तो ऐसे गुरुओं के हाथों है देश के युवाओं का भविष्य?

asiakhabar.com | July 9, 2020 | 12:40 pm IST

विकास गुप्ता

कभी कभी किसी टी वी चैनल द्वारा बिहार, झारखण्ड, या पूर्वी उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल्स के कुछअध्यपकों का
स्टिंग ऑपरेशन कर उनके 'ज्ञान' के बारे में बताया जाता है की किस तरह उन्हें अपने देश के राष्ट्रपति या
राज्यपाल आदि के नाम या छोटे छोटे शब्दों की स्पेलिंग तक पता नहीं होती। ऐसी रिपोर्ट्स में चिंता व्यक्त की
जाती है कि किस तरह ऐसे अज्ञानी अध्यापकों की भर्ती की गयी और अब ऐसे अध्यापकों के हाथों बच्चों का
भविष्य कितना अंधकारमय है। परन्तु यक़ीन जानिये कि बच्चों का भविष्य एक अनपढ़ या अर्धज्ञानीअध्यापक के
हाथों उतना अंधकारमय नहीं है जितना कि आज के कुछ कलयुगी पी एच डी धारकों और वह भी विश्वविद्यालय के
उपकुलपति जैसे अति महत्वपूर्ण पद पर बैठे लोगों के हाथों अंधकारमयहै। इस तरह के कलयुगी गुरु घंटालों से तो
आप ऐसे 'उपदेशों' की तो उम्मीद ही नहीं कर सकते जो उनके द्वारा दिए जा रहे हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश आज यही
सच्चाई है।
वैसे तो जौनपुर के वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्व विद्यालय के उपकुलपति डॉ राजा राम यादव का नाम दिसंबर
2018 को ही उसी समय चर्चा में आ गया था जबकि वे गाज़ीपुर में एक कॉलेज में छात्रों को संबोधित करते हुए
फ़रमा रहे थे कि-यदि आप पूर्वांचल यूनिवर्सिटी के छात्र हैं, और आपका कहीं किसी से झगड़ा हो जाए तो रोते हुए
मत आना, पीटकर आना, चाहे मर्डर कर के आना। इसके बाद हम देख लेंगे। एक वाइस चांसलर स्तर के पी एच
डीगुरु द्वारा अपने कॉलेज के छात्रों को हिंसा का ऐसा पाठ पढ़ाना कि हत्या करने तक के लिए प्रोत्साहित किया जा
रहा हो, इस बात की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस उपकुलपति ने अपने 'कलयुगी उपदेश ' से उसी
समय लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था। बुंदेलखंड के महोबा में जन्मा यह व्यक्ति कोई मामूली
शिक्षाविद या अज्ञानी भी नहीं कहा जा सकता। इन्हें दर्जनों अवार्ड व फ़ेलो शिप हासिल हैं तथा पी एच डी भी
फ़िज़िक्स में की है। गुरूजी ने अपने अकादमिक यात्राओं में अमेरिका, कनाडा, इटली, फ़्रांस, जर्मनी, स्वीडेन,
बेल्जियम, ऑस्ट्रिया, स्पेन, फ़िनलैंड, जापान, सिंगापुर व नेपाल जैसे देशों का भ्रमण किया है तथा भारत के
प्रतिनिधि 'शिक्षाविद' के रूप में अपनी 'ज्ञान वर्षा' की है। जिस व्यक्ति को हिंसा से इतना प्यार हो कि वह अपने
छात्रों को क्षमा, प्रेम व बलिदान सिखाने के बजाए हत्या, और हिंसा का खुला पाठ पढ़ा रहा हो ऐसे 'गुरु' के हाथों
बच्चों का भविष्य कितना अंधकारमय है इस बात का स्वयं अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
दिसंबर 2018 को ग़ाज़ीपुर में दिए गए यादव के उपरोक्त 'प्रवचन' के बाद यदि उनको अनुशासनहीनता व छात्रों
के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने के लिए पदमुक्त कर दिया गया होता तो शायद पुनःइस पद की गरिमा पर
ग्रहन न लगता। परन्तु ऐसा इसलिए संभव नहीं था क्योंकि 'गुरूजी की पहुँच ' ऊँचे परिवार तक है। आप न केवल
स्वयं संघ प्रचारक के पद पर रहे हैं बल्कि ख़बरों के अनुसार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघ चालक राजेंद्र
सिंह उर्फ़ रज्जू भैय्या से भी इनके परिवारिक संबंध रहे हैं। गोया आज के दौर में शायद इन्हें किसी भी पद की
गरिमा की चिंता किये बग़ैर कुछ भी बोलते रहने की पूरी आज़ादी मिली हुई है। पिछले दिनों एक बार फिर डॉक्टर
यादव ने अपने उपकुलपति पद की मर्यादा को तार तार करते हुए एक भाषण दिया जिसका अति विवादित अंश
अक्षरशः ग़ौर फ़रमाइये- आपने बताया कि -'जब मैं विद्यार्थी था और ट्रेन से कॉलेज में महीने दो महीने में जब

जाता था -तो रेल में एक अँधा था। आँख का अँधा, जिसके दोनों आँख नहीं थी। उसके हाथ में एक खंजली थी
लेकिन उसका गला इतना सुरीला गला था की केवल एक भजन वह गाता था। मुझे भजन भी आज तक याद है-
अंखियाँ हरि दर्शन को प्यासी -खंजली बजाते हुए रेल के डिब्बे में अँखियाँ हरि दर्शन को प्यासी, जब वह आँख का
अँधा सूरदास उस भजन को गाता था तो उसको दो दिन के लिए पैसे एक घंटे के अंदर ही मिल जाते थे। और
अगली स्टेशन में वह उतर जाता था। तो आज कल लोग कहते हैं बेरोज़गारी बेरोज़गारी बेरोज़गारी। ऐसा कुछ नहीं
है, यह हवा बना दी गयी है दूसरे देशों के द्वारा। हमारे देश के अंदर ऐसे रोज़गार हैं जोकि कोई भी व्यक्ति आकर
के उस रोज़गार को बहुत आसानी के साथ कर सकता है। एक खंजली ख़रीदने में कितना पैसा लगता है? अगर
आपको खंजली नहीं आती है, ख़रीदने का भी पैसा नहीं है तो ये पूर्वांचल विश्वविद्यालय का कुलपति आप को
ख़रीद देगा।
यानी जो 'शिक्षाविद' दो वर्ष पूर्व इसी पद पर बैठ कर अपने छात्रों को हत्या करने का पाठ पढ़ा रहा था वही व्यक्ति
आज उसी पद पर रहते हुएट्रेन में खंजली बजाते हुए भीख मांगने की शिक्षा दे रहा है? इस तरह का ज्ञान वर्धन
अनायास ही किया जा रहा है या इसके पीछे इन 'महान आत्माओं' के अपने संस्कार हैं जो इन्हें बचपन से इनकी
शिक्षा या इनकी संगत से हासिल हुए हैं? देश का युवा पढ़ लिखकर वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफ़ेसर व
उच्चाधिकारी बनने के सपने संजोता है तो ऐसे 'गुरूजी' बच्चों के जीवन को नर्क बनाने पर तुले हुए हैं? दो वर्ष पूर्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के छात्रों व बेरोज़गारों को 'पकौड़ा रोज़गार' का जो ज्ञान दिया था उसके बाद पूरे देश
में छात्रों ने ग़ुस्से में सड़कों पर प्रतीकात्मक रूप से पकौड़ा बेचकर अपना विरोध दर्ज कराया था। परन्तु यह 'गुरूजी'
तो अपने देश के युवाओं के लिए ग़ज़ब के भविष्य की कल्पना करते हैं। या क़त्ल करो या खंजली बजाकर ट्रेन में
भीख मांगो? मेरे विचार से यदि डॉ यादव अपने इस ज्ञान के प्रति गंभीर हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें इस 'नेक
मिशन' की शुरुआत अपने ही घर परिवार के सदस्यों को खंजरी दिलवाकर उन्हें ट्रेन में 'रोज़गार' दिलवाकर करनी
चाहिए। देश के युवाओं, बच्चों व अभिभावकों को ऐसे महाज्ञानी गुरु घंटालों की संगत से दूर ही रहना
चाहिए। आश्चर्य है कि आज हमारे देश के युवाओं का भविष्य ऐसे ग़ैर ज़िम्मेदार शिक्षकों के हाथों में है और
सरकार है, कि इनके विरुद्ध कार्रवाई करने के बजाए इन्हें प्रोत्साहित करने में लगी हुई है।


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