विनय गुप्ता
अजीब विरोधाभास है कि उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी है, लेकिन कुछ कोरोना संबंधी नियमों
के साथ उप्र सरकार ने अनुमति दी है। दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। दोनों में 2022 में विधानसभा चुनाव
होने हैं। दोनों राज्य कुंभ मेले के दौरान कोरोना संक्रमण के लाखों मामले देख और झेल चुके हैं। कांवड़ यात्रा के
दौरान भी 4 करोड़ से ज्यादा भक्त सड़कों पर होंगे और हरिद्वार में गंगा-जल लेने को इकट्ठा होंगे। करीब 3.5
करोड़ कांवड़ 2019 में जा चुके हैं। बीते साल भी कोरोना के कारण पाबंदी चस्पा की गई थी। ज्यादातर कांवड़
नौजवान होते हैं। क्यों नौजवान शक्ति को मौत के मुंह में धकेला जा रहा है? आस्था की धज्जियां तो कुंभ के
दौरान ही उड़ा दी गई थीं। बेलगाम भीड़ होगी, तो संक्रमण का खतरा भी उतना ही बढ़ेगा। हरिद्वार उत्तराखंड राज्य
का हिस्सा है।
क्या राज्य सरकार पाबंदी की घोषणा के बावजूद हरिद्वार में असंख्य भक्त लोगों के हुजूम इकट्ठा होने देगी?
नागरिकों की जान और कोरोना संक्रमण को थामना एक सरकार का सरोकार है, क्या दूसरी राज्य सरकार के लिए
लोगों की जान बेमानी, फिजूल है? क्या उसके लिए हिंदू वोट ही पर्याप्त हैं? क्या उप्र सरकार प्रधानमंत्री मोदी,
विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की चेतावनियों और आशंकाओं को भी दरकिनार कर
सकती है? प्रधानमंत्री का कथन उचित है कि पहाड़ों पर भीड़ की मौज-मस्ती, मास्क के प्रति लापरवाही और दो गज
की दूरी नदारद आदि ही ‘तीसरी लहर’ को आमंत्रण दे रही हैं। कोविड की लहरें खुद नहीं आतीं। बेपरवाह लोग ही
संक्रमण की लहरों को न्योता दे रहे हैं।
हमें लगता है कि लापरवाह और गैर-जिम्मेदार भीड़ के लिए प्रधानमंत्री तक की अपील, चिकित्सकों और विशेषज्ञों
के आग्रह और आह्वान अर्थहीन हैं, लिहाजा ऐसी भीड़ के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या करने के
प्रयास जैसे मामले दर्ज किए जाने चाहिए, क्योंकि भीड़ आम जनता को मारने या बीमार करने की परोक्ष कोशिशें
कर रही है। सिर्फ यही नहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनिया भर में कोविड के 30-40 फीसदी तक बढ़ रहे मामलों
को लेकर चिंतित है। भारत भी चपेट में है, क्योंकि अब भी मंगलवार की रात तक, एक ही दिन में, संक्रमण के
करीब 39,000 मामले दर्ज किए गए हैं। जबकि सोमवार रात्रि तक मामले करीब 31,000 थे। यानी मामले लगातार
बढ़ रहे हैं। बेशक मई में संक्रमण की ‘पीक’ की तुलना में आंकड़े बेहद कम हैं, लेकिन संक्रमण की दूसरी लहर को
आज भी समाप्त नहीं माना जा सकता। इनके अलावा, आईएमए ने आगाह करने वाला बयान जारी किया है कि
यदि पहाड़ों पर सैलानियों और लोगों की भीड़ इसी तरह जारी रही, तो कोरोना की तीसरी लहर हमारे दरवाजे पर
खड़ी है! दूसरी लहर में 1 मार्च से अभी तक 2.54 लाख से अधिक मौतें हो चुकी हैं।
संक्रमित मामले भी करीब 5.50 लाख हो चुके हैं। संक्रमित मामले तो सिर्फ 13 दिन के ही हैं। कुल मौतें करीब
4.12 लाख हो चुकी हैं। कई राज्य ऐसे हैं, जो मौत के छूट गए आंकड़ों को अब दर्ज करा रहे हैं, लिहाजा मौत का
आंकड़ा विकराल लगता है। फिर भी पहली लहर से करीब 1 लाख मौतें ज्यादा दर्ज की जा चुकी हैं। बेशक देश में
संक्रमण घट रहा है, लेकिन केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और ओडिशा पांच राज्य ऐसे हैं, जहां जुलाई में
ही कोविड के करीब 73.4 फीसदी नए मामले दर्ज किए गए हैं। केरल और महाराष्ट्र से ही करीब 51 फीसदी
संक्रमित मामले जुलाई में अभी तक सामने आए हैं। क्या किसी भी सूरत में माना जा सकता है कि कोविड का
प्रकोप समाप्त हो चुका है? पूर्वोत्तर के मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में भी कोविड के केस बढ़ रहे
हैं। प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल संवाद किया और उन्हें परामर्श दिए कि कोविड को
कैसे थामा जा सकता है। गौरतलब यह है कि अब भी 13 राज्यों के 55 जिलों में संक्रमण की दर 10 फीसदी से
ज्यादा है, लिहाजा भारत सरकार ने एक दर्जन केंद्रीय टीमें राज्यों में भेज रखी हैं। बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय ने
कांवड़ यात्रा पर सख्त एतराज जताते हुए स्वतः संज्ञान लिया है और उप्र सरकार को नोटिस भेज कर जवाब मांगा
है। नोटिस केंद्र और उत्तराखंड सरकारों को भी भेजे गए हैं। हमें लगता है कि सुप्रीम अदालत दखल देगी और कांवड़
यात्रा पर रोक लगाने का आदेश देगी। हम प्रतीक्षा करेंगे, क्योंकि यह देश के नागरिकों की जान का सवाल है।