संयोग गुप्ता
पिछला साल राजनीतिक मायनों में काफी उथल-पुथल वाला रहा। लोकसभा का चुनाव भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी के नेतृत्व में शानदार ढंग से जीता। इसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में भाजपा वैसा
नहीं कर पाई, जैसी उम्मीद लगाई गई थी। हालांकि, साल बीतने के साथ इस पर चर्चा खत्म हो चुकी है। अब नए
साल में दो प्रमुख राज्यों के चुनाव पर नजर होगी। एक दिल्ली और दूसरा बिहार। इन दोनों राज्यों में विधानसभा
चुनाव होने हैं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा तो साल के आखिर में बिहार में
नीतीश कुमार के सामने सत्ता को बरकरार रखने की चुनौती होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली-बिहार दोनों राज्यों
में विपक्ष सत्ता में वापसी के आस लगाए हुए है। दिल्ली-बिहार विधानसभा चुनाव नतीजे के आधार पर बहुत कुछ
तय होगा। एक तरफ जहां इन दोनों राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सियासी ताकत की परख होगी तो विपक्षी राजनीति
की दशा और दिशा तय होगी।
राष्ट्रीय राजनीति में दबदबा बनाए रखने दोनों राज्यों के चुनाव नतीजे भाजपा के लिए अहम होंगे। दिल्ली की सत्ता
पर काबिज अरविंद केजरीवाल की राजनीति के लिए 2020 काफी अहम होने वाला है। साल के शुरुआत में ही
दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसमें अरविंद केजरीवाल के सामने सत्ता को बरकरार रखने की चुनौती होगी।
भाजपा यहां पिछले 20 साल से सत्ता का वनवास झेल रही है और अपनी वापसी के लिए बेताब है तो कांग्रेस के
सामने खाता खोलने और अपने वजूद को बचाए रखने की चुनौती है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने
2015 में दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटें जीतकर सत्ता हासिल किया था। केजरीवाल पिछले पांच
साल में दिल्ली में किए गए विकास कार्यों को लेकर एक बार फिर मैदान में उतर रहे हैं, लेकिन उनके कई
सेनापति उनका साथ छोड़ चुके हैं। भाजपा और कांग्रेस केजरीवाल के खिलाफ जबरदस्त घेराबंदी करने में जुटी है,
ऐसे में विपक्ष के चक्रव्यूह को तोडऩे का सारा दारोमदार केजरीवाल के कंधों पर हैं।
दिल्ली में भाजपा की कमान भले ही मनोज तिवारी के हाथ में हो लेकिन सत्ता के वनवास को खत्म करने के लिए
पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और अमित शाह की रणनीति से आस लगाए हुए है। हालांकि भाजपा ने दिल्ली
में अभी तक सीएम पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। वहीं, कांग्रेस 15 साल दिल्ली की सत्ता पर काबिज
रही है, लेकिन इस बार शीला दीक्षित के बिना मैदान में है। कांग्रेस के सामने खाता खोलने की चुनौती है, जिसके
लिए पार्टी ने पूर्वांचली व पंजाबी वोटर को साधने में जुटी है। इसी के मद्देनजर पार्टी ने दिल्ली में पार्टी की कमान
सुभाष चोपड़ा और कीर्ति आजाद को दे रखी है। साल 2020 के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं और
नीतीश कुमार के सामने अपने सत्ता को बचाए रखने की बड़ी चुनौती होगी। बिहार में नीतीश की पार्टी जेडीयू और
भाजपा मिलकर इस बार चुनाव मैदान में उतरेंगे और रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी भी साथ रहेगी।
हालांकि सीट शेयरिंग को लेकर अभी से घमासान मचा हुई है। वहीं, जेडीयू-भाजपा गठबंधन से सत्ता छीनने के लिए
आरजेडी तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगी हुई है। कांग्रेस सहित तमाम छोटे दल आरजेडी के साथ खड़े
नजर आ रहे हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव
लड़ा था, लेकिन 2017 में यह दोस्ती टूट गई थी। नीतीश आरजेडी ने नाता तोड़कर भाजपा से हाथ मिलाकर सत्ता
पर काबिज हो गए थे, लेकिन अब सियासी हालात बदले हुए हैं।
लोकसभा चुनाव में भले ही भाजपा-जेडीयू बिहार में क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही हो लेकिन उपचुनाव में
जेडीयू का ग्राफ गिरा है और आरजेडी का जनाधार बढ़ा है। ऐसे में नीतीश कुमार के सामने पांचवी बार मुख्यमंत्री
बनने के लिए विपक्ष से कड़ा मुकाबला करना होगा। देखना होगा कि वह बिहार में सबसे ज्यादा बार सीएम रहने
का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करा पाते हैं या फिर नहीं। वहीं, तेजस्वी यादव के सामने भी अपनी पार्टी के वजूद को
बचाए रखने की चुनौती है।