जपा और कांग्रेस के बीच चुनाव के दौरान डाटा प्रदान करने वाली एक कंपनी की सेवा को लेकर जो आरोप-प्रत्यारोप हो रहे हैं, उनका मूल तत्व यह है कि दुनिया में चुनाव को प्रभावित करने के लिए इस कंपनी ने डाटा चोरी की है। हम देखते हैं कि चुनाव के दौरान ऐसी अनेक कंपनियां या फर्म पार्टयिों, नेताओं और उम्मीदवारों से संपर्क करके मतदाताओं का डाटा यानी उनकी पूरी सूचना देने का दावा करती हैं। पार्टयिां, नेता और उम्मीदवार ऐसी संस्थानों की सेवाएं लेतीं भी हैं। अगर मतदादा पहचान पत्र से या अन्य मान्य स्रेतों से किसी का नाम, पता आदि प्रदान किया जाए, किसी पार्टी या उम्मीदवार को सेवा देने वाली कंपनियां उनसे किसी तरह संपर्क कर किसी पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने के लिए अनुरोध करें यहां तक कोई बुराई नहीं है। किंतु विवाद में घिरी कंपनी कैम्ब्रिज एनालिटिका का मामला जरा दूसरा है। इसने फेसबुक से उपयोगर्ताओं की पूरी जानकारी ली। फेसबुक उपयोग करने वाले अपने राजनीतिक विचार भी लिखते हैं या बोलते हैं। फेसबुक पर कोई ऐसा ऐप बनाकर प्रस्तुत किया जाए, जिसमें उपभोगकर्ताओं से और जानकारी ली जा सके और यह पूरी जानकारी किसी पार्टी या उम्मीदवार को या उसके लिए चुनाव अभियान चलाने वालों को बेच दिया जाए तो इसके निश्चय ही खतरनाक प्रवृत्ति कहेंगे। जो सूचना है उसके अनुसार कैम्ब्रिज एनालिटिका ने 2016 में डोनाल्ड ट्रंप के लिए ऐसा ही किया था। इससे ट्रंप को चुनावी लाभ पहुंचाया गया। इस कंपनी पर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के अलावा केन्या, नाइजीरिया एवं अन्य देशों के चुनावों को प्रभावित करने का आरोप है। हालांकि कंपनी ने अपने सीईओ को निलंबित कर दिया है, लेकिन इससे मामला खत्म नहीं हो सकता। फेसबुक के भारत में 20 करोड़ से ज्यादा उपयोगकर्ता हैं। अगर यहां किसी ऐप में क्विज के द्वारा या अन्य तरीकों से उपयोगकर्ताओं को उनके राजनीतिक रु झानों सहित किसी पार्टी को जानकारी मुहैया कराई गई तो इससे चुनाव निश्चित रूप से प्रभावित होंगे। फेसबुक दावा करता है कि उसके यहां उपयोगकर्ताओं की पूरी जानकारी सुरक्षित है। पर यह दावा गलत साबित हुआ है। प्रश्न है कि क्या फेसबुक के साथ एनालिटिका का कोई व्यावसायिक करार है या उसने फेसबुक को भी अंधेरे में रखा? भारत ने उसे भी चेतावनी दी कि उसके प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने वाले भारतीयों के डाटा की चोरी या दुरु पयोग के प्रयास को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।