तुर्की के हमले के मायने

asiakhabar.com | October 12, 2019 | 4:11 pm IST
View Details

तुर्की ने सीरिया से अमेरिकी सेना के हटते ही हमला कर दिया है। इस हमले में अब तक आठ लोगों की
मौत हो चुकी है और हजारों बेघर हुए हैं। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने कहा कि हमले का
उद्देश्य सीमाई इलाकों से कुर्दिश सेनाओं को हटाकर सीरियाई शरणार्थियों के लिए एक सुरक्षित जोन
बनाना है। भारत ने तुर्की के इस कदम की आलोचना की है। सीरिया के जिस हिस्से पर तुर्की ने हमला
किया है, उस पर सीरियन कुर्दिश डेमोक्रेटिक यूनियन पार्टी व सशस्त्र कुर्दिश पीपल्स प्रोटेक्शन यूनिट का
नियंत्रण है। कुर्दिश पीपल्स प्रोटेक्शन यूनिट में ज्यादातर कुर्द ही शामिल हैं। कुर्द नस्लीय अल्पसंख्यक
समूह है जिनका आधिकारिक तौर पर कोई स्टेट ही नहीं है। प्रथम विश्व युद्ध के पहले तक कुर्द
खानाबदोश जीवन जीते थे हालांकि प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार के बाद ऑटोमन साम्राज्य टूट
गया और वे कई देशों के बीच बंट गए।
वर्तमान में 2.5 से तीन करोड़ कुर्द तुर्की, इराक, सीरिया और अरमेनिया में फैले हुए हैं। अधिकतर कुर्द
सुन्नी मुस्लिम हैं लेकिन कुर्दिशों की अपनी अलग सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक परंपराएं रही
हैं। कुर्दों को इराक छोड़कर कहीं अपना स्वायत्त राज्य नहीं मिला। इराक में कुर्दों की इराकी कुर्दिस्तान
नाम की एक क्षेत्रीय सरकार है। इराक, सीरिया, तुर्की व ईरान में संयुक्त कुर्दिस्तान के लिए अलग-अलग
संगठन आंदोलन चला रहे हैं। कई इलाकों में कुर्दों के सामने अपनी पहचान का संकट पैदा हो गया है।
उन्हें इन देशों में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है और हमले झेलने पड़ रहे हैं। आज कुर्दिस्तान
पांच हिस्सों में बंटा हुआ है-दक्षिणपूर्वी तुर्की, उत्तर-पूर्वी सीरिया, उत्तरी इराक, उत्तर-पश्चिम ईरान और
दक्षिण पश्चिमी अर्मेनिया। 20वीं शताब्दी में कुर्दों ने अपना कुर्दिस्तान बनाने के लिए प्रयास शुरू कर
दिए थे। पहले विश्व युद्ध के बाद 1920 में सीवरेज ट्रीटी अस्तित्व में आई जिसके तहत ऑटोमन
साम्राज्य विभाजित हो गया और कुर्दिस्तान बनाए जाने की मांग उठी।
युद्ध खत्म होने पर पश्चिमी दुनिया के सहयोगी देशों ने स्वतंत्र कुर्दिस्तान की मांग छोड़ दी और कुर्दिश
इलाका कई देशों के बीच बंट गया। तुर्की राष्ट्रपति एर्दोगन का शुरू से ही कुर्दिश राष्ट्रवाद के खिलाफ
आक्रामक रुख रहा है। कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी तुर्की और इराक में चरमपंथी और राजनीतिक संगठन है
जिसने लगभग तीन दशकों से तुर्की के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। इसकी वजह से तुर्कियों और कुर्दिश तुर्कों
के बीच खाई और भी गहरी होती गई। 2016 में कुर्दिश समर्थित मीडिया आउटलेट बंद किए गए।
11000 अध्यापकों को नौकरी से निकाल दिया गया और 24 कुर्दी मेयरों की जगह नई नियुक्तियां हुईं।
जनवरी में ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका सीरिया से अपनी फौज हटाना शुरू करेगा। तभी से सीरियाई कुर्दों
को यह डर सताने लगा था कि अमेरिकी सेना की नामौजूदगी में तुर्की उन पर हमला कर सकता है और
उनकी शंका सच साबित हुई है।

तुर्की अपनी सीमा से लगे उत्तर-पूर्व सीरिया में कुर्दों की मौजूदगी को लेकर लंबे समय से नाखुश रहा है।
तुर्क की सेना पहले ही कुर्दिश और यूएस समर्थित सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज के अधिकार क्षेत्र वाले
इलाकों में प्रवेश कर चुकी है लेकिन अब उसका इरादा उत्तरी सीरिया में एक बफर जोन बनाने का है।
इसके पीछे दो मकसद है- अपनी सीमा से कुर्दों को दूर भगाना और उस इलाके में 20 लाख सीरियाई
शरणार्थियों को बसाना। जब अमेरिका की अगुवाई में 1991 में कुवैत से सद्दाम हुसैन की इराकी सेना
को खदेड़ दिया गया तो अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इराकी सेना और इसके नागरिकों से तानाशाह
को सत्ता से बेदखल करने की अपील की लेकिन जब इराकी कुर्द सद्दाम हुसैन के खिलाफ उठ खड़े हुए
तो उन्हें अमेरिका की तरफ से बहुत कम मदद मिली। 2003 में जब इराक पर अमेरिका ने हमला किया
तो एक बार फिर कुर्द अपना योगदान देने के लिए तैयार थे। जब आईएसआईएस ने इराक में अपने पैर
फैलाए तो उस वक्त भी कुर्दिश लड़ाकों ने आतंकी समूह का सफाया करने में मदद की। लेकिन अब
सियासी समीकरण बदलने के बाद अमेरिकी मदद भी धुंधली पड़ती गई। 2018 में जब इराकी फौज ने
आईएसआईएस से लड़कर हासिल किए क्षेत्र को कुर्दों से वापस ले लिया तो अमेरिका शांत रहा। अमेरिकी
सेना के हटते ही उत्तरी सीरिया में मौजूद कुर्दों पर तुर्की हमला करने लगा है।
जनवरी महीने में राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका सीरिया से अपनी फौज हटाना शुरू करेगा
और धीरे-धीरे सारे सैनिक घर अमेरिका लौट आएंगे। इसी वक्त से सीरियाई कुर्दों को यह डर सताने लगा
था कि अमेरिकी सेना की नामौजूदगी में तुर्की उनके खिलाफ हमला कर सकता है। जब रविवार की रात
को ट्रंप ने अचानक से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने का ऐलान किया तो यह डर हकीकत में बदल
गया।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *