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विनय गुप्ता
चीन अपने पड़ौसी देशों के प्रति किस प्रकार का व्यवहार करता है, इसका अभी नेपाल को अहसास नहीं है, लेकिन
नेपाल अपने अतीत का दृष्टि डाले तो यह सहज ही पता चल जाता है कि वर्तमान में चीन के इशारे पर नेपाल की
सरकार अपनी सांस्कृतिक विरासत से दूर होने का उपक्रम कर रही है। यह सब कम्युनिष्ट विचारधारा के प्रभाव के
कारण ही हो रहा है। यह सभी जानते हैं कि भारत और नेपाल की राष्ट्रीय अवधारणा बहुत हद तक एक जैसी है।
जिसके कारण भारत और नेपाल में धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। नेपाल में जब से वामपंथी विचार का प्रादुर्भाव
हुआ है, तब से ही नेपाल को उसकी संस्कृति से दूर करने का प्रयास चल रहा है। इतना ही नहीं अब तो वह भारत
की सांस्कृतिक आस्था पर हमला करने से भी नहीं चूक रहे हैं।
अब ऐसा भी लगने लगा है कि नेपाल के प्रधानमंत्री कॉमरेड के.पी. शर्मा ओली चीन की चमचागिरी में अपनी मति
को भी भ्रष्ट कर बैठे हैं। भारत के खिलाफ एक बार फिर उन्होंने जहर उगला है। ओली की जहरीली बोली से नेपाल
और भारत के बीच संबंधों में आ रही कटुता की खाई और गहरी हो सकती है, क्योंकि इस बार ओली ने 130
करोड़ भारतीयों की आस्था और संस्कृति पर हमला किया है। ओली ने हमारे आराध्य श्री राम को नेपाली और उनके
जन्मस्थान अयोध्या को नकली अयोध्या कहकर यह साबित कर दिया कि वे राजनीतिक ही नहीं, बल्कि मानसिक
रूप से भी चीन की गुलामी के लिए तैयार है। भारत-नेपाल सिर्फ पड़ोसी देश ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत में
इतनी समानता है कि दोनों देशों के बीच रोटी-बेटी का संबंध रहा है। यह रिश्ता अभी भी है और भारत ने हमेशा
इस रिश्ते को हमेशा प्रगाढ़ बनाने का ही प्रयत्न किया है। इसके पहले चाहे वह राजशाही का दौर रहा हो या
लोकतांत्रिक सरकारों का, नेपाल के राजनेताओं ने कभी भी इस तरह भारत की भावनाओं से खिलवाड़ करने का
दुस्साहस नहीं किया। भारत ने भी नेपाल को सशक्त बनाने और किसी भी तरह की विपत्ति में दिल खोलकर मदद
करने में कभी कोताही नहीं बरती।
भारत-नेपाल के सांस्कृतिक संबंध आज के नहीं बल्कि युगों से हैं। अयोध्या में जन्मे भगवान श्री राम का विवाह
जनकपुर के राजा की पुत्री सीता माता के साथ हुआ था। जनकपुर नेपाल में है और आज भी वहां इसके साक्ष्य
मौजूद हैं। भारत से करोड़ों लोग भगवान पशुपतिनाथ और जनकपुर दर्शनों के लिए जाते हैं। नेपाल के संत महात्मा
और अन्य भक्त भी इसी तरह भारत में अयोध्या-काशी के अलावा अन्य धार्मिक स्थलों में आते हैं। सबसे खास
बात तो यह कि नेपाल की पहचान हिन्दु राष्ट्र के रूप में होती थी, जिसे धीरे-धीरे नष्ट करने का प्रयास किया जा
रहा है। दरअसल यह सब नेपाल की सरकार के मुखिया के.पी. शर्मा ओली इसलिए कर रहे हैं कि वे एक तो स्वयं
कम्युनिष्ट हैं और दूसरा उन पर चीन का शिकंजा है। इसीलिए वे चीन की विस्तारवादी नीति को न तो समझ पा
रहे और न ही समझने का प्रयत्न कर रहे हैं। इसी का फायदा चीन उठा रहा है और वह न सिर्फ नेपाल में अपना
दखल बढ़ा रहा है, बल्कि नेपाल पर कब्जा जमाते हुए उसे आर्थिक और मानसिक गुलाम भी बनाता जा रहा है।
जिसका प्रमाण सामने है।
के.पी. शर्मा ओली को चीन ने ऐसी गोली खिला रखी है कि उनके मुंह से जहरीली बोली ही निकल रही है। इस
कम्युनिष्ट नेता को पता होना चाहिए कि अयोध्या नेपाल में बता भी दोगे तो सरयू नदी कहां से लाओगे।
कम्युनिष्ट वैसे भी विधर्मी होते हैं, वे तो देवी-देवताओं और भगवान के अवतारों को मानते ही नहीं। फिर ओली को
अयोध्या क्यों याद आ गई? कम्युनिष्टों ने इतिहास को हमेशा ही तोड़ा-मरोड़ा है और सत्य को छिपाया है। यही
कोशिश ओली कर रहे हैं। ऐसा करके वे सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि नेपाल की जनता की भावनाओं को भी कुचलना
चाहते हैं। यद्यपि नेपाल सरकार ने अपने प्रधानमंत्री के बयान पर सफाई दी है और कहा है कि उनका इरादा भारत
की जनता की भावनाओं को ठेस पहॅुचाना नहीं था। तो क्या उन्होंने भारत को खुश करने के लिए अपनी जुबान से
जहर उगला है? ऐसा प्रतीत होता है कि चीन ने ओली की ऐसी कमजोर नस पकड़ ली है, जिसे दबाकर वह अपनी
मनमर्जी के मुताबिक उनसे कुछ भी करवा सकता है। नेपाल की जनता और दूसरी राजनीतिक पार्टियां चीन की
चालाकी को समझती भी हैं। यदि यही स्थिति रही तो नेपाल का चीनीकरण होने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा।
ओली तो यह बात समझेगे नहीं, इसलिए नेपाल की जनता को ऐसे नेताओं और राजनीतिक दलों को सबक सिखाना
चाहिए।