राष्ट्रपति का पद दलगत राजनीति से ऊपर माना जाता है। अवकाशप्राप्त राष्ट्रपति का भी सार्वजनिक जीवन में एक सम्मानित स्थान होता है। उन्हें एक ऐसी समिति से जोडऩा, जिसकी सिफारिशें विवादास्पद भी हो सकती हैं, इस पद के लिए अपमानजनक माना जाएगा।वन नेशन- वन इलेक्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुराना नारा रहा है। इसके पीछे उनकी जो सोच है, उसको लेकर बेशक कई सवाल उठाए जा सकते हैं। लेकिन अगर उन प्रश्नों को फिलहाल छोड़ दें कर हम उनकी सरकार की ताजा पहल के औचित्य पर बात करते हैं। यह सुनकर हैरत हुई एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव की संभाव्यता का पता लगाने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है। इसके पहले ऐसा कभी नहीं सुना गया कि अवकाशप्राप्त राष्ट्रपति को किसी सरकार ने ऐसी समिति से जोड़ा हो, जो अंतत: उसके प्रति उत्तरदायी होगी। राष्ट्रपति का पद दलगत राजनीति से ऊपर माना जाता है और अवकाशप्राप्त राष्ट्रपति का भी सार्वजनिक जीवन में एक सम्मानित स्थान होता है। उन्हें एक ऐसी समिति से जोडऩा, जिसकी सिफारिशें विवादास्पद भी हो सकती हैं, न सिर्फ उस व्यक्ति बल्कि इस पद के लिए भी अपमानजनक माना जाएगा। बहरहाल, सरकार यह चाहती है कि सारे चुनाव एक साथ हों।फिलहाल, जितना समय लोकसभा चुनाव में बचा है, उसे देखते हुए यह व्यावहारिक नहीं लगता। लेकिन इस सोच को अधिकतम संभव बनाने के लिए भाजपा एक काम कर सकती है। वह अपनी तमाम राज्य सरकारों को निर्देश दे सकती है कि वे तुरंत विधानसभाएं भंग करवा लें। उससे अधिकांश राज्यों में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव होने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। जब एक बार यह हो जाएगा, तो धीरे-धीरे अगले चुनाव कार्यक्रमों को इस तरह ढाला जा सकता है, जिससे पांच साल में प्रधानमंत्री का यह नारा विपक्षी सरकारों से बिना जोर-जबरदस्ती किए एक हकीकत बन जाएगा। हालांकि उसके बाद भी यह सवाल बना रहेगा कि अगर फिर बीच में कोई सरकार गिरी और वहां नई सरकार बनना संभव नहीं हुआ तो क्या होगा? या अगर कभी लोकसभा के ही मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गई, तो उस हाल में क्या सिद्धांत अपनाया जाएगा? मगर ये भविष्य के प्रश्न हैं। फिलहाल, भाजपा अपने शासन वाले राज्यों में तुरंत चुनाव करवा कर एक मिसाल जरूर कायम कर सकती है। उसके ऐसे कदम से प्रधानमंत्री के नारे की नैतिक और राजनीतिक साख भी मजबूत होगी।