शिशिर गुप्ता
भारत के प्रधानमंत्री ने पहली बार पाकिस्तान को ‘दुष्ट’ करार दिया है। एक ऐसा देश बताया, जो बेवजह ही दुश्मनी
पालने का आदी है। माहौल भी ऐसा ही था। भारत कारगिल युद्ध की 21वीं सालगिरह पर ‘विजय पर्व’ मना रहा
था। असंख्य आंखें नम थीं, लेकिन भीतर जज़्बा था। सरहदों पर तैनात और पराक्रम दिखा कर ‘शहीद’ हुए
रणबांकुरों के प्रति श्रद्धांजलियां भी थीं और अभिनंदन में देश नमन कर रहा था। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने
कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कारगिल के योद्धाओं को याद किया, तो पाकिस्तान को ‘दुष्ट’ तक करार दे दिया।
कारगिल युद्ध भी पाकिस्तान की साजिशाना दुष्टता का नतीजा था, क्योंकि श्रीनगर और लेह के बीच राजमार्ग को
तोड़ने और अलग करने की साजिश रची गई थी। सियाचिन और आसपास के पहाड़ी इलाकों में अपमानजनक
पराजय पाकिस्तान नहीं भूला था, लिहाजा कारगिल की ऊंची और बर्फीली पहाडि़यों पर चुपचाप, अवैध कब्जे करके
भारत की सीमा में अतिक्रमण किया गया था। पाकिस्तान उसे ‘गुरिल्ला लड़ाई’ कहते नहीं थकता। दरअसल वह
साजिश तत्कालीन तानाशाह राष्ट्रपति जिया-उल-हक के कालखंड में रची गई थी। चूंकि तब पाकिस्तान
अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं को खदेड़ने की अमरीकी मुहिम का हिस्सा था, लिहाजा साजिश सरकारी फाइलों
में दबकर रह गई। जब परवेज मुशर्रफ पाकिस्तानी फौज के ‘जनरल चीफ’ बने, तब उन्होंने साजिश को झाड़ कर
अंजाम देना तय किया। पाकिस्तान के तत्कालीन वजीर-ए-आजम नवाज शरीफ तक को साजिश की भनक नहीं
लगने दी गई। फौज के ज्यादातर कमांडर साजिश के ब्योरे नहीं जानते थे।
उस दौरान रावलपिंडी के सेना मुख्यालय में चीन के सैनिक क्यों मौजूद थे, आज तक इस सवाल का खुलासा नहीं
हो पाया है, लेकिन यह साफ हो गया कि पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छुरा घोंपने की कोशिश की थी। यह बात
प्रधानमंत्री मोदी ने भी कही है। हालांकि तब भारत पाकिस्तान के साथ दोस्ताना संबंधों की पहल कर रहा था।
बहरहाल कारगिल युद्ध हुआ। हमारे जांबाज सैनिकों ने अपनी दुर्गम, बर्फीली चोटियों को दुश्मन के कब्जे से
आजाद कराया। पाकिस्तानी फौज को दुम दबाकर भागना पड़ा। तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की
दहलीज पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को गिड़गिड़ाना पड़ा। वह पूरा परिदृश्य ‘विजय पर्व’ के मौके पर जीवंत हो
उठा, लेकिन पाकिस्तान अब भी अपनी दुष्टता और साजिशों में लीन है। इस बार उसने पूरी तरह चीन का दामन
थाम रखा है। चीन हांगकांग और ताइवान की तरह पाकिस्तान पर भी पूरी हुकूमत करना चाहता है। चूंकि पूर्वी
लद्दाख के तमाम विवादास्पद हिस्सों में चीन के साथ तनाव और अतिक्रमण के मुद्दों का समाधान नहीं हुआ है,
लिहाजा लद्दाख के ही पड़ोस में गिलगित और बाल्टीस्तान इलाके में पाकिस्तान हवाई युद्धाभ्यास की तैयारी में
है। पाकिस्तान ने जेएफ-17 विमान भी तैनात किया है।
वह चीन ने ही उसे दिया है। कुछ सेटेलाइट तस्वीरों के जरिए यह साफ हुआ है कि उस इलाके में चीन ने 22
स्पोर्ट बेस और दो एयरबेस बनाए हैं। पाक अधिकृत कश्मीर में पाक-चीन की सांठगांठ ज्यादा व्यापक सामने आई
है, क्योंकि चीनी सैनिक वहां पाकपरस्त आतंकियों को टे्रनिंग देते देखे गए हैं। पीओके में 2005 में जब भूकंप
आया था, उसके बाद पाकिस्तान ने चीन के 14 प्रोजेक्ट, राहत के नाम पर, शुरू होने दिए थे। वे आज भी जारी
हैं। यही नहीं, चीनी कंपनी ‘चाइना मोबाइल’ को पीओके में अपना टॉवर लगाने की इजाजत भी दी गई है। इसके
अलावा चीन टेलीकॉम, बुनियादी ढांचा, रेलवे, बिजली और पर्यटन आदि क्षेत्रों में भारी निवेश कर रहा है। दुनिया
को इस सांठगांठ की सार्वजनिक जानकारियां नहीं हैं। पीओके के स्कार्दू में एक एयरबेस ऐसा भी है, जहां चीन के
विमान उतरते देखे जा सकते हैं। क्या पाक-चीन की साझा रणनीति यह है कि भारत को एलएसी और एलओसी के
दोनों मोर्चों पर एक साथ घेरकर रखा जाए? पाकिस्तान दुष्टता और साजिश की किसी भी हद तक जा सकता है।
फिलहाल लद्दाख के गलवान और हॉट स्प्रिंग के तीन मोर्चों से चीनी सेना पीछे हट चुकी है। पीपी-15 से भी दोनों
सेनाएं पीछे हट चुकी हैं। यह आलेख लिखने तक चीनी सेना पैंगोंग में अभी अड़ी हुई है। हालांकि भारत-चीन के
बीच कमांडर स्तर की 4-5 वार्ताएं हो चुकी हैं। सहमतियां भी बनी हैं, लेकिन उन पर अमल करने में चीन का
दोगलापन आड़े आ रहा है। चीन और पाकिस्तान का नापाक गठजोड़ हमारे लिए टेढ़ी चुनौतियां पेश कर सकता है।
बहरहाल हमारे जांबाज सैनिकों का मानस इसके लिए भी तैयार होगा!