अर्पित गुप्ता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता है कि मोदी है तो मुमकिन है। इस बात को प्रधानमंत्री मोदी
अपने क्रिया कलापों से अक्सर चरितार्थ भी करते रहते है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार
फिर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देकर देश की जनता का दिल जीत लिया है। गत चार नवम्बर
को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थाईलैंड के बैंकाक शहर में आयोजित आसियान देशों के क्षेत्रीय व्यापक
आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) व्यापार समझौते में शामिल नहीं होने की घोषणा करके एक बार फिर
अपनी मजबूत मनोबल का परिचय दिया है।
16 देशों के क्षेत्रीय समग्र आर्थिक सहयोग की आड़ में व्यापार समझौते से निकल कर प्रधानमंत्री मोदी ने
देश के घरेलू छोटे कारोबारियों को बहुत बड़ी राहत दी है। आरसीईपी में शामिल देश 2012 से भारत को
इस समझौते में शामिल करने के लिए प्रयासरत थे। बैंकाक में आयोजित आरसीईपी सम्मेलन के देशों को
विशेषकर चीन को आशा थी कि भारत इस समझौते में शामिल हो जाएगा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने सबकी अपेक्षा के उलट भारत के हित में फैसला लेते हुए समझौते में शामिल होने से इनकार कर
दिया। इससे सबसे बड़ा झटका चीन को लगा है। भारत के क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी से अलग हो
जाने के बाद चीन का कहना है कि वह भारत की तरफ से उठाये गये मुद्दो व आपत्तियों के निराकरण
का प्रयास करेगा।
इस समझौते में शामिल नहीं होने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि इसमें भारतीय बाजार और
भारतीय किसानों के हितों की रक्षा करने के समुचित उपाय नहीं किए गए हैं। इस समझौते के होने से
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता और प्रधानमंत्री मोदी का मेक इन इंडिया का
नारा भी कमजोर होता। समझौता होने के अंतिम समय में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बुद्धि चातुर्य का
परिचय देते हुए इस समझौते से भारत को अलग कर भारत के हित में एक बहुत बड़ा दांव खेला है।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में भारत के शामिल नहीं होने के जवाब में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आरसीईपी समझौता मौजूद स्वरूप में उसकी मूल भावना और उसके
सिद्धांतों को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करता है। इस समझौते में भारत द्वारा उठाए गए विभिन्न
मुद्दों और चिंताओं का भी संतोषजनक समाधान नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में भारत के लिए
आरसीईपी समझौते में शामिल होना संभव नहीं है। भारत दूसरे देशों के बाजारों में वस्तुओं की पहुंच के
साथ ही घरेलू उद्योगों के हित में सामानों की संरक्षित सूची के मुद्दे को हमेशा उठाता रहा है।
ऐसा माना गया है कि इस समझौते के अमल में आने के बाद चीन के सस्ते कृषि और औद्योगिक
उत्पाद भारतीय बाजारों में छा जाते। सस्ते चीनी सामान को लेकर भारत की चिंता वाजिब है। आरसीईपी
के अन्य सदस्य देश भारत की आशंकाओं को सहानुभूति तरीके से देखने को कतई तैयार नहीं थे। सर्विस
सेक्टर में भारत अग्रणी है। भारत के सर्विस प्रोवाइडर के क्षेत्र में कार्यरत लोगों का अन्य देशों में
आवागमन आसान करना आवश्यक है। भारत का सुझाव था कोई सदस्य देश सस्ता करके अपना माल
हिंदुस्तान में डंप करें तो आयात शुल्क में स्वत: बढ़ोतरी का अधिकार भारत को मिलना चाहिए। मगर
भारत का यह सुझाव भी समझौते में शामिल नहीं किया गया था। इस लिये भारत मजबूती के साथ
समझौते से अलग हट गया।
इस समझौते के लिए भारत सहित 16 सदस्य देशों के बीच 2012 से लगातार विभिन्न सतरों पर
बातचीत चल रही थी। गत 4 नवंबर को थाईलैंड के बैंकाक शहर में इसके सभी 16 सदस्य देशों के
राष्टाध्यक्षों को इस पर सहमति के हस्ताक्षर करने थे। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी के
इंकार कर देने के कारण समझौते पर सदस्य देशों में सहमति नहीं बन पाई और वह अगले वर्ष फरवरी
तक के लिये टल गया। ऐसा माना जा रहा है कि भारत के विशाल बाजार को देखते हुये इस समझौते में
भारत को शामिल करने के नये सिरे से फिर से प्रयास किए जाएंगे। आसियान में एशिया प्रशांत क्षेत्र के
जापान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, भारत चीन, सहित कुल 16 देश शामिल थे मगर भारत
के इस से अलग होने के बाद अब इसमें 15 देश ही रह गये हैं।
इस समझौते को लेकर भारत में कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल सरकार के विरोध में खड़े थे। तथा
विपक्षी दल समझौते के विरोध में एक बड़ा देश व्यापी आंदोलन करने की सोच रहे थे। मगर प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने उनके इरोदों पर पानी फेर दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उनके अनुषंगिक संगठन भी
नहीं चाहते थे कि भारत सरकार इस समझौते पर हस्ताक्षर करें। इस समझौते से विपक्ष को जहां बैठे बैठे
ही सरकार विरोधी एक बड़ा मुद्दा मिल जाता वही प्रधानमंत्री मोदी की भी अपनी किसान, गरीब हितैषी
वाली सरकार की छवि कमजोर पड़ती।
अपनी थाईलैंड यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंकॉक के नेशनल स्टेडियम में भारतीय समुदाय
के लोगों द्वारा आयोजित स्वासदी मोदी कार्यक्रम को संबोधित किया। यह कार्यक्रम भी अमेरिका के
ह्यूस्टन में हुए हाऊडी मोदी की तरह ही भव्य हुआ। थाईलैंड में रह रहे भारतीय समुदाय के हजारो लोगों
ने स्वासदी पीएम मोदी कार्यक्रम में प्रधानंत्री का जोरदार स्वागत किया। पूरा स्टेडियम मोदी-मोदी के नारों
से गूंज उठा। कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने तमिल ग्रंथ तिरुक्कल के थाई भाषा में अनुवाद का
विमोचन किया। थाईलैंड में रह रहे भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि
भारत और थाईलैंड के बीच हजारों साल पुराना सांस्कृतिक रिश्ता है। थाईलैंड में रह रहे भारतीय लोग
भारत के साथ-साथ वहां का भी नाम रौशन कर रहे हैं। भारत भी बौद्धिक धर्मस्थलों को विकसित करने
में काम कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कि सरकार को देश के आम मतदाता किसान और गरीबों की हितैषी मानकर ही
भरपूर वोट देती हैं। ऐसे में यदि यह तबका सरकार से नाराज हो जाता तो सरकार और भारतीय जनता
पार्टी के सामने आने वाले समय में एक बहुत बड़ा संकट खड़ा हो सकता था। इन सब बातों को ध्यान में
रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतिम क्षणों में देश हित में एक बहुत बड़ा फैसला कर देश की जनता
को यह जता दिया है कि वो कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, किसी भी देश के साथ ऐसा कोई
समझौता नहीं करेंगे जिससे देश के गरीबों, किसानों, छोटे व्यापारियों पर कोई आंच आए उनके हितों पर
कुठाराघात होता हो। इस समझौते को नकारने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि भारत में ही नहीं पूरी
दुनिया में एक सफल कूटनीतिज्ञ के साथ ही एक ऐसे दृढ़ निश्चयी नेता के रूप में उभरी है जो देश हित
में कोई भी निर्णय ले सकते हैं।