भारत के केंद्रीय नेतृत्व की सूझबूझ से भारत अमेरिका के चंगुल में जाने से बाल−बाल बच गया। देश की यही कोशिश रहनी जाहिए कि उसके तटस्थ स्वरूप को आंच न आए। भारत की जरा-सी चूक उसके मित्र देशों को नुकसान पहुंचा सकती है। उसकी जरा-सी चूक उसके अपने विश्वसनीय साथी खो सकती है। अमेरिका काफी समय से भारत को अपने खेमे में लेने के लिए बेताब है। इसीलिए वह उसकी प्रशंसा कर रहा है, बहला रहा है। फुसला रहा है। अब वह भारत को नाटो प्लस में शामिल करना चाहता है।उ अमेरिका ने भारत को हथियार और टेक्नोलॉजी ट्रासंफर करने में तेजी को उद्देश्य बताकर ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने की कवायद शुरू की थी। भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने हाल ही में साफ किया था कि ‘नाटो प्लस’ के दर्जे के प्रति भारत ज्यादा उत्सुक नहीं है। इसके बाद अमेरिका के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में संशोधित प्रस्ताव रखा गया, इसमें भारत को नाटो प्लस का दर्जा देने का कोई उल्लेख नहीं किया गया। पिछले हफ्ते पेश पूरक प्रस्ताव में भी नाटो प्लस शब्द हटाया गया था।दरअसल भारत के रुख से अमेरिका परेशान है। उसकी लंबे समय से कोशिश भारत को अपने खेमे में लेने की रही है। अमेरिका जानता है कि भारत एक मजबूत राष्ट्र है। चीन की आक्रामकता का भारत ने जिस मजबूती से जवाब दिया है, उसको देखते हुए अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया भारत की कायल हो गई है। लगभग तीन साल पहले चीन ने अरुणाचल प्रदेश में खुराफात करने की कोशिश की। भारत ने उसके रवैये को देखते हुए चीन सीमा पर अपनी फौज की दीवार खड़ी कर दी। इसके अलावा, भारत आज किसी भी सैन्य चुनौती से निपटने में सक्षम है। वह एक से एक आधुनिक शस्त्र मिसाइल, टैंक, राडार और लड़ाकू विमान बना रहा है। युद्ध की स्थिति के लिए अपने नेशनल हाई−वे पर एयर स्ट्रिप तैयार कर रहा है।भारत की तरह अमेरिका भी चीन की आक्रामकता से परेशान है। वह उसके मुकाबले के लिए विकल्प खोज रहा है। ऐसे देश खोज रहा है जो मजबूत हों और चीन से उसका विवाद हो। ऐसे में उसके पैमाने पर भारत खरा उतरता है। चीन ताइवान को अपने चंगुल में लेने को आतुर है। वह कभी भी उस पर हमला कर सकता है। अमेरिका और ताइवान का सुरक्षा गठबंधन है। ताइवान पर हमला होने पर अमेरिका को युद्ध में शामिल होना होगा। ऐसे में वह चीन के मजबूत दुश्मन खोज रहा है। अमेरिका चाहता है कि चीन−ताइवान विवाद में भारत अप्रत्यक्ष रूप से उनका साथ दे। पेंटागन के पूर्व अधिकारी एलब्रिज कोल्बी ने निक्केई एशिया में पिछले दिनों कहा भी है कि अगर चीन और ताइवान के बीच युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हुई तो भारत, ताइवान की सीधी तौर पर मदद नहीं करेगा लेकिन यह माना जा सकता है कि भारत भी चीन के विरुद्ध लद्दाख मोर्चे को फिर से खोल सकता है। चीन से चल रहे भारी तनाव के बीच अमेरिका ने भारत की काफी तारीफ की है। अमेरिकी नौसेना के ऑपरेशनल हेड एडमिरल माइक गिल्डे ने कहा है कि भारत भविष्य में चीन का मुकाबला करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन से तनाव के दौरान भारत, अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार साबित होगा। माइक गिल्डे ने वाशिंगटन में हेरिटेज फाउंडेशन के इन-पर्सन सेमिनार में ये बात कही। माइक ने कहा कि किसी भी देश से ज्यादा समय अगर उन्होंने कहीं बिताया है तो वो भारत है। ऐसा इसलिए क्योंकि आने वाले समय में भारत, अमेरिका के लिए एक रणनीतिक भागीदार साबित होगा।
वर्तमान हालात में अमेरिका भारत को अपने खेमे में लाने को आतुर है। दूसरे वह हथियार का बड़ा व्यापारी है। दुनिया को वह अपने हथियार बेच रहा है। भारत को भी वह हथियार बेचना चाहता है, जबकि भारत का मजबूत मित्र रूस है। रूस प्रत्येक संकट में भारत के साथ खड़ा रहा है। 1965 में अमेरिका द्वारा भारत को शस्त्र देने से मना करने पर भारत ने रूस की ओर हाथ बढ़ाया। रूस भारत की जरूरत के आधुनिक शस्त्र और तकनीक भारत का लंबे समय से दे रहा है। जरूरत पड़ने पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के विरुद्ध आए प्रस्ताव को वह वीटो भी करता रहा है।
रूस के प्रभाव को कम करने के लिए 1849 में नाटो की स्थापना हुई। प्रारंभ में इसमें अमेरिका समेत 12 देश थे। आज इस संगठन के 30 सदस्य हैं। नाटो एक सैन्य गठबंधन है। इस गठबंधन के किसी देश पर हमला होने की हालत में सभी सहयोगी देश हमले का मिलकर जवाब देते हैं। इस संगठन में पांच और देश शामिल किए गए है। ये नाटो प्लस में आते हैं। ताइवान में चीन की दबंगई पर लगाम कसने और उसकी घेराबंदी के लिए अमेरिकी कांग्रेस की सेलेक्ट कमेटी ने भारत को ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने की सिफारिश की थी। उसका बहाना था कि भारत के नाटो प्लस में शामिल होने पर अमेरिका भारत को अपनी आधुनिक तकनीक और शस्त्र सुगमता से दे सकेगा। जबकि वह आज भी भारत को मुंह मांगी तकनीक और शस्त्र देने को आतुर है। भारत अगर नाटो प्लस में शामिल होता है तो भारत को रूस से संबंध खत्म करने होंगे। आज रूस−यूक्रेन युद्ध में भारत तटस्थ है। नाटो में शामिल होकर भारत को रूस के विरुद्ध खड़ा होना होगा।
दूसरे, रूस भारत का पुराना सहयोगी और संकट में आजमाया सच्चा मित्र है। अमेरिका व्यवसायी है। उसका कभी भरोसा नहीं किया जा सकता। वैसे भी अमेरिका समय−समय पर धोखा देता रहा है। धमकाता रहा है। भारत ने रूस से एस-400 मिजाइल डिफेंस सिस्टम लिया। अमेरिका ने 2018 में इस सौदे के होने की बात चलते ही विरोध करना शुरू कर दिया था। भारत पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी देनी शुरू कर दी थी। वह नहीं चाहता था कि भारत रूस से खरीदारी करे। वह अपना सिस्टम बेचना चाहता था। भारत ने उसकी चेतावनी और धमकी को नजरअदांज कर यह सिस्टम खरीद लिया। इसके बाद उसके सुर बदल गए। वह कहने लगा कि भारत के लिए यह जरूरी था। चीन से उसके विवाद को देखते हुए भारत के लिए इसकी खरीद आवश्यक थी। रूस−यूक्रेन युद्ध के समय भारत को लगा कि उसे पेट्रोलियम पदार्थ का संकट होगा। गल्फ देश पहले से ही कुछ नक्शेबाजी दिखा रहे थे। गल्फ देशों ने पहले ही अपने तेल के रेट भी बढ़ा दिया था। ऐसे में भारत के पुराने और सच्चे मित्र रूस ने सस्ता तेल देने की पेशकश की। भारत ने उसे स्वीकार कर लिया। भारत ने रूस से तेल की खरीद बढ़ा दी। अमेरिका समेत नाटो देशों ने इसका विरोध किया। अमेरिका और उसके गठबंधन के देशों ने पहले ही रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखा था। भारत ने इस चेतावनी और प्रतिबंध को भी नजरअंदाज कर उन्हें आईना दिखा दिया। सच्चाई बता दी कि आप में से कई देश रूस से तेल और गैस ले रहे हैं। भारत के धमकी में न आते देख वे चुप हो गए। अमेरिका को स्वीकारना पड़ा कि रूस भारत का पुराना मित्र है। शस्त्र आपूर्ति पर भारत की रूस पर बडी निर्भरता है, ऐसे में उस पर प्रतिबंध लगना ठीक नहीं। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में भारत के पक्ष में एक बड़ा फैसला लेते हुए नेशनल डिफेंस अथॉराइजेशन एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी।
दरअसल अमेरिका भारत को शुरू में धमकी में लेना चाहता था। भारत के धमकी में न आने पर उसने अब भारत को फुसलाना शुरू कर दिया है। उसका रवैया कभी विश्वसनीय नहीं रहा। इसीलिए भारत को चीन की तरह अमेरिका से भी सचेत रहना होगा। रूस भारत का पुराना और संकट के समय का मित्र है। वह जरूरत की सभी सामग्री और तकनीकि भारत को देने को सदा तैयार रहता है। अमेरिकी ने हाल में भारत को जेट इंजन निर्माण तकनीक हस्तांतरित करने का रक्षा सौदे किया ही है। वहीं अब फ्रांस भी भारत के साथ लड़ाकू जेट इंजन बनाने को तैयार हो गया है। ऐसे में भारत को एक देश पर निर्भर न होकर जहां से उन्नत और बढ़िया उपकरण सस्ती तकनीक सहित मिले, वहां से लेना चाहिए। समझौते में यह भी होना चाहिए कि कंपनी भारत को उत्पाद की तकनीकि ही नहीं देगी बल्कि उत्पाद भी भारत में बनाएगी।