टैक्स कटौती से नहीं होगा विकास

asiakhabar.com | October 15, 2019 | 4:53 pm IST
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विनय गुप्ता

बीते बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कंपनियों द्वारा अदा किए जाने वाले आयकर, जिसे
कारपोरेट टैक्स कहा जाता है, उसे लगभग 35 प्रतिशत से बढ़ाकर 43 प्रतिशत कर दिया था। उन्होंने
कहा था कि अमीरों का दायित्व बनता है कि देश की जरूरतों में अधिक योगदान करें। बीते माह उन्होंने
अपने कदम को पूरी तरह वापस ले लिया और कंपनियों द्वारा अदा किए जाने वाले आयकर को घटाकर
लगभग 33 प्रतिशत कर दिया है। इस उलटफेर से स्पष्ट होता है कि आयकर की दर का आर्थिक विकास
पर प्रभाव असमंजस में है। यदि आय कर बढ़ाया जाता है तो इसका प्रभाव सकारात्मक भी पड़ सकता है
और नकारात्मक भी। यदि राजस्व का उपयोग घरेलू माल की खरीद से निवेश करने के लिए किया गया,
जैसे देश में बनी सीमेंट और बजरी से गांव की सड़क बनाई गई, तो इसका प्रभाव सकारात्मक पड़ेगा।
इसके विपरीत यदि उसी राजस्व का उपयोग राफेल फाइटर प्लेन खरीदने के लिए अथवा सरकारी कर्मियों
को ऊंचे वेतन देने के लिए किया गया तो प्रभाव नकारात्मक पड़ सकता है। कारण यह कि राफेल फाइटर
प्लेन खरीदने से देश की आय विदेश को चली जाती है जैसे गुब्बारे की हवा निकाल दी जाए। मैं राफेल
फाइटर प्लेन का विरोध नहीं कर रहा हूं, लेकिन इसके पीछे जो आर्थिक गणित है वह आपके सामने रख
रहा हूं। यदि सरकारी कर्मियों को ऊंचे वेतन दिए जाते हैं तो इसका एक बड़ा हिस्सा विदेशी माल जैसे
स्विट्जरलैंड की बनी चौकलेट खरीदने में अथवा विदेश यात्रा में खर्च हो जाता है जिससे आर्थिक विकास
की दर पुनः गिरती है। देश में मांग उठ रही है कि व्यक्तियों द्वारा देय आयकर में भी कटौती की जाए।
इसका भी प्रभाव सकारात्मक पड़ सकता है अथवा नकारात्मक। इतना सही है कि आयकर घटाने से
करदाता के हाथ में अधिक रकम बचेगी जैसे करदाता पहले यदि 100 रुपए कमाता था और उसमें से 30
रुपए आयकर देता था तो उसके हाथ में 70 रुपए बचते थे, यदि आयकर की दर घटाकर 25 प्रतिशत
कर दी जाए तो करदाता के हाथ में अब 75 रुपए बचेंगे। वह पहले यदि 70 रुपए का निवेश कर सकता
था तो अब 75 रुपए का निवेश कर सकेगा, लेकिन यह जरूरी नहीं कि बची हुई रकम का निवेश ही
किया जाएगा। उस रकम को वह देश से बाहर भी भेज सकता है।
बताते चलें कि यदि देश में आयकर की दर घटा दी जाए तो भी यह निवेश करने को पर्याप्त प्रलोभन
नहीं है क्योंकि आबू-धाबी जैसे तमाम देश हैं जहां पर आयकर की दर शून्य प्रायः है। मनिपाल ग्लोबल
एजुकेशन के टीवी मोहनदास पाई के अनुसार देश से अमीर बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। वे भारत
की नागरिकता त्यागकर अपनी पूंजी समेत दूसरे देशों को जा रहे हैं और उन देशों की नागरिकता स्वीकार
कर रहे हैं। पाई के अनुसार इसका प्रमुख कारण टैक्स कर्मियों का आतंक है। उनके अनुसार आज
करदाता महसूस करता है कि उसे टैक्स कर्मियों द्वारा परेशान किया जा रहा है। मेरा अपना मानना है
कि वर्तमान सरकार कम्प्यूटर तकनीक के उपयोग से आयकर दाताओं और टैक्स अधिकारियों के बीच
सीधा संपर्क कम कर रही है जोकि सही दिशा में है लेकिन इसके बाद जब जांच होती है अथवा
अपीलिय प्रक्रिया होती है तो करदाता और टैक्स अधिकारियों का आमना-सामना होता ही है। मूल बात
यह है कि वर्तमान सरकार टैक्स अधिकारियों को ईमानदार और करदाताओं को चोर की तरह से देखती

है। सरकार का यह प्रयास बिलकुल सही है कि देश में तमाम उद्यमी हैं जो देश के बैंकों की रकम को
लूट कर जा रहे हैं अथवा टैक्स की चोरी कर रहे हैं, लेकिन एक चोर को दूसरे चोर के माध्यम से
पकड़ना कठिन ही है। मनुस्मृति में कहा गया है अमीरों के पलायन का दूसरा प्रमुख कारण जीवन की
गुणवत्ता बताया जा रहा है। देश में वायु की गुणवत्ता गिरती जा रही है। इसी प्रकार ट्रैफिक की समस्या है
जिसके कारण वे यहां नहीं रहना चाहते हैं। इस दिशा में सरकार का प्रयास उलटा पड़ रहा है।
जैसे सरकार ने कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों द्वारा उत्सर्जित जहरीली गैसों के मानकों में हाल में
छूट दे दी है। उन्हें वायु को प्रदूषित करने का अवसर दे दिया है। इस छूट का सीधा परिणाम यह है कि
बिजली संयंत्रों द्वारा उत्पादन लागत कम होगी और आर्थिक विकास को गति मिलेगी, लेकिन उसी छूट
के कारण वायु की गुणवत्ता में गिरावट आएगी और देश के अमीर यहां से पलायन करेंगे और विकास दर
घटेगी जैसा हो रहा है। इसी प्रकार सरकार ने गंगा के ऊपर बड़े जहाज चलाने का निर्णय लिया है। अतः
सरकार को किसी निर्णय को लेते समय जीवन की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना होगा और पर्यावरण को
बोझ समझने के स्थान पर पर्यावरण की रक्षा के इस आर्थिक लाभ का भी मूल्यांकन करना होगा। तीसरा
बिंदु सामाजिक है। अमीर व्यक्ति चाहता है कि उसे वैचारिक स्वतंत्रता मिले। वह अपनी बात कह सके।
लेकिन बीते समय में देश में स्वतंत्र विचार को हतोत्साहित किया गया है। जो व्यक्ति सरकार की
विचारधारा से विपरीत सोचता है, उसके ऊपर किसी न किसी रूप से दबाव डाला जा रहा है। इन तमाम
कारणों से अमीरों को भारत में रहना पसंद नहीं आ रहा है और वह देश से पलायन कर रहे हैं। वित्त मंत्री
द्वारा टैक्स कारपोरेट कंपनियों द्वारा अथवा व्यक्तियों द्वारा जो आयकर में कटौती की गई है अथवा
शीघ्र किए जाने की संभावना है। उससे देश के आर्थिक विकास को कोई अंतर नहीं पड़ेगा क्योंकि मूल
समस्या सांस्कृतिक है, देश ने जो नौकरशाही को ईमानदार, पर्यावरण की हानि को आर्थिक विकास का
कारक और वैचारिक विभिन्नता को नुकसानदेह दृष्टि से देख रखा है उसका सीधा परिणाम है कि देश के
अमीर देश को छोड़कर जा रहे हैं और देश की आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ रही है।


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