टूल किट की किटकिटाहट

asiakhabar.com | February 24, 2021 | 5:33 pm IST

संयोग गुप्ता

आप लोग टूल किट तो जानते ही होंगे। नहीं जानते? अरे भैया! वही औजारों की पेटी जिसमें ढूँढ़ने पर सब
कुछ मिल जाता है सिर्फ हमारी जरूरत की चीज़ को छोड़कर। यह दुनिया भी तो एक टूल किट है। जहाँ सभी
टूल सिर्फ और सिर्फ किट-किट करते रहते हैं। यह किट-किट बंद हो जाए तो संयुक्त राष्ट्र संघ लंबी छुट्टी के
लिए जा सकता है। न किट-किट बंद होगी न कोई लंबी छुट्टी पर जाएगा।
काश हमारे पास भी कोई दिशा रवि होती तो कितना अच्छा होता, जो हमारे सभी तरह के पेंच टाइट करने
वाले पाने ढूँढ़ कर दे देती। अब दिशा को कौन बताए कि यहाँ किसी का पेंच ढीला है तो किसी का कुछ। किसी
के मुँह का ढक्कन खुला हुआ है तो किसी के हाथ-पैर छूटे हुए हैं। किसी का खाली दिमाग बंद होने का नाम
नहीं ले रहा है। इन सबके लिए टूल किट की जबरदस्त जरूरत आन पड़ी है। वह न जाने किस दिशा से आशा
की रवि किरण बनकर आयी है कि सभी उसी के नाम का जप करने में व्यस्त हैं। टूल-अटूल किट-किट करावै,
जब-जब दिशा का नाम सुनावै। दिशा ने मानो जंग लगे टूल किटों में जान फूँक दी है। जिन टूल के बारे में
कल तक देश नहीं जानता था अब सबकी जुबान पर दिशानामी का रट्टा लगा हुआ है।
दिशा टूलकिट का अपने ढंग से इस्तेमाल करना चाहती थी। न जाने उससे कहाँ गड़बड़ हो गई कि टूल किट के
खुलते ही तरह-तरह के स्क्रू ड्राईवर, स्पैनर, की-सैट, और चाबी-पाने खुलकर बिखर गये । किसान सरकार के
पेंच टाइट करने में लगी थी वहीं सरकार दिशा जैसे टूल किटों की मालकिनों को टाइट करने में लगी थी। टाइट
करने का असर यह हुआ कि किसी को दस्त तो किसी को उल्टी होने लगी। कुछ तो जंपिंग-जपांग करने में
अपना हुनर दिखाने लगे।
कोई महंगाई के टूल किट से समाज के सोने वाले लोगों को उठाने के लिए यूज होने वाले हैशटैग के अलावा
किस दिन, किस वक्त और क्या ट्वीट्स या पोस्?ट्स रूपी टूलोपयोग करना है, के बारे में बताता तो कितना
अच्छा होता। यहाँ सभी अपने-अपने टूल किटों की किटकिटाहट में लगे हैं। कितना अच्छा होता कि सोशल
मीडिया के टूलकिट में कट, कॉपी, पेस्ट मटेरियल और अंधभक्तों की हुड़दंग से बचाने वाले टूल्स होते। यहाँ
महंगाई के बारे में कुछ कहने जाओ पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ाकर आम जनता के पेंच टाइट कर दिए जाते
हैं। अस्पतालों के बारे में बात करो तो धर्म का पेंच बीच में फिट कर देते हैं। नौकरी देने के बारे में बात करो
तो प्राइवेटीकरण का हथौड़ा लिये सरकारी संस्थाओं का रूप-नक्शा ही बदल दिया जाता है। देश में मुश्किल यह
है कि जिनके पास टूल किट है उन्हें इस्तेमाल करना नहीं आता। जिन्हें इस्तेमाल करने आता है उनके पास टूल
किट नहीं है। देश को तोड़ने वाली दिशा को जेल की दिशा तो दिखा दी गयी, लेकिन जो देश को जोड़ने का
स्वांग रचाते हैं उनकी दिशा और दशा कैसे तय करेंगे….इसी को कहते हैं जिसका टूल उसी की किट…मैं हूँ फिट
और तू है अनफिट।


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