-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-
धार्मिक संस्थानों में कितना दुराचार होता है, इसकी ताजा खबर अभी पेरिस से आई है। फ्रांस के रोमन केथोलिक
चर्च के एक आयोग ने गहरी छानबीन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि पिछले 70 साल में उसके 3000 पादरियों
और कर्मचारियों ने बच्चों के साथ व्यभिचार किया है।
इस छानबीन में आयोग ने लगभग ढाई वर्ष लगाए, हजारों दस्तावेज़ खोजे और सैकड़ों लोगों की गवाहियाँ लीं।
उसने पाया कि फ्रांस में 1950 से अबतक लगभग एक लाख 15 हजार पादरी और चर्च के अधिकारी रहे। उनमें से
पता नहीं, कितनों ने क्या-क्या किया होगा लेकिन जब भी केथोलिक स्कूलों में जानेवाले या आश्रम और अनाथालय
में रहनेवाले बच्चों के माता-पिता ने शिकायत की तो उसकी जाँच हुई लेकिन असली सवाल यह है कि कौन से
किस्से ज्यादा होते हैं ? वे ज्यादा होते हैं, जिनकी शिकायत नहीं होती। किसी धर्मध्वजी याने पादरी, पुरोहित और
इमाम के खिलाफ शिकायत करना अपने आप में गुनाह बन जाता है।
ऐसा नहीं है कि दुराचार के ये अनैतिक धंधे सिर्फ यूरोप के चर्चों में ही होते हैं, भारत के चर्चों में भी इस तरह की
शर्मनाक घटनाओं की खबरें अक्सर आती रहती हैं। अभी केरल के एक पादरी के कुकर्म का मामला भी गरमाया
हुआ है। ऐसा नहीं है कि यह गंदगी ईसाई संगठनों में ही फैली हुई है। हिंदू मंदिरों के कई पुजारी और तथाकथित
साधु-संत आज भी जेल की हवा खा रहे हैं। इस्लाम में स्त्री-पुरुष संबंधों की कड़ी मर्यादा के बावजूद अनेक अप्रिय
किस्से भी सुनने में आते हैं।
कहने का अर्थ यह कि दुराचारियों और व्यभिचारियों के लिए मजहब की झीनी चदरिया बहुत बड़ा सुरक्षा कवच बन
जाता है। इसीलिए यूरोप के इतिहास का एक हजार साल का काल अंधकार-युग कहलाता है। प्रसिद्ध अमरीकी
विद्वान कर्नल इंगरसोल ने पादरियों के विरुद्ध सौ वर्ष पहले जबर्दस्त अभियान चलाया था। उनका मानना था कि
केथोलिक आश्रमों में व्यभिचार और बलात्कार की घटनाएं इसीलिए प्रायः होती रहती हैं कि पादरियों और साध्वियों
का अविवाहित रहना अनिवार्य होता है। ये लोग अवसर मिलते ही यौनाचार में प्रवृत्त हो जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि सभी धर्मध्वजी यही करते हैं। मैं स्वयं रोम के वेटिकन में पादरियों के साथ और ईरान में मशद
और कुम के आयतुल्लाहों के साथ भी रहा हूँ और उनके श्रेष्ठ आचरण का साक्षी रहा हूं। फ्रांस के चर्च और पोप
फ्रांसिस को दाद देनी होगी कि वे पादरियों की आचरण-शुद्धि के मामले में कठोर रुख अपना रहे हैं। पिछले दिनों
अमेरिका के एक बिशप ने भी यह बीड़ा उठाया था। इस मामले में मेरी राय यह है कि सभी धर्मों और व्यक्तियों के
लिए भारत की आश्रम व्यवस्था श्रेष्ठ, सरल और व्यावहारिक है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम
में प्रत्येक व्यक्ति यदि 25-25 साल रहे तो सभी के लिए सदाचारी रहना अधिक संभव है।