डेयरी विकास और पशुधन, गरीबों के लिए आय का साधन

asiakhabar.com | February 15, 2022 | 5:03 pm IST
View Details

-सत्यवान सौरभ-
देश के लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए डेयरी आय का (पशुपालन के जरिये दूध व्यवसाय) एक महत्वपूर्ण माध्यमिक
स्रोत बन गया है और विशेष रूप से छोटे और महिला किसानों के लिए रोजगार और आय पैदा करने के अवसर
प्रदान करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज देश में अधिकांश दूध का उत्पादन छोटे, सीमांत किसानों
और भूमिहीन मजदूरों द्वारा पाले गए जानवरों द्वारा किया जाता है। भारत में कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 48
प्रतिशत दूध या तो उत्पादक स्तर पर उपभोग किया जाता है या ग्रामीण क्षेत्र में गैर-उत्पादकों को बेचा जाता है।
शेष 52 फीसदी दूध शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को बिक्री के लिए उपलब्ध अतिरिक्त बिक्री योग्य है। अनुमान है
कि बेचे गए दूध का लगभग 40 फीसदी संगठित क्षेत्र (अर्थात 20 फीसदी सहकारी और निजी डेयरियों द्वारा) और
शेष 60 फीसदी असंगठित क्षेत्र द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
सहकारी स्तर पर ठोस प्रयासों के माध्यम से दूध की आपूर्ति में भारी वृद्धि को श्वेत क्रांति के रूप में जाना जाता
है। ऑपरेशन फ्लड के अड़तालीस साल बाद – जिसने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बना दिया –
भारत कृषि उपज और उत्पादकता में एक और सफलता की तलाश में है। श्वेत क्रांति ने दूध और दूध उत्पादों के
लिए डेयरी फर्मों की विपणन रणनीति को प्रभावित किया है। भारत 2019 में सबसे बड़े दूध उत्पादक और
उपभोक्ता के रूप में उभरा है। नीति आयोग का अनुमान है कि देश में अपने दूध उत्पादन को 2033-34 में 176
मिलियन टन के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 330 मिलियन मीट्रिक टन कर लेगा। वर्तमान में भारत में डेयरी उत्पादों
के विश्व उत्पादन का 17 फीसदी हिस्सा है, जो 1998 में संयुक्त राज्य अमेरिका को पछाड़कर दुनिया के सबसे बड़े
डेयरी उत्पाद के रूप में है। यह सब ऑपरेशन फ्लड द्वारा हासिल किया गया था जो 1970 के दशक में शुरू किया
गया था। भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 1960 में 126 ग्राम प्रतिदिन से बढ़कर 2021 में 406 ग्राम
प्रतिदिन हो गई है।
ये सब हासिल करने में डेयरी क्षेत्र के लिए सरकार की पहल ने अहम भूमिका निभाई है; जैसे गोजातीय प्रजनन के
लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय गोजातीय आनुवंशिक केंद्र, गुणवत्ता चिह्न, राष्ट्रीय कामधेनु
प्रजनन केंद्र, ई-पशुहाट पोर्टल, डेयरी विकास के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीडीडी), डेयरी उद्यमिता विकास योजना
(डीईडीएस), राष्ट्रीय डेयरी योजना,डेयरी प्रसंस्करण और बुनियादी ढांचा विकास कोष (डीआईडीएफ), डेयरी गतिविधियों
में लगे डेयरी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों का समर्थन करना (एसडीसीएफपीओ) वो योजनाएं है
जिनसे पशुपालन के प्रति देश में लोगों की रूचि में बढ़ोतरी हुई है। फिर भी बहुत सी ऐसी बातें है जिनमें सुधार से
इस व्यवसाय को और ज्यादा लाभ वाला और रुचिपूर्ण बनाया जा सकता है, आज देखें तो भारतीय मवेशियों और
भैंसों की उत्पादकता सबसे कम है। इसी तरह, संगठित डेयरी फार्मों की कमी है और डेयरी उद्योग को वैश्विक
मानकों पर ले जाने के लिए उच्च स्तर के निवेश की आवश्यकता है। कृषि पशुओं की उत्पादकता में सुधार प्रमुख
चुनौतियों में से एक है; विभिन्न प्रजातियों की अनुवांशिक क्षमता को बढ़ाने के लिए विदेशी प्रजातियों के साथ
स्वदेशी प्रजातियों का क्रॉस ब्रीडिंग केवल एक सीमित सीमा तक ही सफल रहा है।
यह क्षेत्र उभरती बाजार शक्तियों के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भागीदारी बढ़ाने के लिए अवसर पैदा करेगा
इसलिए कड़े खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानदंडों की आवश्यकता होगी। इसके व्यवसायीकरण को गति देने के लिए
बाजारों तक पहुंच महत्वपूर्ण है। बाजारों तक पहुंच की कमी किसानों को उन्नत प्रौद्योगिकियों और गुणवत्ता इनपुट

को अपनाने के लिए कमजोर कर सकती है। इसलिए बाजार हिस्सेदारी में उत्पन्न होने वाले अवसरों और खतरों को
देखते हुए डेयरी फार्म की क्षमताओं और उनके संसाधनों का उपयोग कैसे किया जाये पर ध्यान देना अति आवश्यक
है। अनुबंध/कॉर्पोरेट डेयरी और उभरते वैश्विक डेयरी व्यापार को डेयरी लक्ष्य खंड में विस्तारित करने के लिए
शामिल करना आवश्यक है।
छोटे और मध्यम आकार के किसानों के लिए पंचायत स्तर पर शिक्षा और प्रशिक्षण, पशु उत्पादन को सब्सिडी देना
और पशु बाजारों को प्रोत्साहित करना, उत्पादित दूध के लिए रसद की सुविधा, पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान में विशेष
रूप से उन्नत पशु चिकित्सा सुविधा, ग्रामीण स्तर पर उत्पादित डेयरी की खरीद के लिए निजी क्षेत्र की फर्म को
प्रोत्साहित करना, पशु खरीद के लिए छोटे और मध्यम स्तर के किसानों के लिए कम ब्याज ऋण, ग्रामीण महिलाओं
को पशुपालन के लिए प्रोत्साहित करना, एंथ्रेक्स, फुट एंड माउथ, पेस्ट डेस रूमिनेंट्स आदि रोगों के खिलाफ मवेशियों
का बीमा, पेशेवर प्रबंधन के साथ ग्रामीण स्तर पर युवाओं के प्रभावी प्रशिक्षण के माध्यम से डेयरी उद्यमियों का
पोषण आदि के साथ-साथ उन्नत कृषि पद्धतियां, स्वच्छता, पीने के पानी और चारे की गुणवत्ता इन सभी की
आवश्यकता है। तभी ये व्यवसाय किसानों के लिए सच्चा धंधा साबित होगा ।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *