शिशिर गुप्ता
भारत में कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा, जितनी तेजी से अब एक्टिव केस बढऩे
लगे हैं। देश में रोज एवरेज 4 लाख टीके लग रहे हैं। 10 दिन पहले यह औसत 3.71 लाख था। यानी सिर्फ
7.20त्न की बढ़ोतरी। दूसरी ओर कोरोना के मरीज 10 दिन में ही 1.37 लाख से बढ़कर 1.49 लाख हो गए
हैं। यानी, 7.87 फीसदी ज्यादा। देश में कुल 3 करोड़ हेल्थ-फ्रंटलाइन वर्कर्स हैं, जबकि टीके 1.17 करोड़ ही
लग पाए हैं। केंद्र सरकार ने फरवरी के आखिर तक सभी वर्कर्स को टीके लगाने का लक्ष्य रखा था। इसे बढ़ाकर
मार्च कर दिया गया है। यह लक्ष्य भी अब काफी दूर नजर आ रहा है, क्योंकि अभी पौने 2 करोड़ हेल्थ-
फ्रंटलाइन वर्कर्स को वैक्सीन की एक डोज भी नहीं लग पाई है। कोरोना महामारी से निपटने के लिए देश में
टीकाकरण अभियान का पहला चरण जोरों पर होने के दावे भले किए जा रहे हों, लेकिन टीका लगवाने को
लेकर कोरोना योद्धाओं के भीतर अभी भी डर बना हुआ है। पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों को टीका देने का
लक्ष्य रखा गया है, जिनमें चिकित्सक, नर्सें और अस्पताल कर्मचारी शामिल हैं। पर ज्यादातर जगहों पर
स्वास्थ्यकर्मी टीका लगवाने से परहेज कर रहे हैं। सवाल है कि टीके को लेकर स्वास्थ्यकर्मियों के बीच आखिर
इस तरह का अविश्वास और भय क्यों है।
पिछले महीने जब टीकाकरण शुरू हुआ था, तब भी पहले ही दिन दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल के रेजीडेंट
डॉक्टरों ने कोवैक्सीन टीका लगवाने से इनकार कर दिया था। दूसरे राज्यों से भी इस तरह की खबरें आईं कि
पहले ही दिन बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मी अपनी बारी पर टीका लगवाने नहीं पहुंचे। अब एक महीने बाद भी
अगर यही स्थिति है कि स्वास्थ्यकर्मी टीका नहीं लगवा रहे हैं, तो यह चिंता पैदा करने वाली बात है। सच तो
यह है कि टीके को लेकर स्वास्थ्यकर्मियों के बीच डर के कुछ कारण हैं। जैसे शुरुआती दौर में टीका लगवाने के
बाद दो-तीन लोगों की जान चली जाने की खबरें आईं। इससे लोगों के बीच यह गलत संदेश चला गया कि
टीका पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। पर बाद में जांच में पता चला कि टीका लगवाने के बाद जो मौतें हुईं,
उनका कारण टीका नहीं था। कुछ लोगों में टीका लगवाने के बाद जिस तरह के प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिले,
उससे भी टीके को लेकर असुरक्षा की भावना पनपी। इन घटनाओं के बाद टीका बनाने वाली कंपनियों ने
दिशानिर्देश जारी कर बता भी दिया था कि किन लोगों को टीका नहीं लगवाना है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी
स्पष्ट कर दिया था कि कोरोना के दोनों टीके-कोविशील्ड और कोवैक्सीन पूरी तरह से कारगर और सुरक्षित हैं।
टीकाकरण के पहले ही दिन नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डा. रणदीप
गुलेरिया और नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डा. वीके पॉल ने भी टीका लगवा कर इसके सुरक्षित होने का
प्रमाण दिया था। इसलिए अब भी अगर टीकों को लेकर डर बना हुआ है तो यह हैरानी की बात है और इस भय
को दूर करने की जरूरत है।
अब समस्या यह खड़ी हो रही है कि अगर स्वास्थ्यकर्मी ही टीका लगवाने से पीछे हटेंगे तो आम लोग
टीकाकरण के लिए कैसे प्रेरित होंगे। स्वास्थ्यकर्मियों के लिए टीकाकरण इसलिए भी जरूरी है कि उन्हें ही
महामारी की इस चुनौती का सबसे ज्यादा सामना करना है। अभी भी हम कोरोना के प्रकोप से पूरी तरह मुक्त
नहीं हो पाए हैं। महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों में फिर से फैलता संक्रमण बता रहा है कि महामारी फिर से
कहर बरपा सकती है जैसा कि ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका में देखने को मिल रहा है। ऐसे में सबसे ज्यादा
बचाव की पहल स्वास्थ्यकर्मियों को ही करनी है, अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी। यह भी देखने में
आया कि टीके की पहली खुराक के बाद दूसरी खुराक लेने नहीं पहुंचने वालों की संख्या भी कम नहीं है।
टीकाकरण को सफल बनाने और इसे लेकर लोगों के मन में बैठा डर निकालने के लिए बेहतर तो यह होता कि
इस अभियान की शुरुआत हमारे जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों से होती। देश के स्वास्थ्य मंत्री ने तो बाकयदा
पहला कोरोना टीका खुद लगवाने की घोषणा की थी। अगर ऐसी पहल होती तो टीकों को लेकर किसी के मन
में कोई संशय नहीं होता।