अर इंडिया के निजीकरण की तैयारी चल रही है। एक समय विमानन कंपनियों में एअर इंडिया की हैसियत महाराजा की थी। अब सरकार मान रही है कि एअर इंडिया के कायाकल्प का एकमात्र विकल्प निजीकरण है। लेकिन क्या यह संकल्पना सही है। पूर्व में घाटे में चलने के कारण अनेक निजी कंपनियों का विलय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में किया जा चुका है। एअर इंडिया और इंडियन एअरलाइंस के विलय के वक्त यह 100 करोड़ रुपये के लाभ में था, लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण यह घाटे में आ गई। अनियमितता, गलत प्रबंधन और अंदरूनी गड़बड़ियों के कारण एअर इंडिया की तबियत नासाज हुई। अदालत में दायर एक जनिहत याचिका के मुताबिक पूर्व नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल 2004-08 के दौरान विदेशी विनिर्माताओं को फायदा पहुंचाने के लिए 67000 करोड़ रुपये में 111 विमान खरीदे गए, करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करके विमानों को पट्टे पर लिया गया एवं निजी विमानन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए फायदे वाले हवाई मागरे पर एअर इंडिया के उड़ानों को जानबूझकर बंद किया गया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी अपनी रिपोर्ट में इन अनियमितताओं की पुष्टि की है।लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र की इस विमानन कंपनी को फायदे में लाया जा सकता है। वर्तमान में करीब 550-600 यात्री दिल्ली से सिडनी और मेलबर्न प्रति दिन यात्रा करते हैं। इस मार्ग पर भारत से कोई सीधी उड़ान नहीं है। इसलिए गंतव्य स्थान तक पहुंचने में यात्रियों को 25 से 35 घंटे लगता है। चीन व दक्षिण अफ्रीका के साथ द्विपक्षीय व्यापार विगत वर्षो में बढ़ा है। दोनों देशों के बीच यात्रियों की आवाजाही बढ़ी है। इन देशों के लिए एअर इंडिया उड़ान सेवा शुरू कर सकता है। यूरोपीय देशों में एअर इंडिया की उपस्थिति नगण्य है। इसका दायरा फिलवक्त फ्रैंकफर्ट, पेरिस और लंदन तक सीमित है। निजी विमानन कंपनियों को लाभ पहुंचाने वाली नीतियों व एअर इंडिया में व्याप्त कुप्रबंधन के कारण घरेलू मैदान में इंडिगो, स्पाइसजेट और जेट एयरवेज की जेटलाइट ने कमाई में एअर इंडिया से बढ़त हासिल कर ली है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घरेलू विमानन कंपनी जेट एयरवेज, एअर इंडिया को कड़ी टक्कर दे रहा है। विदेशी विमानन कंपनियों में लुफ्तहंसा समूह, ब्रिटिश एयरवेज, केएलएम इत्यादि से भी एअर इंडिया को कड़ी चुनौती मिल रही है। ‘‘स्टार एलायंस’ के साथ साझेदारी नहीं होने से भी एअर इंडिया को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इस कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी उपस्थिति का दायरा सीमित हो गया है।विमानन कंपनियों की आय का जरिया यात्री किराया है, और व्यय के मद हैं-ईधन, रख-रखाव और मानव संसाधन। यात्रियों को लुभाने के लिए विज्ञापन का सहारा लिया जा सकता है। यात्री किराया में कमी करना भी एक अच्छा विकल्प है। त्योहारों में या रूटों के हिसाब से या पीक सीजन के अनुसार एअर इंडिया अपने बेसिक किराये में कमी करके या सौगात देने वाली योजनाओं के माध्यम से यात्रियों को लुभा सकती है। कम किराया की भरपाई विमानों के अधिक फेरे लगा कर किया जा सकता है। प्रतिबद्ध तथा गुणवत्तापूर्ण सेवा द्वारा भी इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। मानव संसाधन के स्तर पर असंतुलन होने के कारण पायलट आए दिन हड़ताल करते हैं। उनके रोष का प्रमुख कारण है-इंडियन एअरलाइंस और एअर इंडिया के बीच हुए विलय के उपरांत उनके वेतन, भत्ते एवं प्रोन्नति से जुड़ी समस्याओं का समाधान नहीं किया जाना। द्विपक्षीय वार्ता एवं खुले दृष्टिकोण से इस समस्या से निजात पाया जा सकता है। हालांकि एअर इंडिया के पुनरुद्धार की संभावना न्यून बताई जा रही है, लेकिन कुशल नेतृत्व और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन से यह पूर्व में लाभ आया भी है। अगर सरकार चाहे तो यह फिर से मुनाफे में आ सकता है। भारतीय रेल एवं यूको बैंक में भी ऐसा करिश्मा हो चुका है। सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक कंपनियां फायदे में चल रही हैं। बैंक, बीमा और तेल क्षेत्र की सरकारी कंपनियां भी मुनाफे में हैं। लाभ कमाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की एक लंबी फेहरिस्त है। सरकार की मंशा बल्कि कहें कि दृढ़ इच्छाशक्ति से मुनाफे का रह चमत्कार एअर इंडिया के मामले में भी किया जा सकता है। दरअसल, एअर इंडिया की बदहाली के लिए मुख्यत: नेता और नौकरशाह जिम्मेदार हैं। यह प्रतीत हो रहा है कि सरकार को पुनर्वास में नहीं विनिवेश में दिलचस्पी है।