देश से माफी मांगें

asiakhabar.com | March 23, 2018 | 12:51 pm IST
View Details

रविंद केजरीवाल को अब देश कतई गंभीरता से नहीं लेता। किसी पर कभी भी, कोई भी अनर्गल आरोप लगाने के बाद अब वे धड़ल्ले से माफी भी मांगने लगे हैं। माफी तब मांगते हैं, जब उन्हें लगता है कि उन पर हुए मानहानि के केस में वे कमजोर पड़ कर फंस रहे हैं। उन्हें जेल हो सकती है। वे जेल जाने की हिम्मत कहां रखते हैं? माफी मांग लेना ज्यादा चतुर कम लगता है। पिछले पंजाब विधान सभा चुनाव के दौरान वे अकाली दल नेता बिक्रम सिंह मजीठिया पर नशे के कारोबारियों से संबंध रखने के गंभीर आरोप लगा रहे थे। वे और उनके सखा संजय सिंह प्रेस वार्ताओं से लेकर जन सभाओं में पंजाब की जनता से वादा कर रहे थे अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वो अकाली दल के नेता को कॉलर पकड़ कर घसीटते हुए जेल ले जाएंगे। आप जरा देख लें कि कितने सड़क छाप किस्म की भाषा का इस्तेमाल वे कर रहे थे। तब मजीठिया ने केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के दो अन्य नेताओं संजय सिंह और आशीष खेतान के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करा दिया था, जब केजरीवाल दावा कर रहे थे कि वे पंजाब में नशे के कारोबारियों के खिलाफ आखिरी दम तक लड़ेंगे। मर भी गए तो अफसोस नहीं होगा। पंजाब को नशामुक्त बनाएंगे। यह बात अलग है कि पंजाब के अपने नेताओं को भरोसे में लिए बगैर अरविंद केजरीवाल ने बिक्रमजीत सिंह मजीठिया से लिखित में माफी मांग ली। मजीठिया के बाद उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल उनके पुत्र अमित सिब्बल से भी माफी मांग ली। केजरीवाल ने तो नितिन गडकरी को पत्र लिखकर कहा है कि ‘‘हम दोनों अलग-अलग दलों में हैं। मैंने आपके बारे में बिना जांचे कुछ आरोप लगाए, जिससे आपको दुख हुआ होगा। इसलिए आपने मेरे खिलाफ मानहानि का केस दायर किया। मुझे आपसे निजी तौर पर कोई दिक्कत नहीं है, इसलिए मैं आपसे माफी मांगता हूं।’ इसी तरह की माफी उन्होंने कपिल सिब्बल और उनके पुत्र से भी मांगी है। यह तो अच्छी बात हुई। राह चलते किसी पर कीचड़ फेंक दी और बाद में कह दिया चाहो तो धुलाई का पैसा ले लो। दरअसल, अपने आरोपों से पलटना तो उनकी आदत हो चुकी है। केजरीवाल की जुबान ही बार-बार क्यों फिसलती है? मजीठिया से माफी मांगने से पहले उन्होंने पिछले साल अगस्त में भाजपा नेता अवतार सिंह भड़ाना से मानहानि का मामला खत्म करने के लिए माफी मांगी थी। उन्होंने 2014 में भड़ाना को भ्रष्ट कहा था। दिल्ली के मुख्यमंत्री के खिलाफ वित्त मंत्री और अरु ण जेटली ने अलग से मानहानि का दावा किया है क्योंकि केजरीवाल ने जेटली पर दिल्ली क्रि केट एसोसिएशन के प्रमुख के रूप में उनके 13 साल के कार्यकाल के दौरान घोर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। केजरीवाल दर्जनों मामलों का सामना कर रहे हैं, जिनमें मानहानि, चुनाव प्रचार के दौरान होर्डिंग/पोस्टर लगाना, धारा 144 का उल्लंघन, दिल्ली में प्रदशर्न जैसे मुद्दों को लेकर दायर किए गए हैं। ऐसे ही मामले देश के अन्य हिस्सों जैसे वाराणसी, अमेठी, पंजाब, असम, महाराष्ट्र, गोवा और अन्य जगहों पर भी दायर किए गए हैं। इनमें से ज्यादातर मामलों में व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में मौजूद रहने की आवश्यकता होती है। मतलब उन्हें अब समझ आने लगा है कि जिन पर वे वार करते हैं, वे भी उनकी नींद हराम कर सकते हैं। केजरीवाल ने मजीठिया को लिखे ‘‘माफीनामे’ में कहा है, ‘‘अब मैं जान गया हूं कि सारे आरोप निराधार हैं, इसलिए मैं आपके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप और बयान वापस लेता हूं और उनके लिए माफी भी मांगता हूं।’ केजरीवाल को अब पूरे देश से भी माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उन्होंने किसी शख्स पर मिया आरोप लगाए। लोकतंत्र में वैचारिक और मत-भिन्नता हो सकती है। इसमें कुछ भी गलत भी नहीं है। पर लोकतंत्र किसी को भी ये अनुमति नहीं देता कि कोई अपने राजनीतिक विरोधी पर बेबुनियाद आरोप लगाए। आपकी भाषा शालीन तो रहनी ही चाहिए। भाषा में किसी तरह की अनुशासनहीनता स्वीकार्य नहीं है। आप ईमानदार होने का दावा करते हैं, तो करते रहें। जनता तय करेगी कि आप कितने सच हैं? लेकिन किसी भी दूसरे को भ्रष्ट कहने का अधिकार आपको किसने दे दिया? केजरीवाल यही तो कर रहे हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार से पहले कांग्रेस और भाजपा की भी तो सरकारें रहीं हैं। तब यहां कभी अराजकता और अव्यवस्था नहीं देखी गई। मगर केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनते ही यहां उप राज्यपाल से लेकर मुख्य सचिव उनके निशाने पर आने लगे। आखिर दिल्ली कहां जा रही है? क्या यह सब अब देश की राजधानी में घटित होगा? आखिर हम सारी दुनिया को क्या संदेश दे रहे हैं? पूरी दुनिया दिल्ली सरकार पर हंस रही है। हर किसी पर सुबह-शाह आरोपों की बौछार करने वाला मुख्यमंत्री आखिरकार अपना काम कब करता है? दरअसल, केजरीवाल नाटक करने में माहिर हो चुके हैं। उन्होंने वास्तव में भारतीय राजनीति को पतित किया है। अब यह जगजाहिर हो गया है कि रामलीला मैदान में वे देश के तिरंगे का इस्तेमाल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए करते थे। अब वे ईवीएम में गड़बड़ी की बातें करते रहते हैं। वे करप्शन से लड़ने का दावा करते थे। पर करप्शन के खिलाफ की गई नोटबंदी का वे विरोध कर रहे थे। तब देश की जनता को अपने पुराने नोटों को बैकों में जमा करवाने से लेकर नये नोट हासिल करने में दिक्कतें जरूर आई। जनता को लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ा। पर किसी ने ये नहीं कहा कि मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला गलत है। भारी कष्ट उठाने के बाद भी देश कहता रहा है कि अब काले धन से मुक्ति देश को मिलनी ही चाहिए। पर ममता बनर्जी के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने जनता को भड़काने की हरसंभव कोशिशें की। दिल्ली की जनता केजरीवाल को खूब अच्छी तरह से जान गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद कहा था कि वे सरकारी बंगला नहीं लेंगे। तब केजरीवाल कह रहे थे कि वे अपने लिए छोटा सा सरकारी घर लेंगे। परंतु वे शान से राजधानी के पॉश सिविल लाइंस इलाके के बंगले में रहने लगे। हालांकि वे बार-बार कहते थे कि हम वीआईपी कल्चर के खिलाफ हैं। केजरीवाल ने हद कर दी है। अब उन्हें नाटक बंद करके दिल्ली की जनता की सेवा करनी चाहिए।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *