैतिक ज्ञान )
और सैनिक संगठन आदि सद्गुणों के अभाव से राज्य की क्षति सुनिश्चित रहती हैं .

तदमृतस्य विषत्वं यःकुलीनेषु दोषसम्भवः .(नीतिवाक्यामृत १०/१७ )
कुलीन पुरुषों में विश्वाश घात आदि दोषों का होना अमृत का विष होने के समान हैं अर्थात जिस प्रकार अमृत विष
नहीं हो सकता उसी प्रकार उच्च कुल वालों में भी विश्वासघात आदि दोष नहीं हो सकते . क्षुद्र प्रकति वाले मंत्री
आदि अधिकारी अपने अपने अधिकारों में नियुक्त किये हुए सैंधव जाति के घोड़े योग्यता प्राप्त कर लेने पर (चाल
आदि सीख लेने पर ) दमन करने से उन्मुक्त होकर सवार होकर सवार को जमीन पर पतकतना आदि विकार युक्त
हो जाते हैं ,उसी प्रकार अधिकारी गण भी क्षुद्र प्रकृति वश गर्व युक्त होकर राज्य क्षति करने तत्पर रहते हैं अतः
राजा को सड़ उनकी परीक्षा -जाँच करते रहना चाहिए . पटना बिहार से जानकारी मिली जो अत्यंत हैरत करने वाली
हैं वहां के पूर्व आई पी एस ने यह आरोप लगाया की सरकार और उसके कई मंत्रियों को मुजफ्फनगर शेलटर होम
की खूबसूरत लड़कियों को ,वहां की अधीक्षिका के माध्यम से मंत्रियों तक भेजा जाता हैं .
इससे यह बात की पुष्टि होती हैं की जब गंगोत्री ही अपवित्र हैं तब गंगा कहाँ तक पवित्र होगी .जब एक जिम्मेदार
पुलिस अफसर इस बात को उद्घाटित करता हैं तब उस राज्य की स्थिति कितनी घिनौनी होगी .वैसे वैश्यावृत्ति
,परस्त्री सेवन का व्यवसाय प्राचीनतम हैं और इस पर बंदिश नहीं लगाई जा सकती हैं .पर इस प्रकार घिनोने कृत्यों
को सार्वजनिक करना कितना उचित हैं .इससे बलशाली ,शक्तिशाली ,प्रभावशाली लोग अपने प्रभाव का कितना
दुरूपयोग करते हैं और उससे अपने अधीनस्थों पर कितना गलत काम कराते हैं यह विचारणीय हैं . वर्तमान में वह
ही नेता बन सकता हैं जो चरित्रहीन हो .चरित्रवान व्यक्ति आज की मशीनीकरण में अयोग्य हैं .जो जितना अपराधी
,पापी दुराचारी ,वभिचारी होगा वही उन्नति वाला बन सकता हैं . आज हम शिक्षित उतने अधिक अपराधी हो रहे हैं
.ऐसा क्यों?कारण हम शीघ्र धनवान बलवान शक्तिशाली प्रभावशाली बनने कुछ भी करने को तैयार हैं .वर्तमान में
चरित्र नैतिकितता का स्थान कहीं नहीं दिखाई देता हैं .ये सब बातें शब्दकोष में निहित हैं .अधिकारी अपना स्वार्थ
सिद्ध करने या मनमाफिक स्थान पर पदस्थापना के लिए सब कुछ करने तैयार रहते हैं .और मंत्री बहुत कम
कार्यकाल के लिए होने से प्रभावशील होने से कुछ भी करते हैं .यह क्या वास्तव में उनकी मजबूरी हैं ?
भोपाल से प्रकाशित चार इमली पठनीय हैं . अधिकारी क्यों अपना ज़मीर बेचकर नौकरी करते हैं क्या पद
,पदस्थापना ,स्थानांतरण के कारण डरते हैं. इन सब कुकृत्यों का परिणाम भोगना होते हैं इसके लिए करने ,कराने
और समर्थन करने वाले पूर्ण अपराधी होते हैं


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