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विकास गुप्ता
मां की एक दुआ जिंदगी बना देगी, खुद रोएगी मगर तुम्हे हंसा देगी,
कभी भूलकर भी ना मां को रुलाना,एक छोटी सी गलती पूरा अर्श हिला देगी।
शारदीय नवरात्रि पर्व इस बार 17 अक्टूबर से प्रारंभ हो रहा है जोकि 25 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। इस बार के
शारदीय नवरात्रि अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस बार पूरे 58 वर्षों के बाद शनि, मकर में और गुरु, धनु राशि में
रहेंगे। इससे पहले यह योग वर्ष 1962 में बना था। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’।
नवरात्रि में नौ दिनों में मां देवी दुर्गा के अलग-अलग नौ रुपों की पूजा की जाती है जो निम्न हैं- शैलपुत्री,
ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री। नवरात्रों का हिंदू धर्म
में बहुत बड़ा महत्व है। नवरात्रों में हर कोई भक्त चाहता है कि मां भगवती की कृपा उन पर बनी रहे और उनके
जीवन के दुख-दर्द का हरण हो, जिसके लिए हर भक्त मां देवी दुर्गा को प्रसन्न करने में लगा रहता हैं।
दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द मां है। मां बच्चे की प्रथम गुरु होती है। ममता, त्याग व वात्सल्य की मूर्ति होती
है मां। कहते है माँ बाप के क़दमों में स्वर्ग जन्नत होती है। माँ हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
रामायण में श्रीराम अपने श्रीमुख से कहते हैं ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी’ अर्थात जननी और जन्मभूमि
स्वर्ग से भी बढ़कर है। भारत में एक तरफ लाखों बूढी माँ वृद्धाश्रमों में जिंदगी के आखिरी दिन काटने को मजबूर
है तो दूसरी तरफ कई कपूत बेटे अपने घरों में नवरात्रों के पूजा पाठ करके दुर्गा माँ को प्रसन्न करके उनसे सुख-
समृद्धि व ऐश्वर्य का आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश कर रहे है। बहुत ही शर्मनाक है कि बूढ़े मां-बाप को
वृद्धाश्रम में छोड़, आज ढोंगी बेटे अपने घरों में नवरात्रों के पूजा पाठ कर रहे हैं।
आज एक तरफ हजारों बेटे नवरात्रों में मां देवी दुर्गा का आशीर्वाद लेकर अपने करियर में बड़ी उपलब्धि हासिल
करना चाहते हैं लेकिन दूसरी तरफ बहुत से बेटो को अपने बूढ़े माता-पिता के खांसने की आवाज भी नागवार
गुजरने लगती है। समाज की यह कैसी विडंबना है, जिन बच्चों के लिए मां-बाप पूरा जीवन खपा देते हैं, उम्र के
आखिरी पड़ाव पर वह बच्चे उनकी परवरिश से हाथ खींच लेते हैं। रोज ऐसे-ऐसे मामले सामने आ रहे है कि आर्थिक
रूप से सक्षम अपने बेटों और बहुओं के होते हुए भी बूढ़े मां-बाप वृद्धाश्रमों में रहकर दिन गुजार रहें हैं।
भारत में वृद्धाश्रमों में न जाने ऐसे कितने बुजुर्ग मां-बाप रह रहे हैं, जिन्होंने अपने बच्चों को दिन रात मेहनत कर
पढ़ा लिखाकर सफल इंसान बनाया, परन्तु जब बच्चों की बारी आई तो उन्हें अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोडे
लिया। आज की युवा पीढ़ी भूलती जा रही है कि भारत में भगवान श्रीराम अपने पिता अयोध्या के राजा दशरथ के
वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए थे और त्रेता युग में श्रवण
कुमार अपने अंधे माता पिता को कांवर में बैठा कर तीर्थ यात्रा के लिए ले जाता है।
‘महाभारत’ के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने ‘माँ’ की महिमा के बारे में लिखा है कि
नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गति:।
नास्ति मातृसमं त्राणं। नास्ति मातृसमा प्रिया।।
अर्थात् माता के तुल्य कोई छाया नहीं है, माता के तुल्य कोई सहारा नहीं है। माता के सदृश कोई रक्षक नहीं तथा
माता के समान कोई प्रिय नहीं है।
भारत के मिसाइलमैन के नाम से मशहूर देश के पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न से सम्मानित वैज्ञानिक डॉ. एपीजे
अब्दुल कलाम ने अपनी सफलता का श्रेय अपनी माँ को देते हुए कहा था कि ‘मैं अपने बचपन के दिन नही भूल
सकता, मेरे बचपन को निखारने में मेरी माँ का विशेष योगदान था’। जीवन में मां के योगदान को कोई भूल नहीं
सकता’।
मनुस्मृति में माँ बाप की सेवा के लिए मनु लिखते हैं कि
यं मातापितरौ क्लेशं सहेते संभवे नृणाम्।
न तस्य निष्कृतिः शक्या कर्तुं वर्षशतैरपि॥
अर्थात संतान की उत्पत्ति में माता-पिता को जो कष्ट-पीड़ा सहन करना पड़ता है उस कष्ट-पीड़ा से संतान सौ वर्षों में
भी अपने माँ बाप की सेवा करके मुक्ति नही पा सकते।।
साल 2018 में दिल्ली के एक गैर सरकारी संगठन ‘एज्वेल फाउंडेशन’ ने देश के 20 राज्यों के 10 हजार बुजुर्गों
पर एक सर्वेक्षण किया था। सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक- 23-44 फीसद यानी देश का का हर चौथा बुजुर्ग देश
में अकेला रहने को मजबूर है। ‘हेल्प एज इंडिया’ की रिपोर्ट आने वाले दौर के समाज की भयावह तस्वीर पेश करती
है कि 35 फीसद लोगों को बुजुर्गों की सेवा करने में अब खुशी महसूस नहीं होती। ‘हेल्प एज इंडिया’ की रिपोर्ट ये
भी कहती है कि 29 फीसद लोग अपने बुजुर्गों को घर में रखने के बजाय वृद्धाश्रम में रखना पसंद करेंगे।
भारत में नैतिक मूल्यों का इस हद तक पतन हो चुका है कि बेटे अपने आलीशान मकान में किरायेदार रख सकता
हैं, कुत्ते या बिल्ली रख सकता है, लेकिन अपने बूढ़े मां-बाप के लिए जगह नहीं है। जीवन के अंतिम मुकाम पर
पहुंचकर मां-बाप खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं क्योंकि बच्चों आज के दौर में बूढ़े मां-बाप को बोझ समझने
लगे हैं।
मेरा (युद्धवीर सिंह लांबा, धारौली, झज्जर) मानना है कि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ, अनुपम व महान कृति 'मां' ही है।
आज जिस तरह से युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति व नैतिक मूल्यों को भूलकर अपने माँ बाप को वृद्धाश्रमों में छोड़ रहे
रही है वह बेहद गंभीर चिंता का विषय है। आज युवा पीढ़ी में नैतिक मूल्यों के स्तर में बेहद गिरावट आई है,
अत्यंत संपन्न व समृद्ध परिवार के लोग भी बुजुर्ग मां-बाप के साथ रहना पसंद नहीं करते और उन्हें भगवान
भरोसे वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं, यह बिल्कुल गलत है ऐसा नहीं होना चाहिए। किसी कवि ने माँ-बाप की महिमा पर
एक मशहूर शेर लिखा है कि
किसी ने रोजा रखा, किसी ने उपवास रखा,
कबूल उसका हुआ जिसने माँ-बाप को अपने पास रखा।