संयोग गुप्ता
तिरुपति स्थित भगवान श्री वेंकटेश्वर को ही बालाजी कहा जाता है। इनके मुख्यतः तीन दर्शन होते हैं। पहला दर्शन
विश्व रूप दर्शन कहलाता है। यह प्रातः काल में होता है। दोपहर में दूसरा दर्शन और रात्रि में तीसरा दर्शन होता है।
सामूहिक दर्शनों के अलावा अन्य दर्शन हेतु शुल्क निर्धारित है। बालाजी का मंदिर तीन परकोटों से घिरा है। परकोटों
में गोपुर बने हैं। उस पर स्वर्ण कलश स्थापित है। स्वर्णद्वार के सामने तिरुमहामण्डपम् नामक मण्डप है। वहां एक
सहस्त्र स्तम्भ मण्डप भी है। मंदिर के सिंहद्वार नामक प्रथम द्वार को पडिकावलि कहते हैं। इस द्वार के भीतर
वेंकटेश्वर स्वामी के भक्त नरेशों एवं रानियों की मूर्तियां बनी हैं।
प्रथम द्वार तथा द्वितीय द्वार के मध्य की प्रदक्षिणा को संपदिंग प्रदक्षिणा कहते हैं। यहां विरज नामक एक कुंआ
है। बालाजी के चरणों के नीचे विरजा नदी है उसी की धारा इस कूप में आती है। इसकी प्रदक्षिणा में पुष्पकूप है।
बालाजी को मुख्य रूप से तुलसी पुष्प चढ़ाया जाता है। इस प्रसाद को किसी को नहीं दिया जाता। उसे पुष्प कूप में
डाल दिया जाता है। केवल वसन्त पंचमी को तिरुन्चानूर में पद्मावती जी को भगवती के चढ़े पुष्प अर्पित किये
जाते हैं।
द्वितीय द्वार को पार करने पर जो प्रदक्षिणा है उसे विमान प्रदक्षिणा कहते हैं। इसमें भोज नृसिंह, श्री वरदराज
स्वामी, श्री रामानुजाचार्य, सेनापति निलय, गरुड़ तथा गर्भगृह के चारों तरफ प्रदक्षिणा है। उसे वैकुण्ठ प्रदक्षिणा
कहा जाता है। पोष शुक्ल एकादशी को छोड़कर यह मार्ग अन्य समय में बंद रहता है। भगवान के मंदिर के सामने
स्वर्ण मण्डित स्तम्भ है। वहां तिरुभट्ट मण्डपम् नाम का सभामण्डप है। द्वार पर जय-विजय की मूर्तियां हैं। इसी
मण्डप में एक ओर हुंडी नामक बंद हौज है जिसमें बालाजी को अर्पित करने के लिए लाया गया द्रव्य एवं आभूषण
आदि डाला जाता है।
जगमोहन मंदिर के भीतर 4 द्वार पार करने पर पांचवें द्वार के भीतर श्री बालाजी की पूर्वाभिमुख मूर्ति है। मूर्ति
काले रंग की है। वे शंख, चक्र, गदा, पद्म लिए चतुर्भुज रूप में खड़े हैं। मूर्ति लगभग 7 फीट की है। दोनों ओर
श्रीदेवी और भू-देवी की मूर्ति है। भगवान को भीमसेनी कपूर का तिलक लगाया जाता है। तिलक से उतरा चन्दन
प्रसाद के रूप में बिकता है। यात्री उसे आंखों में लगाते हैं। बालाजी की मूर्ति में एक स्थान पर चोट का चिन्ह है।
वहां दवा लगाई जाती है। कहा जाता है कि एक भक्त प्रतिदिन भगवान के लिए दूध लाता था। वृद्ध होने पर वह
आने में असमर्थ हो गया। भगवान स्वयं जाकर चुपचाप दूध पी आते थे। गाय को दूध न देते देख भक्त ने छिपकर
जब देखा तो पाया कि एक आदमी गाय का सारा दूध पी जाता है। भक्त ने चोर समझ कर उसे डंडे से मारा।
भगवान ने उसे दर्शन दिया। यही डंडा लगने के चिन्ह मूर्ति में अंकित हैं।
वेंकटाचल पर्वत पर कई अन्य तीर्थ हैं जिनके दर्शन पूजन से पुण्य प्राप्त होता है। पर्वत पर ही पाण्डव तीर्थ,
पापनाशन तीर्थ, आकाश गंगा, जाबालि तीर्थ, वैकुण्ठ तीर्थ, चक्र तीर्थ, कुमार धारा, राम कृष्ण तीर्थ और घोण
तीर्थ हैं। इन तीर्थों के आसपास कई सुंदर झरने तथा मंदिर हैं। यहां यात्री अपार आनंद का अनुभव करते हैं।