शिशिर गुप्ता
अमेरिकी राजनीति में दो बार महाभियोग प्रस्ताव लाए गए, दोनों में सत्तापक्ष की हार हुई और विपक्ष अपने मकसद
में कामयाब हुआ। अब, तीसरा महाभियोग मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर लाया गया है। यह बात सच है कि
राजनीति चाहें देशी हो या विदेशी उसमें तय किए गए औहदे स्थाई नहीं होते? सियासी तूफान जब आता है तो
अपने साथ बहा ले जाता है। दुनिया के प्रचंड शक्तिशाली मुल्क अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ भी कुछ
ऐसा ही होने वाला है, ऐसा अंदेशा है। उनपर महाभियोग लाया जा रहा है। शायद जिसकी उन्होंने कभी कल्पना तक
नहीं की होगी। डोनाल्ड ट्रंप पर महाभियोग का प्रस्ताव हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में पास हो चुका है। महाभियोग के
पास होते ही उनकी सियासी जमीन नीचे खिसकने लगी है। राष्ट्रपति पर आरोप लगा है कि उन्होंने अपने निजी
फायदे के लिए राष्ट्रपति पद का बेजा इस्तेमाल किया। दुरूपयोग करने का आरोप लगा है हालांकि इससे निपटने के
लिए वह तिगड़म भिड़ा रहे हैं।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप महाभियोग प्रस्ताव की लड़ाई को जीतने के लिए अपने मित्र देशों जैसे भारत से भी उम्मीद
लगाए हैं। दरअसल, कुछ सीनेट सदस्य ऐसे भी होते हैं जो दूसरे अन्य देशों की तरफ झुकाव रखते हैं। अमेरिका में
कुछ सांसद ऐसे हैं जो भारतवंशी हैं। इसलिए राष्ट्रपति ट्रंप को उम्मीद है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती
ऐसे मौके पर काम आएगी। अमेरिकी महाभियोग भी भारतीय अविश्वास प्रस्ताव की तरह होता है। भारतीय संसद में
जब किसी सरकार के खिलाफ ऐसा होता है तो हुकूमत के मुखिया और उनके करीबी लोग बचाने के लिए हर जुगत
में लग जाते हैं। कमोबेश, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके लोग भी ऐसा ही कर रहे हैं। लेकिन वहां खुलेआम
सांसदों की खरीद-फरोख्त नहीं होती। सबकुछ कायदे-कानूनों के मुताबिक किया जाता है। जो भी सांसद ऐसी किसी
गतिविधियों में पाया जाता है उसे मतदान से प्रतिबंधित कर दिया जाता है। ऐसे मौकों पर सदस्यों को अपने पसंद
की स्वतंत्रता दी जाती है।
अमेरिकी महाभियोग के इतिहास की बात करें तो इससे पहले दो मर्तबा अलग-अलग राष्ट्रपतियों के खिलाफ
महाभियोग प्रस्ताव सिनेट में लाए गए जिसमें दोनों में हार हुई थी। पूर्व राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन और बिल क्लिंटन
के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव पास हुआ था। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के तीसरे ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जो
महाभियोग प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं। उनको इस बात का कहीं न कहीं डर जरूर है कि उनके साथ भी
पुनरावर्ति न हो जाए। राष्ट्रपति ट्रंप पर फिलहाल पहले पायदान हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में प्रस्ताव पास हुआ है।
अब यह प्रस्ताव सीनेट में जाएगा। वहां उनपर लगे सभी आरोपों का बिंदुवार तरीके से एक-एक करके ट्रायल किया
जाएगा। जब ट्रायल प्रक्रिया पूरी होगी। तब सीनेट में सभी संसद सदस्यों द्वारा मतदान कराया जाएगा। मतदान में
अगर प्रस्ताव गिर गया, तो उनकी कुर्सी बची रहेगी। पर, खुदा न खास्ता प्रस्ताव नहीं गिरा तो कुर्सी से हाथ धोना
पड़ेगा। उसके बाद उनकी कुर्सी को उप-राष्ट्रपति के अधीन हो जाएगी। सीनेट सदस्यों और उनके नंबरों पर गौर करें
तो इस वक्त कुल 100 सदस्य हैं, इनमें से 53 सदस्य रिपब्लिकन पार्टी के हैं। 45 डेमोक्रेट्स पार्टी के और दो
सदस्य निर्दलीयों की भूमिका में हैं।
गौरतलब है, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर यूक्रेन विवाद को लेकर उत्पन्न हुई स्थिति के बाद स्पीकर नैन्सी पॉलोसी ने
उनपर पद का दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए महाभियोग लाने का निर्णय लिया। उसके बाद सिनेट में महाभियोग
लाने की प्रक्रिया शुरू की गई। सदस्यों के बीच बकायदा मतदान कराया गया। वहां के कानून और संसदीय
आर्टिकलों के मुताबिक महाभियोग प्रस्ताव पर मुहर लगी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरोधी अब उनके खिलाफ और
और मुखर हो गए हैं। क्योंकि चुनाव सिर पर है। चुनाव के ऐन वक्त पर महाभियोग लाने का मतलब यही होता है
कि हवा का रूख मौजूदा सरकार के खिलाफ बहना। खैर, महाभियोग प्रस्ताव पास होने के बाद फिलहाल डोनाल्ड ट्रंप
इस उम्मीद में है कि सीनेट के भीतर भी वह सही तरीके से महाभियोग की प्रक्रिया को पूरा कर लेंगे। क्योंकि शुरू
में निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में नहीं किया गया था। तभी महाभियोग का प्रस्ताव दोबारा से
लाया गया। अमेरिका में कानून है कि जब किसी सिटिंग सरकार के खिलाफ ऐसा किया जाता है तो राष्ट्रपति की
उस वक्त भूमिका निष्क्रिय मानी जाती है। लेकिन विपक्षी पार्टियों का आरोप है महाभियोग के वक्त राष्ट्रपति
डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका पूरी तरह से सक्रिय थी। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से दखल दिया था।
दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने से पहले तक अमेरिका के प्रमुख व्यवसायी रहे हैं। कई क्षेत्रों में उनका
व्यवसायी कारोबार फैला हुआ है। वह राष्ट्रपति जरूर बन गए, पर उस मानसिकता से बाहर नहीं निकल सके। उन्हें
राष्ट्रपति के औहदे और राजनीति में भी व्यवसाय ही दिखता है। उनका यही तरीका विरोधियों को शुरू से अखर रहा
है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हमेशा झूठ बोलते हैं ऐसी खबरें यदा-कदा वहां की मीडिया में चलती ही रहती हैं। अमेरिका
की तकरीबन सभी विपक्षी पार्टियां बीते एकाध महीनों से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को मात देने के लिए एकजुट हो गई
हैं। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में तो विपक्षी पार्टी डेमोक्रेट्स के पास बहुमत था, लेकिन सीनेट में नहीं है।
अमेरिका में पिछले वर्ष मेयर चुनाव हुए जिसमें डेमोके्रटे्स पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था। उसके बाद खुद
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लगने लगा था कि मुल्म की सियासी हवा उनके खिलाफ बहने लगी है। बहरहाल, हाउस
ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में जो दो प्रस्ताव डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ लाए गए हैं उसमें 230-197, 223-198 वोट मिले।
फिलहाल यह प्रस्ताव कार्यालय का दुरूपयोग करने और सरकारी कामकाज में कांग्रेस को नजरअंदाज करने का रहा।
खैर, अब यह देखने वाली बात होगी कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कुर्सी बचेगी या जाऐगी? उनके खिलाफ
महाभियोग की लड़ाई का दंगल अगले साल छह जनवरी के बाद शुरू होगा। प्रक्रिया को एक-दो सप्ताह में ही पूरा
करना होगा। क्योंकि फरवरी माह से ही अमेरिकी स्टेटों में प्राइमरी चुनाव आरंभ हो जाएंगे। विपक्षी पार्टी डेमोक्रेट्स
को उम्मीद है कि किसी भी राष्ट्रपति के खिलाफ लाए जा रहे तीसरे महाभियोग में भी सफलता मिलेगी। रिजल्ट
अगर मौजूदा राष्ट्रपति के खिलाफ आता है तो विपक्षी पार्टी को बड़ा फायदा होगा। क्योंकि आगामी चुनाव में उनको
सीधे तौर पर लाभ मिल सकेगा। अमेरिकी चुनाव में भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। क्योंकि
लाखों की संख्या में भारतवंशी वहां रहते हैं। इसलिए महाभियोग की लड़ाई में भी ट्रंप को भारत से काफी उम्मीदें
हैं।