अर्पित गुप्ता
जहां एक ओर किसान मुनाफे के लिए अंधाधुंध रासायनिक खादें और कीटनाशक का उपयोग करते हैं, वहीं आज के
युवा किसान आर्गेनिक खेती से हर साल करोड़ो का व्यापार करता है। युवा किसान का मानना है कि अगर खाना
शुद्ध होगा तो शरीर शुद्ध होगा, शरीर में विकारों से विचारों में विकार आते हैं, और इसके बाद समाज भी विकृत
ही होगा। आज ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसानों की संख्या के मामले में भारत पूरे विश्व में अब प्रथम स्थान पर
आ गया है एवं ऑर्गेनिक खेती के क्षेत्र के मामले में भारत पूरे विश्व में 9वें स्थान पर है। भारत से ऑर्गेनिक खेती
के निर्यात में शामिल हैं फ़्लैक्स बीज, सीसेम, सोयाबीन, चाय, मेडिसिनल प्लांट, चावल एवं दालें।
भारत के निर्यात में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी बहुत कम है। अतः अब इसे बढ़ाए जाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।
दूध के उत्पादन में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है एवं कृषि क्षेत्र में उत्पादन के लिहाज़ से भारत पूरे
विश्व में दूसरे स्थान पर आ गया है। परंतु, भारत से कृषि निर्यात मात्र 1 प्रतिशत है इसमें गेहूँ, दालें, फल आदि
मुख्य रूप से शामिल हैं। लेकिन हमारे देश के पास बाग़वानी एवं मसालों आदि का निर्यात करने का जो सामर्थ्य है
उसे भुनाया नहीं जा सका है। कृषि उत्पादन में तो हमारे देश ने काफ़ी तरक़्क़ी कर ली है एवं इस क्षेत्र में हम
लगभग आत्मनिर्भर बन गए हैं परंतु इस क्षेत्र से निर्यात का अच्छा स्तर प्राप्त नहीं हो पा रहा है। अतः शायद देश
के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात नीति की घोषणा की है और उसके अंतर्गत
सभी राज्यों को निर्यातोन्मुखी सूत्र में बाँधने की कोशिश की गई है। इस योजना के अंतर्गत राज्य स्तर पर
समितियों का निर्माण प्रारम्भ किया गया है एवं सीधे किसानों तक पहुँचकर उसे निर्यातकों के साथ जोड़ने का
प्रयास किया जा रहा है। इस प्रयास में जो भी आधारिक संरचना सम्बंधी कमी दृष्टिगोचर होती है उसे दूर करने का
भरपूर प्रयास किया जा रहा है। निर्यात के क्षेत्र में आने वाले अन्य प्रकार के सारे अवरोधकों को चिन्हित कर उन्हें
भी दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। कृषि क्षेत्र में आधारिक संरचना विकसित करने के लिए प्रधानमंत्री महोदय
ने कृषि मंत्रालय को एक लाख करोड़ रुपए का एक विशेष पैकेज दिया है। वाणिज्य, उद्योग एवं कृषि मंत्रालय
मिलकर इस क्षेत्र में सराहनीय काम कर रहे हैं।
अभी तक हमारे देश में कृषि क्षेत्र में आयात ख़त्म कर आत्मनिर्भर बनने का प्रयास किया जा रहा था। अतः स्वयं
के उपभोग करने के बाद बचा खुचा उत्पाद ही निर्यात कर पाते थे। परंतु अब केंद्र सरकार ने इस नीति में संशोधन
किया है अतः कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के बाद अब इस क्षेत्र से निर्यात बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया
जाना चाहिए। जैसे कोरोना महामारी के चलते हल्दी का उपयोग बढ़ा है अतः देश में ही हल्दी के उत्पादन को
बढ़ाया जा रहा है ताकि देश में उपभोग के बाद इसका पर्याप्त मात्रा में निर्यात भी किया जा सके। देश में किसानों
को भी अब समझना पड़ेगा कि कृषि क्षेत्र से निर्यात बढ़ाने के लिए ऑर्गेनिक खेती की ओर मुड़ना ज़रूरी है एवं
कृषि उत्पाद की गुणवत्ता एवं उत्पादकता में भारी सुधार करने की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप
ही कृषि उत्पादन करना होगा। शीघ्र ख़राब होने वाले कृषि उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज की चैन देश के कोने-कोने
तक फैलाई जा रही है।
केंद्र सरकार ने इसके लिए वित्त की व्यवस्था कर दी है एवं संबंधित विभागों को वित्त प्रदान भी कर दिया है। कृषि
उत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक शीघ्रता से पहुँचाने के लिए कुछ विशेष रेल गाड़ियाँ भी चलायी जा रही
हैं। एपीएमसी क़ानून में संशोधन कर दिया गया है ताकि किसान अपनी उपज को जहाँ चाहें वहाँ आसानी से बेच
सकें। साथ ही, काँन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग पद्धति को भी स्वीकृति दे दी गयी है ताकि भविष्य में किसान किस प्रकार की
उपज लेना चाहता है इसका निर्णय वह आसानी से आज ही कर सके। एक ज़िला एक उत्पाद की नीति भी घोषित
की गई है, जैसे किसानों को एक-एक जिले में विशेष प्रोडक्ट की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
जिस प्रकार सिक्किम का नाम आते ही ऑर्गेनिक कृषि का नाम ध्यान आ जाता है एवं केरल का नाम आते ही
मसालों का नाम ध्यान आता है। उसी प्रकार देश के हर जिले के नाम पर कोई न कोई विशेष उत्पाद जुड़ जाना
चाहिए, ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं।