तरफजहां राष्ट्रमंडल खेल में भारत के बेहतरीन प्रदर्शन की चहुंओर र्चचा हो रही है वहीं एक खबर थोड़ी परेशान करने वाली और चिंता का सबब भी है। देश में खेल संस्कृति के विकास के लिए महत्त्वाकांक्षी योजना ‘‘खेलो इंडिया स्कूल गेम्स’ के कई विजेता (अंडर-17) डोपिंग के भंवरजाल में फंस गए हैं। दरअसल, हाल ही में नाडा द्वारा दी गई रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि कम-से-कम 12 खिलाड़ियों ने प्रतिबंधित दवाओं का उपयोग किया है, यही नहीं सैम्पलिंग के पूरे परिणाम आने से यह संख्या बढ़ने का भी अंदेशा है।डोपिंग को लेकर कड़े अंतरराष्ट्रीय कानून इस समय प्रभाव में हैं, ऐसे में अपने खिलाड़ियों को इससे बचाया रखना किसी भी देश की सर्वोच्च प्राथमिकता में शुमार रहता है। भारत ने खेलों में डोपिंग के विरुद्ध ‘‘कोपेनहेगन घोषणा पत्र’ पर हस्ताक्षर किए हैं और खेलों में डोपिंग की समस्या से निपटने के लिए वह विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) के दिशा-निर्देशों का अनुपालन करती है। भारत में राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) का गठन किया गया है, जो कि देश में डोपिंग रोधी से संबंधित परीक्षणों के आयोजन परिणाम प्रबंधन और निष्कर्ष कार्यक्रमों के लिए नोडल एजेंसी है। गौरतलब है कि ओलंपिक जैसी विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में भारत की स्थिति बद-से-बदतर रही है और अब तक जीते गए पदकों का आंकड़ा महज 28 तक ही पहुंच सका है। साल 2016 रियो ओलंपिक में 119 खिलाड़ियों का दल भेजा गया था। इस दल को भारत को महज 2 पदक ही मिले और वह 67वें स्थान पर रहा। रियो में पीवी सिंधू ने सिल्वर और साक्षी मलिक ने ब्रॉन्ज पदक जीता था। जाहिर है स्वर्णिम सफलता का ख्वाब एक बार अधूरा रह गया था। इस स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार कृतसंकल्पित है। इस समय भारत का खेल परिदृश्य विकास के नये दौर में प्रवेश कर चुका है और सरकार इस और गंभीरता से काम भी कर रही है। ऐसे में नाडा की ताजा रिपोर्ट भारत की खेल तैयारियों के लिए गहरा झटका है। प्रतिबंधित दवाओं के सेवन से पॉजिटिव पाए गए खिलाड़ियों में चार पहलवान और तीन बॉक्सर हैं। इसके साथ ही फंसने वाले अन्य खिलाड़ियों में दो जिम्नास्टिक के और एक-एक जूडो, वॉलीबाल, एथलेटिक्स से संबंधित हैं। इन सभी खिलाड़ियों ने ‘‘खेलो इंडिया स्कूल गेम्स’ के दौरान स्वर्ण और रजत पदक जीते थे। इनमें चार उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा के दो-दो पदक विजेता भी हैं। खेलों का नशा उपलब्धियों और कीर्तिमानों के नये आयाम गढ़ता है, वहीं इस पर डोपिंग का साया पड़ते ही नैतिकता के उच्च मानक धराशाई हो जाते हैं। खेलों का स्तर उसके खिलाड़ियों की कड़ी मेहनत, सतत अभ्यास और न हार मानने की कड़ी प्रतिस्पर्धा से बढ़ता है। लेकिन खिलाड़ियों की हर हाल में पदक जीतने की जिद कभी-कभी जानलेवा बन जाती है और वे अपने दमखम को बढ़ाने के लिए डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं। पूरी दुनिया के साथ भारत में भी यह समस्या काफी पुरानी है। एथलेटिक्स, बैडमिंटन, बास्केटबाल, मुक्केबाजी, फुटबाल, जिम्नास्टिक्स, हॉकी, जूडो, कबड्डी, खो-खो, निशानेबाजी, तैराकी, वॉलीबाल, भारोत्तोलन, कुश्ती जैसे पारम्परिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार प्रयासरत है। इस साल ‘‘खेलो इंडिया’ का आयोजन 31 जनवरी से 8 फरवरी तक राष्ट्रीय राजधानी में किया गया था, जिसमें 17 वर्ष से कम उम्र के युवाओं ने इसमें भागीदारी की थी। इस प्रतियोगिता से बेहतरीन प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें देश के प्रतिनिधित्व के लिए तैयार करने की एक वृहत योजना भी बनाई गई है, जिसमें एक उच्चस्तरीय समिति द्वारा युवा खेल प्रतिभाओं की पहचान कर और उन्हें आठ सालों तक पांच लाख रुपये प्रतिवर्ष की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान भी किया गया है। नाडा की जांच में डोपिंग में फंसे ऐसे ही प्रतिभाशाली खिलाड़ी है। वाडा हर साल प्रतिबंधित दवाओं की सूची जारी करता है, जिनके विश्व के तमाम देशों में खेलों के दौरान प्रयोग पर रोक होती है। पहली जांच में ही दोषी पाए जाने पर खिलाड़ी पर वाडा सभी खेल प्रतियोगिता में दो वर्षो तक प्रतिबंध लगा सकता है। आगामी ओलंपिक साल 2020 में जापान के टोक्यों में आयोजित होने वाले हैं। ऐसे में अनेक प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के डोपिंग में फंसने से भारत की तैयारियों को गहरा झटका लगा है और अफसोस इससे उबरने का अब समय भी नहीं है। इन सबसे बचाव का एकमात्र रास्ता जागरूकता है। ग्रास रूट लेवल तक इस बात को प्रचारित करने से ही नौनिहालों के कॅरियर को बचाया जा सकता है।