नफरत की चपेट में नौजवान

asiakhabar.com | January 15, 2022 | 2:10 pm IST
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-सत्यम पांडेय-
पिछले हफ्ते आभासी मीडिया पर हुए कारनामे ने सभी का ध्यान खींचा था। इसमें कुछ लोगों ने महिलाओं,
खासकर मुस्लिम महिलाओं की फोटो डालकर उनकी बोली लगाई थी। इसे लेकर देशभर की पुलिस और न्याय
व्यवस्था सक्रिय है, लेकिन सवाल है कि इस तरह की गलीज हरकत करने वाले युवा प्रोफेशनल्स के दिमाग में
कौन यह जहर भरता है? किसके उकसावे पर ये अच्छे-खासे पढ़े-लिखे युवा घटिया हरकतें करने लगते हैं। इस
आलेख में इस विषय की पड़ताल करेंगे। ‘सुल्ली डील्स’ एप बनने के छह महीने बाद दिल्ली पुलिस ने 9 जनवरी को
मध्यप्रदेश के इंदौर से एक 26 वर्षीय युवक ओंकारेश्वर ठाकुर को गिरफ्तार किया है। दिल्ली पुलिस के अनुसार
ओंकारेश्वर ठाकुर ने ही ‘सुल्ली डील्स’ एप बनाया था और वो इसके पीछे का मास्टरमाइंड है। इसके पहले ‘बुल्ली
बाई’ एप के सिलसिले में उत्तराखंड से एक युवती श्वेता सिंह और बंगलौर से विशाल कुमार झा तथा सीहोर में पढ़
रहे नीरज विश्नोई को असम के जोरहाट से गिरफ्तार किया गया है। इस साल के पहले ही दिन मुंबई पुलिस ने
‘गिटहब’ पर होस्ट किए गए एक एप ‘बुल्ली बाई’ के डेवलपर्स के खिलाफ मामला दर्ज किया है जिसने लगभग
100 मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें उनकी अनुमति के बिना हासिल कर उनका दुरुपयोग किया और उन्हें इस एप
के अन्य उपयोगकर्ताओं के लिए नकली नीलामी करने में इस्तेमाल किया। एप को बढ़ावा देने वाले ट्विटर हैंडल के
खिलाफ भी एक एफआईआर दर्ज की गई है। गिटहब एक ऐसा ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म है जो यूजर्स को एप्स क्रिएट
करने और उन्हें शेयर करने की सुविधा देता है। एक सोशल मीडिया यूजर के अनुसार इस एप को खोलते ही सामने
एक मुस्लिम महिला का चेहरा आता है जिसे बुल्ली बाई का नाम दिया गया है। ट्विटर पर प्रभावी उपस्थिति रखने
वाली तथा सार्वजनिक जीवन में सम्मानित मुस्लिम महिलाओं का नाम इसमें इस्तेमाल किया गया है।
सिर्फ इतना ही नहीं, मिलते-जुलते नाम वाले एक ट्विटर हैंडल से इसे प्रमोट भी किया जा रहा है। इस ट्विटर हैंडल
पर खाली सपोर्टर की फोटो लगी है और लिखा है कि इस एप के जरिए मुस्लिम महिलाओं को बुक किया जा
सकता है। महिलाओं की फोटो के साथ प्राइस टैग भी लिखा हुआ है। सुल्ली और बुल्ली दोनों ही अपमानजनक
अपशब्द हैं, जिनका इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के लिए किया जा रहा है। पिछले साल इससे मिलते-
जुलते नाम वाला सुल्ली डील्स एप भी विवादों में था जिसे गिटहब पर ही बनाया गया था। इस एप पर भी मुस्लिम
महिलाओं की फोटो उनके सोशल मीडिया अकाउंट से उठाकर अपलोड कर दी गई थीं। बाद में विवाद के चलते इस
एप को हटा दिया गया था। बुल्ली बाई जैसी घटनाओं में साइबर अपराधी इंटरनेट से लोकप्रिय महिलाओं,
प्रभावशाली लोगों, पत्रकारों आदि की तस्वीरें लेते हैं और उनका उपयोग अपने वित्तीय लाभ के लिए करते हैं। सोशल
मीडिया के जानकारों के अनुसार ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब साइबर जगत में महिलाओं के खिलाफ इस तरह
कोई अपराध किया गया हो। इसके पहले भी मई 2021 में, ‘लिबरल डोगे’ नाम के एक यू-ट्यूब अकाउंट के जरिए
भारत और पाकिस्तान की मुस्लिम महिलाओं की नकली नीलामी की गई थी। उपरोक्त उदाहरणों में ज्यादातर
मुस्लिम पृष्ठभूमि की मुखर महिलाओं को सूचीबद्ध किया गया है और उनकी तस्वीरों में हेरफेर किया गया है।
इनमें इस्मत आरा-एक खोजी पत्रकार, सईमा-एक रेडियो जॉकी, शबाना आज़मी एवं स्वरा भास्कर-अभिनेत्रियां,
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई और फातिमा नफ़ीस-जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के उस छात्र
नजीब अहमद की 65 वर्षीय मां, जो 2016 से गायब हो गया था, समेत कई किशोर वय की लड़कियां भी शामिल

हैं। पुलिस के अनुसार भोपाल के नजदीक सीहोर में पढाई कर रहा 21 वर्षीय नीरज बिश्नोई बुल्ली बाई मामले में
मुख्य साजिशकर्ता है और उसे असम के जोरहाट से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने कहा कि नीरज गिटहब पर
बुल्ली बाई एप का निर्माता होने के साथ-साथ बुल्ली बाई का मुख्य ट्विटर अकाउंट धारक भी है। उसे दिल्ली पुलिस
की इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस यूनिट ने गिरफ्तार किया था। उसे आगे की जांच के लिए जोरहाट से
दिल्ली ले जाया गया। उसके कॉलेज के प्रबंधन का कहना है कि बिश्नोई यहां द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा है
और काफी होशियार छात्र है। हालांकि कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के चलते वह अब तक ऑनलाइन
कक्षाएं ही लेता रहा है। इससे पहले बुल्ली बाई एप मामले में दो छात्रों को हिरासत में लिया गया था जिनमें एक
मुंबई का और एक बेंगलुरु का रहने वाला 21 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्र विशाल कुमार झा है। इसके अतिरिक्त इस
मामले में मुंबई पुलिस ने उत्तराखंड की 18 वर्षीय इंजीनियरिंग की छात्रा श्वेता सिंह को उधमसिंह नगर जिले से
गिरफ्तार किया था। ये सभी होनहार विद्यार्थी हैं और आमतौर पर इनके शैक्षणिक संस्थान इनकी शैक्षणिक प्रगति
से संतुष्ट हैं। श्वेता सिंह के माता-पिता का हाल के वर्षों में निधन हुआ है। सवाल उठता है कि इन नौजवानों को
अपराधी समझा जाना चाहिए अथवा अपराध का शिकार? क्या ये अचानक से मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ हो गए
हैं अथवा कोई और कारण है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है? दो-तीन प्रमुख बातें हैं जिन पर यहां फोकस किया
जा सकता है। पहली बात तो यह है कि कोविड के बाद से ऑनलाइन शिक्षा के चलते न केवल युवाओं, बल्कि
बच्चों का भी अधिकतर समय मोबाइल और लैपटॉप पर ही गुजरता है।
ऐसे में असामान्य, अश्लील और मुनाफा कमाने वाली वेबसाइटों पर उनकी नियमित आवाजाही हो रही है।
असामान्य में सांप्रदायिक, जातिवादी और महिला विरोधी सामग्री का खासतौर पर उल्लेख किया जा सकता है। जब
हमारे युवा इन सबका शिकार हो रहे हैं तब वयस्क क्या कर रहे हैं? आप गौर कीजिए कि विगत कुछ सालों में
हमारे परिवारों में मुसलमानों और दलितों के प्रति किस भाषा में बात की जा रही है? टीवी की बहसों में किस तरह
से सांप्रदायिक और जातिवादी उन्माद पैदा किया जा रहा है? सिर्फ पुरुषों की बातचीत में महिलाओं और दलितों के
बारे में उनका नजरिया सुनिए। हिंदू एकता और गौरव गान करने वाले सवर्णों की निजी बातचीत में उस नफरत का
स्त्रोत पता चलता है जो हमारे नौजवानों के दिमागों को दूषित कर रही है। हमारे देश की राजनीति पहले से ही इस
जहर का शिकार हो गई है। यह पूरा मामला इसलिए हमारी चिंताओं में इजाफा करता है कि अब तक गिरफ्तार
किए गए सभी आरोपी 25 साल से कम आयु के नौजवान हैं और उच्च तकनीकी पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत हैं। यह
घटना बताती है कि हमारे नौजवान किस हद तक समाज में बढ़ती हुई सांप्रदायिक नफरत के शिकार हो रहे हैं। न
केवल मुसलमानों के खिलाफ, बल्कि आमतौर पर महिलाओं के बारे में इस तरह की बढ़ती मानसिकता राजनीतिक
दलों के लिए भले समर्पित मतदाता तैयार करने में मदद कर दे, लेकिन आखिरकार इससे लैंगिक अपराधियों की
नस्ल तैयार हो रही है। इस मायने में इन नौजवानों को अपराधी की बजाय शिकार की तरह देखा जाना चाहिए और
असली अपराधियों तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए।


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