-सनत जैन-
पराजित अमेरिका ने अफगानिस्तान में एक बार फिर साबित कर दिया है कि हथियारों और पैसों के बल पर कोई
युद्ध नहीं जीता जा सकता है। हां फूट डालो और राज करो की नीति हमेशा सत्ता को बरकरार रखने में कारगर
साबित होती है, जो जीत की ओर ले जाती है. अमेरिका 20 सालों तक अफगानिस्तान में 70 लाख डॉलर खर्च करने
के बाद भी जिन तालिबानियों और आतंकवादियों को नियंत्रित नहीं कर पाया। अब वही तालिबानी और आतंकवादी
सत्ता में काबिज होने के लिए कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ने पर आमादा हैं। मुल्ला बरादर और हक्कानी समूह के
आतंकवादी आपस में एक दूसरे को मार रहे हैं। अमेरिका ने जाते-जाते सारे गुटों को हथियारों एवं सत्ता की चाबी का
लोभ दिखाकर एक दूसरे के खिलाफ लड़ाकर अपने वर्चस्व को अभी भी बनाए रखा है।
पराजित अमेरिका के अफगानिस्तान से पलायन करने के बाद चीन, रूस, पाकिस्तान अफगानिस्तान की प्राकृतिक
संपादा पर काबिज होने के लिए आतंकवादी संगठनों के खलीफाओं को आर्थिक एवं सैन्य मदद पहुंचाने का काम कर
रहे हैं, जिसके कारण आतंकवादी संगठन कई गुटों में बंट कर सत्ता पर काबिज होने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
पाकिस्तान भी इस लूट और गेंगवार में शामिल हो गया है।
अमेरिका ने पिछले 20 सालों में जिस तरह से अमेरिका से आतंकवादियों में अलगाववाद की जो विष बेल बोई है।
उससे अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति, और 14 अगस्त 1947 का वह दिन याद आता है। जब अंग्रेज
भारत और पाकिस्तान को हिंदू- मस्लिम और पूर्वी बंगाल-पश्चिमी बंगाल की सीमाओं का बंटवारा कर लड़वाकर
भारत छोड़कर चले गए थे। हिंदू और मुस्लिम के बीच विभाजन कराया था। जिस तरह का खूनी रक्त-पात भारत
और पाकिस्तान में हुआ था अब लगभग वही स्थिति अफगानिस्तान में देखने को मिल रही है। सत्ता में काबिज होने
के लिए सभी आतंकवादी संगठन सत्ता में काबिज होने लड़ रहे हैं। लाखों अफगानिस्तानी अपने देश से निर्वासित
होकर शरणार्थी के रूप में दूसरे देशों में शरण लेने को विवश हो रहे हैं। करोड़ों अफगानिस्तानी को लेकर नागरिक
अपने जीवन को सुरक्षित बनाए रखने के लिए विभिन्न मोर्चों पर लड़ने के लिए विवश हैं। अफगानिस्तान में
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तरह-तरह की साजिशें रची जा रही हैं। अफगानिस्तान के संसाधनों पर बड़े-बड़े देश जिनमें
अमेरिका, रूस, चीन इत्यादि तथा पड़ोसी देश पाकिस्तान की नज़र है। बिल गेट्स सहित दुनिया भर के उद्योगपति
भी अफगानिस्तान की इस स्थिति का लाभ उठाकर वहां के संसाधनों को पाने के प्रयास में हैं। वहां लिथियम का
बड़ा भंडार है। यही कारण है कि अपने मंसूबे पूरे करने के लिए सभी अफगानिस्तान के नागरिकों के लिए संकट का
कारण बन रहे हैं। आतंकवादी संगठनों के हाथ में सत्ता सौंपने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ, सुरक्षा परिषद तथा
अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका को लेकर भी अब सवाल उठने लगे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था के इस दौर में
तलवार के बल पर सत्ता पर काबिज होने का जो उदाहरण अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता के रूप में सामने आया
है। वह सारी दुनिया के लिए खतरनाक स्थिति का संकेत कर रहा है। ऐसा लग रहा है हम एक बार फिर सैकड़ों वर्ष
पुराने बर्बर युग की ओर लौट रहे हैं, जहां आतंक के बल पर सत्ता पर काबिज होने का इतिहास भरा पड़ा है।