-निर्मल रानी-
उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर के नए परिसर में ‘महाकाल लोक’ नामक एक गलियारे का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गत 11 अक्टूबर 2022 को पूरे धार्मिक एवं उल्लासपूर्ण वातावरण के साथ किया गया था। महाकाल लोक के गलियारे में सप्तऋषि मंडल नाम से सप्तऋषि की प्रतिमाएं स्थापित की गयी थीं। यहां जिन सप्तऋषियों की प्रतिमाएं लगाई गई थीं वे थे ऋषि वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि कण्व, ऋषि भारद्वाज, ऋषि अत्री, ऋषि वामदेव तथा ऋषि सुनक। फ़ाइबर रेनफ़ोर्स प्लास्टिक से निर्मित इन मूर्तियों की ऊंचाई 10 फ़ुट से 25 फ़ुट के मध्य थीं। बताया जाता है कि महाकाल लोक निर्माण में लगभग 350 करोड़ रुपये की लागत आई थी। परन्तु अपने उद्घाटन के मात्र सात माह बाद अर्थात गत 28 मई (रविवार ) को मात्र 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चली हवा के कारण महाकाल लोक में लगी छह मूर्तियां गिरकर खंडित हो गयीं और पेडस्टल से नीचे गिरकर उड़ती हुई दूर जा गिरीं। इसके बाद सभी सप्तऋषि की प्रतिमाओं को महाकाल लोक की पार्किंग के पीछे छिपा दिया गया और इन्हें ढक दिया गया ताकि इन खंडित प्रतिमाओं की जानकारी आम लोगों को न मिल सके और टूटी मूर्तियां देखकर सप्तऋषि मंडल के निर्माण में हुये भ्रष्टाचार की वजह से लोगों में आक्रोश न पैदा हो । किसी प्रतिमा की गर्दन टूट कर अलग हो गई थी तो कुछ प्रतिमाओं के हाथ अलग हो गए थे। कभी सोचा भी नहीं जा सकता कि लगभग 350 करोड़ रुपये की लागत से बनी एक महत्वपूर्ण धार्मिक परियोजना मात्र सात महीने बाद ही मामूली हवा का झोंका सहन न करते हुये तिनके की तरह बिखर जाएगी। ख़बर है कि महालोक के निर्माण का ठेका भी गुजरात की ही किसी एमपी बाबरिया नामक कंपनी के पास था।
याद कीजिये इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत वर्ष 16 जुलाई को जालौन के कथेरी गांव से बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का शुभारंभ किया था। उद्घाटन के साथ ही यह एक्सप्रेस-वे आवागमन के लिये खोल दिया गया था। उस समय सरकार के अधिकारीयों ने एक्सप्रेस-वे को पूरी गुणवत्ता के साथ रिकॉर्ड समय में पूरा करने का दावा करते हुये अपनी पीठ ख़ुद ही थपथपाई थी। परन्तु उद्घाटन करने के मात्र 5 दिन बाद ही बरसात की पहली बारिश में ही इसी एक्सप्रेस-वे की सड़कें जगह जगह से धंस गई। कई जगह 1 फ़ुट गहरे गड्ढे हो गये। कुछ जगहों पर तो सड़क पर 8 फ़ुट लंबा व 1 फ़िट गहरा गड्ढा हो गया था। बाद में इस रास्ते को मुरम्मत के लिये बंद करना पड़ा था। चित्रकूट से इटावा तक बने इस 296 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे को 14800 करोड़ की लागत से बनाया गया था। इस एक्सप्रेसवे के क्षतिग्रस्त होने के बाद भारतीय जनता पार्टी सांसद वरुण गांधी ने अपने ट्वीट के माध्यम से यह कहा था कि -15 हज़ार करोड़ की लागत से बना एक्सप्रेसवे अगर बरसात के पांच दिन भी न झेल सके तो उसकी गुणवत्ता पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। इस प्रोजेक्ट के मुखिया,सम्बंधित इंजीनियर और ज़िम्मेदार कंपनियों को तत्काल तलब कर उनपर कड़ी कार्रवाही सुनिश्चित करनी होगी। पिछले दिनों में गुजरात सहित देश के अनेक राज्यों से ऐसे कई समाचार आये जिनसे पता चला कि कहीं कोई निर्माणाधीन परियोजना मुकम्मल होने से पहले ही ध्वस्त हो गयी तो कोई उद्घाटन से पहले दो दो बार ढह चुकी। यह ऐसे समय में हो रहा है जब विभिन्न सरकारें भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस का ढिंढोरा पीट रही हैं।
परन्तु भ्रष्टाचार से भी ज़्यादा कष्टदायक स्थिति तब पैदा होती है जब सरकारें भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने व भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास करते हुये भ्रष्टाचार को उजागर करने या उसपर सवाल उठाने वालों पर ही उंगली उठाने लगती हैं। जब उंगली उठाने वालों को पहले खुद अपने गिरेबान में झांककर देखने जैसे प्रवचन देने लगती है। उदाहरण के तौर पर महाकाल लोक की मूर्तियां के खंडित होने के मामले में मध्य प्रदेश कोर्ट में गत दिनों एक जनहित याचिका दायर की गयी। यह जनहित याचिका कांग्रेस नेता के के मिश्रा ने दायर की थी। याचिका में महाकाल लोक के निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा गया था कि ठेका लेने वाली कंपनी ने मूर्तियों की जिस गुणवत्ता का दावा निविदा में किया था उस गुणवत्ता की मूर्तियां नहीं लगाई गईं। और मूर्तियों के इस तरह से खंडित होने से भक्तों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। याचिका में इस पूरे मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज से करवाने की मांग करते हुए ज़िम्मेदारों के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग की गई थी। परन्तु मध्य प्रदेश सरकार ने इस याचिका का विरोध करते हुये तर्क दिया कि -यह याचिका चलन योग्य ही नहीं है। सरकार ने याचिका निरस्त करने की मांग भी की। 42 पेजों में दर्ज कराई गयी अपनी आपत्ति में सरकार ने कहा कि जनहित याचिका राजनीति से प्रेरित है। याचिकाकर्ता कांग्रेस के नेता हैं। उन्होंने प्रचार पाने के लिए जनहित याचिका लगाई है।
क्या ऊपर लिखित शब्दों में भ्रष्टाचार सम्बन्धी याचिका का सरकार द्वारा विरोध करना भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने व भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास नहीं? इस घटना के बाद अनेक विशेषज्ञों के बयानों से साफ़ ज़ाहिर हुआ कि मूर्ति निर्माण की गुणवत्ता सही नहीं थी। इसके निर्माण में हलके फ़ाइबर का इस्तेमाल तो किया ही गया था मूर्तियों के भीतर लोहे व सरिये के फ़्रेम भी नहीं बनाये गए थे। इसे केवल और केवल सरकारी संरक्षण में होने वाली संगठित लूट ही कहा जा सकता है अन्यथा सरकार द्वारा भ्रष्टाचारियों पर ऊँगली उठाई जाती न कि भ्रष्टाचार पर सवाल उठाने वालों पर? जनहित याचिकायें दायर करने वाले लोग तो प्रायः किसी न किसी राजनैतिक दल या विचारधारा से ही जुड़े होते हैं। इसका अर्थ यह तो नहीं कि उनकी याचिकायें निरस्त करने की सिफ़ारिश इसी आधार पर की जाये कि याचिकाकर्ता अमुक राजनैतिक दल से सम्बद्ध है? इसका तो सीधा मतलब है कि देव मूर्ति प्रतिमा निर्माण में भ्रष्टाचार भी और उसपर पर्दादारी भी?