देउबा फिर से नेपाल के प्रधानमंत्री बन तो गये, पर ओली उन्हें चैन से राज करने नहीं देंगे

asiakhabar.com | July 15, 2021 | 5:49 pm IST

सुरेंदर कुमार चोपड़ा

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में प्रधानमंत्री केपीएस ओली के अनुरोध पर राष्ट्रपति के प्रतिनिधि सभा को
भंग करने के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने सोमवार को यह भी आदेश दिया कि पूर्व प्रधानमंत्री शेर
बहादुर देउबा को 48 घंटे में प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाए। पूर्व प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा सहित 149 सदस्यों ने
संसद भंग करने के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में पूर्व प्रधानमंत्री देउबा की प्रधानमंत्री पद पर
नियुक्ति की मांग की गई थी। न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि प्रधानमंत्री ओली को प्रतिनिधि सभा को भंग
करने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने उनके सभी फैसलों को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद
शेर बहादुर देउबा एक बार फिर नेपाल के प्रधानमंत्री बन गये हैं।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री केपीएस ओली की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने पांच महीने में दो बार
संसद के निचले सदन को भंग किया। संसद भंग करने के बाद इस साल 12 व 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव
कराने की घोषणा की गई। चुनाव को लेकर और राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ नेपाली सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं
दाखिल की गई थीं। 275 सदस्यीय सदन में विश्वास मत हारने के बाद भी ओली अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर
रहे थे।
केपीएस ओली 10 मई को संसद में विश्वास मत नहीं जीत पाए थे। इसके बाद राष्ट्रपति ने विपक्ष को 24 घंटे के
अंदर विश्वास मत पेश करने का प्रस्ताव दिया था। नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देऊबा ने अपने लिए
प्रधानमंत्री पद का दावा किया था। उन्होंने कहा था कि उनके पास 149 सांसदों का समर्थन है। इसके बावजूद
राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने 22 मई की आधी रात को प्रधानमंत्री ओली की सिफ़ारिश पर संसद भंग कर नवंबर
में चुनाव कराने की घोषणा की थी। नेपाली राष्ट्रपति ने पिछले साल दिसंबर में भी संसद भंग करने का फ़ैसला
किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गत फ़रवरी में इसे असंवैधानिक क़रार देते हुए संसद को बहाल कर दिया था।

प्रधानमंत्री बनना शेर बहादुर देउबा के लिए बड़ी बात हो किंतु वह कुछ नया कर पाएंगे, ऐसा नहीं लगता। 275
सदस्य वाले सदन में उनके दल के 46 सदस्य हैं। बाकी वह हैं जो ओली को प्रधानमंत्री नहीं देखना चाहते। ऐसे में
सरकार बनाने के लिए उन्हें अनचाहे समझौते करने पड़ेंगे। अपने मन के विपरीत अनचाहे निर्णय लेने होंगे।
उल्टे−सीधे कार्य करने का दबाव रहेगा।
अभी संसद का चुनाव होने में लगभग दो साल हैं। यह भी नहीं कहा जा सकता कि वर्तमान हालात में देउबा दो
साल पूरे कर पाएंगे या नहीं। यह भी तय नहीं कि कितने दिन का सत्ता सुख उनके भाग्य में है। केपीएस ओली
उन्हें पदच्युत करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। उनका जोड़−तोड़ कर पुनः सत्ता कब्जाने का अभियान जारी रहेगा।
चीन की नेपाल में राजदूत उनके कार्य और हथकंडों में सहयोगी होंगी।
देउबा का प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए जरूर राहत देने वाला है, क्योंकि केपीएस ओली चीन की गोदी में बैठे थे।
वे लगातार भारत के खिलाफ षड्यंत्र करने में लगे थे। ऐसे कार्य कर रहे थे कि भारत को नुकसान हो और चीन को
लाभ। पर ये भी तय है कि देउबा चीन का खुलकर विरोध नहीं कर पाएंगे क्योंकि चीन ने नेपाल में बड़ा निवेश
किया हुआ है। अपने देश के विकास के लिए चीन से वह और निवेश चाहेंगे।
इस सबके बावजूद भारत के लिए इतनी राहत की खबर है कि नेपाल अब उसका खुलकर विरोध नहीं कर सकेगा।
केपीएस ओली के कार्यकाल में जो होता रहा है, वह अब नहीं होगा। भारत के विरुद्ध षड्यंत्र नहीं होंगे। देउबा के
कार्यकाल में नेपाल में भारत को अपने को मजबूत करने और अपना पक्ष बढ़ाने का अवसर मिलेगा।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *