दुनियाँ से दुखी लोग दुर्योधन हो सकते है

asiakhabar.com | November 1, 2023 | 4:58 pm IST
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गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, कनाडा
दुर्योधन की समस्या ये है कि जो उसको मिला है उस पर वह खुश नहीं है ; जो नहीं मिला उसके लिए वह इस हद तक परेशान है कि खुद का सब कुछ खोने व विनाश के लिए भी तैयार है |
दुर्योधन को बहुत बड़ा राज्य मिला, जिसको प्रबंधित व निदेशित करने के लिए उसके पास विदुर जैसा ज्ञानी, रक्षा करने के लिए भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसे असाधारण लोग, प्रकृतिक संसाधनों से सम्पन्न राज्य जिसकी आर्थिक दृष्टि से भी कोई चिंता की आवश्यकता नहीं!
वह चाहता तो आराम से बैठकर राज कर सकता था, कुछ नहीं करना था उसे! पर जो छोटा सा राज्य पांडवों को मिला उस से वह परेशान था और कैसे भी कुछ भी करके उसे वही चाहिए शा!
इस प्रयास में वह जीवन भर लड़ता रहा, स्वयं को अनावृत करता गया और धीरे-धीरे सब कुछ खोता गया, हारता गया व अंत में मरण को वरा!
दुर्योधन की दूसरी विशेषता थी कि वो अच्छे लोगों की सलाह कभी नहीं मानता था! भीष्म, कृपाचार्य, विदुर, कृष्ण, गांधारी व द्रोण, किसी की भी सलाह उसने नहीं मानी!
वह जिन की सलाह सुनता व मानता वो उनके हितों को जानते हुए भी नकारता था! वो शकुनि की सुनता था, जो अपनी बहन का विवाह एक नेत्रहीन से करवाने से इतना ईर्ष्या ग्रस्त था कि वो हस्तिनापुर को बर्बाद करने की कसम खाए बैठा था!
वो कर्ण की सुनता, जो अर्जुन को युद्ध में हराने की कसम खाए बैठे था!
ये दोनों ही चाहते थे की युद्ध हो, कैसे भी हो और दोनों उसको इसी के लिए उकसाते थे!
दुर्योधन को अपने शुभचिंतक की समझ नहीं होती! उसे वे अग्रबुद्धि जन या बोधि प्राप्त व्यक्ति अटपटे लगते हैं! उनकी गहराई उसे समझ नहीं आती! वह ईश्वरत्व या योगेश्वर कृष्ण की थाह नहीं पा पाता! अह्कार में सबका उपयोग करना चाहता है और ऐसा करते हुए सब कुछ खोता चलता है!
दुर्योधन बदतमीज़ भी होता है! कृष्ण को बंदी बनाने चल दिया, विदुर के लिए अपशब्द कहता और अपनी ही भाभी की साड़ी खींचने में लग गया!
अगर उसके अपने उसे अपने अंतस् से गलत मानते हैं तो फिर भले ही वो रिश्तों की मर्यादा में उनके लिए जान भी दे दे, तो भी वे उसको विनाश से बचा नहीं सकते!
रावण के लिए उसके भाइयों ने जान दे दी, बेटों ने भी प्राप्त दे दिए, पर वे उसे बचा नहीं सके!
दुर्योधन के लिए भी उसके लगभग पूरे परिवार ने जान दे दी, पर वे उसे बचा नहीं सके!
दुनियाँ में मानसिक रूप से दुखी लोगों की यही दौलत होती है, वो बदतमीज़ होते हैं, वो अच्छे लोगों की सलाह नहीं मानते, चाटुकारो की सलाह मानते है और जो उन्हे ईश्वर ने दिया है उस पर कभी प्रसन्न नहीं होते! जो नहीं मिला या नहीं दिया बस उसी के लिए परेशान होते रहते हैं!
आपको अपने आप में, घर पड़ोस मे, रिस्तेदारों मे, मित्र मंडली में व विश्व भर में ऐसे ही दुर्योधन भरे मिलेंगे!
दुनिया बहुत अच्छी है बस दुर्योधन ही परेशान रहता है और बाकी सब को भी वह दुखी कर अपना सर्वनाश करता चलता है|
दुर्योधन से बचने की एक ही सही नीति है, विदुर नीति!
वर्तमान विश्व, समाज, परिवार, राजनीति, संस्थाएँ, सम्प्रदाय, न्यास सन्यास, इत्यादि भी दुर्योधनों से भरे पड़े हैं!
आवश्यकता है आज के सतत सनातन, अनन्त कलाओं में अवतरित कृष्ण की, समर्पित श्रद्धान्वत शक्ति सम्पन्न पाण्डवों की!
हर व्यक्ति को ज़रूरत है गहन साधना की और इष्ट में समर्पित हो परम शिष्ट परम श्रेष्ठ सद्विप्र बनने बनाने की!
हर दुर्योधन मूलतः सुयोधन है, बस उसे कृष्ण का परश पा परिष्कृत व सुसंस्कृत होना है!
कृष्ण अपने हर अंश, वंश व आत्म को हंस परम-हंस बनाने के लिए हर देश काल व पात्र में प्रस्तुत हैं अनेक रूपों, कलाओं, अभिव्यक्तियों, अनुभूतियों, अनुरक्तियों, विरक्तियाँ व प्रस्तुतियों में!
कृष्ण अपने हर पंच तत्व, हर वनस्पति, जंतु, जीव, मनुज, कौरव-पांडव, प्रकृति-विकृति व द्वंद- आनंद में अपने कोमल कमल नयनों से हमारी हर मानस लीला को स्नेह से निहार रहे हैं!
अपने सृष्ट जीवों की शिशु वत कलाओं की शरारत, उद्दंडता, मासूमियत, अंतस् की ओजस्विता व ऐश्वर्य सब कृष्ण के विराट मानस पटल में है और वे कलाकारों से भी महान कलाकार हैं!
सारा जगत् सृष्टा के दृष्टि पटल पर है और उसके जनक, प्रायोजक, सचेतक, नियंत्रक व नियंता वे ही हैं!


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